गुना आधुनिक मध्य प्रदेश के पश्चिमी छोर पर स्थित जनपद जो विंध्याचल पर्वत के पठारी भाग पर फैला है (स्थिति : २३० ५४’ से २५० ९’ उ. अ. तथा ७६० ५१’ से ७८० ५’ पू. दे.)। इसके उत्तर में शिवपुरी, दक्षिण में राजगढ़ जनपद, पूर्व में बेतवा नदी तथा पश्चिम में राजस्थान राज्य है। पहले यह क्षेत्र मध्य भारत में था लेकिन राज्यों के क्षेत्रीय पुनर्गठन (१९५६) के बाद मध्यप्रदेश में संमिलित कर लिया गया। इसका क्षेत्रफल ११,०१७ वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या ७,८३,७४८ (१९७१) है।
जनपदीय धरातल की समुद्रतल से औसत ऊँचाई १०००-१,८२३ फु ट है, परंतु अधिकांश क्षेत्र १,६०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। गुना कस्बे की ऊँचाई १,५७० फुट है। यद्यपि इस क्षेत्र में पहाडियाँ तथा भरके हैं, तथापि अधिकांश भूमि पठार पर स्थित तथा लगभग समतल एवं चौरस है। जनपद की मुख्य नदियाँ बतवा, पार्वती, सिंध तथा बिलास हैं। पार्वती की सहायक पुरानी उपरानी डोबरा, पूनो, गूरी कुरी एवं भीमा बेतवा की ओर तथा काली सिंध और सिंध की ओर घोड़ापछार, रूठियाई तथा चौपेट नदियाँ हैं।
जलवायु साधारणतया स्वास्थ्यकर है। इस जिले में गर्म हवा मई के अंतिम तथा जून के प्रथम सप्ताह में अधिक से अधिक केवल एक पखवारे के लिये चलती हैं। इस समय भी रात्रि ठंडी एवं आनंददायक रहती है। चंदेरी क्षेत्र सबसे गर्म है। साधारणतया वार्षिक ताप २३० सें. रहता है जनवरी (७० सें. ताप) वर्ष का सबसे ठंडा मास है। सितंबर तथा अक्टूबर में मलेरिया का प्रकोप रहता है। वर्षा सर्वत्र लगभग समान रूप से होती है। औसत वार्षिक वर्षा ४०'-६०' तक होती है (अधिक वर्षा मध्य जून से सितंबर तक होती है)। शीतकाल में कभी कभी ओलों की बौछार से फसल को हानि पहुंचती है। बमोरी तथा चंदेरी क्षेत्र में बहुधा जल का आभाव रहता है और गहराई में मिलता है।
कृषि की दृष्टि से भूमि हल्की है। उत्तर के पठारी क्षेत्र की अपेक्षा दक्षिण की काली भूमि अधिक उपजाऊ है। जिले में मुरम, काली मार, काँकड़ा, दोमट तथा भूर आदि पाँच प्रकार की मिट्टी मिलती हैं। कुल १०,१७,७६४ एकड़ भूमि कृषियोग्य तथा ६,४६,७९० एकड़ कृषि के लिये अयोग्य है। अत: परती भूमि में कृषि विस्तृत करने के लिये पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा उपाय हो रहे हैं। जिले के १५.२०% क्षेत्र में वन हैं जिनमें टीक, खैर तथा बाँस प्रमुख और धो (धव) कड़राई, बहेल, सेन, बेल, हलदू, गुरजेन, तेंदू, सिरिस आदि की मिश्रित लकड़ियाँ मिलती हैं।
ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से गुना जनपद महत्वपूर्ण है। तुंभवन (तुमेन), चाचाड़ा (चंपावती), खुटवायर, कदवाया, ढाकोनी, थूबन, मुंगावली (इंद्ररूसी), म्याना (मायापुर), ईसागढ़, बजरंगगढ़, चंदेरी आदि प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं। यातायात, व्यापार, उद्योगधंधों, उपचार, शिक्षा, एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से गुना जनपद कम विकसित है। चंदेरी का सूती तथा रेशमी वस्त्रोद्योग देश विदेश में प्रसिद्ध है। यहां का जरी का कार्य अपनी कारीगरी तथा सुंदरता के लिये सुप्रसिद्ध है। यहां चमड़ा एवं बीड़ी बनाने का उद्योग भी विकसित है।
२. गुना जनपद का प्रधान प्रशासकीय नगर (स्थिति : २४० ३९’ उ. अ. ७७० १९’ पू. दे.)। जो आगरा-बंबई-राजमार्ग तथा मध्य रेलवे के बीना-बारन-प्रशाखा मार्ग पर स्थित है। पहले यह छोटा सा ग्राम था; १८४४ ई. में यहां ग्वालियर के अश्वारोही फौज की छावनी स्थापित हुई और तब से इसका महत्व बढ़ा और १८९७ ई. में रेलमार्ग के विकास के कारण यह प्रमुख व्यापारिक केंद्र हो गया। (कााश्नीाथ सिंह)