गुप्त, बालमुकुंद (१८६५-१९०७ ई.) हिंदी साहित्यकार। इनका जन्म गुड़ियानी गाँव (जिला रोहतक) में १८६५ ई. (कार्तिक शुक्ल ४, सं. १९२२ वि.) में हुआ था। उर्दू और फारसी की प्रारंभिक शिक्षा के बाद १८८६ ई. में पंजाब विश्वविद्यालय से मिडिल परीक्षा प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में उत्तीर्ण। विद्यार्थी जीवन से ही उर्दू पत्रों में लेख लिखने लगे। झझ्झर (जिला रोहतक) के रिफाहे आम अखबार और मथुरा के मथुरा समाचार उर्दू मासिकों में पं. दीनदयाल शर्मा के सहयोगी रहने के बाद १८८६ ई. में चुनार के उर्दू अखबार अखबारे चुनार के दो वर्ष संपादक रहे। १८८८-१८८९ ई. में लाहौर के उर्दू पत्र कोहेनूर का संपादन किया। उर्दू के नामी लेखकों में आपकी गणना होने लगी। १८८९ ई. में महामना मालवीय जी के अनुरोध पर कालाकाँकर (अवध) के हिंदी दैनिक हिंदोस्थान के सहकारी संपादक हुए जहां तीन वर्ष रहे। यहां पं.) प्रतापनारायण मिश्र के संपर्क से हिंदी के पुराने साहित्य का अध्ययन किया और उन्हें अपना काव्यगुरू स्वीकार किया। सरकार के विरूद्ध लिखने पर वहां से हटा दिए गए। अपने घर गुड़ियानी में रहकर मुरादाबाद के भारत प्रताप उर्दू मासिक का संपादन किया और कुछ हिंदी तथा बँगला पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद किया। अंग्रेजी का इसी बीच अध्ययन करते रहे। १८९३ ई. में हिंदी बंगवासी के सहायक संपादक होकर कलकत्ता गए और छह वर्ष तक काम करके नीति संबंधी मतभेद के कारण इस्तीफा दे दिया। १८९९ ई. में भारतमित्र कलकत्ता के संपादक हुए और मृत्यु हुई।

भारतमित्र में आपके प्रौढ़ संपादकीय जीवन का निखार हुआ। भाषा, साहित्य और राजनीति के सजग प्रहरी रहे। देशभक्ति की भावना इनमें सर्वोपरि थी। भाषा के प्रश्न पर सरस्वती संपादक, पं महावीरप्रसाद द्विवेदी से इनकी नोंक झोक, लार्ड कर्जन की शासन नीति की व्यंग्यपूर्ण और चुटीली आलोचनायुक्त शिवशंभु के चिट्ठे और उर्दूवालों के हिंदी विरोध के प्रत्युत्तर में उर्दू बीबी के नाम चिट्ठी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। लेखनशैली सरल, व्यंग्यपूर्ण, मुहावरेदार और हृदयग्राही होती थी। पैनी राजनीतिक सूझ और पत्रकार की निर्भीकता तथा तेजस्विता इनमें कूट कूटकर भरी थी।

पत्रकार होने के साथ ही आप एक सफल अनुवादक और कवि भी थे। अनूदित ग्रंथों में बँगला उपन्यास मडेल भगिनी और हर्षकृत नाटिका रत्नावली उल्लेखनीय हैं। स्फुट कविता के रूप में आपकी कविताओं का संग्रह प्रकाशित हुआ था। इनके अतिरिक्त आपके निबंधों और लेखों के संग्रह हैं। (ब. प्र. मि.;परमेश्वरीलाल गुप्त)