गुप्त, मैथिलीशरण (१८८६-१९६४ ई.) हिंदी के प्रख्यात कवि। चिरगाँव (झाँसी) में संवत् १९४३ में जन्म। पिता सेठ रामचरण कविताप्रेमी और भगवद्भक्त थे : उन्हीं से यह उत्तराधिकार गुप्त जी को मिला। शिक्षा दीक्षा घर पर ही हुई। आपकी प्रारंभिक रचनाएँ कलकत्ता के जातीय पत्र वैश्योपकारक में प्रकाशित हुईं। बाद में वे नियमित रूप से ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होने लगीं और ‘सरस्वती’ के संपादक महावीरप्रसाद द्विवेदी का आपकी भाषा और रचनाशैली पर बहुत प्रभाव पड़ा।
आपकी प्रथम पुस्तक ‘रंग में भंग’ १८९८ ई. में प्रकाशित हुई। १९०२ में भारत भारती निकली जिसने हिंदी प्रेमियों का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट किया। इस ग्रंथ ने हिंदी भाषियों में अपनी जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाएँ जागृत कीं। आपके अन्य मौलिक काव्य ‘जयद्रथ वध’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘नहुष’, ‘मंगल घट’, ‘जय भारत’ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। अनुवादों में ‘विरहिणी व्रजांगना’, ‘मेघनाद वध’, ‘पलासी का युद्ध’, ‘स्वप्न वासवदत्ता’ आदि महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। इनके अतिरिक्त आपने तीन नाटक तथा सभी प्रकार के प्रगीत और मुक्तक भी लिखे हैं। साकेत पर उन्हें हिंदी साहित्य संमेलन का मंगलाप्रसाद पारितोषिक मिला। प्रयाग विश्वविद्यालय ने आपको डॉक्टर की संमानित उपाधि प्रदान की। वे राज्यसभा के सदस्य रहे और असंख्य हिंदीप्रेमियों ने उन्हें ‘राष्ट्र कवि’ की उपाधि से विभूषित किया।
गुप्त जी के काव्य के दो प्रेरणास्रोत हैं : देशभक्ति और भगवद्भक्ति। भारत भारती का राष्ट्रीय गाथाओं में प्रमुख स्थान है। प्राचीन गाथाओं को आपने सरस प्रेरणा से अभिनव रूप प्रदान किया। आपके काव्य में सहज माधुरी और निश्छलता के गुण प्रधान हैं।
गुप्त जी भारतेंदु के समान हिंदी कविता के इतिहास में एक नए युग के प्रवर्तक हैं। इस युग को द्विवेदी युग की संज्ञा दी गई है। द्विवेदी युग में खड़ी बोली साहित्य की भाषा बनी और हिंदी कविता ने अभिनव रूप धारण किया। रीतिकाल की परंपरा को दृढ़तापूर्वक त्याग कर वह आधुनिक जीवन के समीप आ गई।
मैथिलीशरण गुप्त की भाषा में सहज मिठास और सादगी है। आपकी अनुभूतियाँ जनजीवन का स्पर्श कर द्रवित होती हैं। आपके अनेक शब्दचित्र हिंदी पाठकों की स्मृति में घर बना चुके हैं। आपकी पुष्ट राष्ट्रीय विचारधारा ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को इतिहास का बल दिया। गुप्त जी अपनी सरलता, निश्छलता, सहज देशप्रेम और वैष्णव वृत्तियों के कारण राष्ट्रीय जीवन के साहित्यिक प्रतीक बन गए थे। संवत् २०२१ (दिसंबर, १९६४ ई.) में आपकी मृत्यु हुई।
(प्रकाशचुद्र गुप्त.;परमेश्वरीलाल गुप्त)