गुजरात यह प्रदेश २० से २४ उ. अ. तथा ६८ से ७४ पू. दे. के मध्य स्थित है। बंबई पुनर्गठन विधेयक, १९६० के लागू होने से १ मई, सन १९६० ई. को यह प्रदेश गठित हुआ। भारत गणराज्य के पश्चिमी तट पर स्थित यह प्रदेश उत्तर पूर्व में राजस्थान, उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान, द. पू. में मध्य प्रदेश, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में महाराष्ट्र राज्य से घिरा हुआ है। इसका कुल क्षेत्रफल १,९५,९८४ वर्ग किलोमीटर है जिसके १९ जिलों में १९७१ की जनगणना के अनुसार २, ६६,९७,४७५ व्यक्ति निवास करते हैं। अहमदाबाद, अमरेली, वनासकाँठा, भारु च, भावनगर, गांधीनगर, जामनगर, जूनागढ़, खेदा, कच्छ, महसेना, पंचमहल, राजकोट, सबरकाँठा, सूरत, सुरेंद्रनगर, डाँग, बड़ोदरा और बलसाड इस प्रदेश के मुख्य जिले हैं। गांधी नगर इस प्रदेश की राजधानी है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-पुरातात्विक साक्ष्यों से प्रमाणित होता है कि आर्यों के आगमन से पूर्व इस प्रदेश में हड़प्पा संस्कृति में संबंधित लोग रहते थे। वे लोग गाँवों और कस्बों में मकान बनाकर रहते थे। कहीं कहीं उन लोगों ने किलों का भी निर्माण किया था और कृषि कार्य करते थे। उनके चिन््ह्र नर्मदा की निचली घाटी में प्राप्त होते हैं। महाभारत काल में कृष्ण ने द्वारिका में अपना किला बनवाया था। उस समय पशुचारण संस्कृति का ही प्रसार था। ईसा से १००० वर्ष पूर्व इस प्रदेश के निवासी लालसागर के द्वारा अफ्रीका के साथ और ईसा से ७५० वर्ष पूर्व फारस की खाड़ी के द्वारा बेबीलोन के साथ अपना व्यापारिक संबंध स्थापित किए हुए थे। भड़ौच (भृगुकच्छ) उस समय का व्यस्त बंदरगाह था। वहाँ से उज्जैन और पाटलिपुत्र होते हुए ताम्रलिप्ति तक राजमार्ग बना हुआ था मौर्य काल में यह प्रदेश उज्जैन के राज्यपाल के अधीन रहा। ईसा की आरंभिक सदियों में पश्चिमी क्षत्रप यहाँ के शासक रहे। उनके समय में तट के लोगों का वैदेशिक व्यापार जोर पकड़ने लगा और उनका रोम के साथ यह व्यापार संबंध तीसरी चौथी शती ई. तक था। कुमारगुप्त (प्रथम) के समय में गुप्त सम्राटों का आधिपत्य इस प्रदेश पर हुआ और ४६० तक रहा। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद ५०० से ७०० तक बल्लभी नरेशों का अधिकार हुआ। तदनंतर भिन्नमाल के गुर्जरों ने इसपर शासन किया और ५८५ से ७४० के मध्य भड़ौच में उनकी एक शाखा के लोग राज करते रहे। इन्हीं गुर्जरों के नाम पर प्रदेश का नामकरण गुजरात हुआ और वे वहाँ की राजपूत जातियों के पूर्वज कहे जाते हैं।

मुसलमानों द्वारा दिल्ली से विजित होने (१२३३) तक यह जैन धर्म का केंद्र रहा। अलाउद्दीन खिलजी (१२६९-१३१६ ई.) के शासन काल में यह मुसलमानी राज्य में आया। एक शताब्दी के उपरांत पुन: गुजरात दिल्ली साम्राज्य से निकलकर स्वतंत्र मुसलमानी राज्य बना। अहमदशाह प्रथम (१४११-१४४३ ई.) ने अहमदाबाद की स्थापना की। १५७२ ई. में अकबर ने इस भाग को मुगल राज्य में मिला लिया ओर दिल्ली साम्राज्य के अंतर्गत यह एक सूबा बन गया। कालीज और राजपूतों के उपद्रवों के होते हुए भी औरगंजेब की मृत्यु (१७०७ ई.) तक मुगल सूबेदारों ने यहाँ शांति और व्यवस्था स्थिर रखी। अठारहवी शताब्दी के प्रारंभ में मरहठों के आक्रमण से मुगल साम्राज्य का पतन प्रारंभ हुआ। सन १७३७ ई. में गायकवाड़ मरहठे इस भाग के राज्यकर में हिस्सेदार बन गए और फौज में भाग लेते हुए अहमदाबाद में भी हिस्सा पाने लगे। १७३१ से ५२ ई. तक भड़ौच निजाम के अधीन रहा, किंतु वह भी गायकवाड़ के आंशिक रूप में कर देने को बाध्य था। १८०० ई. में अंग्रेजों ने सूरत को अपना लिया और १८ वीं शताब्दी में गुजरात के छोटे छोटे राज्य गुजरात स्टेटस एजेंसी के रूप में अँगरेजी शासन के अधीन हो गए। १९ वीं शताब्दी के आरंभ में पेशवा के पतन के पश्चात शनै: शन: यहाँ अंग्रेजी राज्यव्यवस्था स्थापित हो गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत सभी रजवाड़े भारत गणराज्य के अंग बन गए। १ मई, १९६० तक यह बंबई प्रदेश का अंग था। तदनंतर इसे अलग स्वतंत्र प्रदेश की संज्ञा प्रदान की गई।

प्राकृतिक सरंचना एवं उपप्रदेश-यह प्रदेश प्रायद्वीपीय खंडों, खाड़ियों, पहाड़ियों, पठारों एवं दलदलों से आवृत है। समुद्र के तट की ओर पतली पेटी में मैदानी भाग स्थित है। कच्छ और खंभात की खाड़ियाँ दोनों ओर से सौराष्ट्र (काठियावाड़) प्रायद्वीप की सीमा निर्धारित करती हैं। प्रदेश के उत्तरी भाग में प्रीकैंब्रियन काल के अरावली के अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं और अन्यत्र प्राचीन आर्कियन चट्टानों के ऊपर बाद की चट्टानें स्थित हैं। कच्छ में समुद्री जुरैसिक काल की चट्टानों के ऊपर गोंडवाना काल की चट्टानें अवस्थित हैं।

प्रदेश के पूर्वी भाग से अरासुर पर्वत की श्रेणियाँ १६० कि. मी. की लंबाई में फैली हुई हैं। पवावर्ध की ऊँचाई ३२९ मी. है। राजपीपला (सतपुड़ा) पहाड़ियाँ गोमेद (अकीक) के लिए प्रसिद्ध हैं। आग्नेय चट्टानों से निर्मित गिरनार पहाड़ी की गोरखनाथ चोटी १११७ मीटर ऊँची है। प्राकृतिक स्थिति के आधार पर गुजरात को मुख्य ४ पेटियों में विभक्त किया जा सकता है। (१) उच्च जलोढ़ पेटी (६० मीटर चौड़ी) मैदानी और पहाड़ी भागों के बीच, (२) तटवर्ती दलदली भाग, (३) कच्छ प्रायद्वीप तथा (४) प्रायद्वीपीय गुजरात या सौराष्ट्र। संपूर्ण प्रदेश एक निम्न भूखंड है, समुद्रतल से जिसकी अधिकतम ऊँचाई ३०० मीटर है।

जलप्रवाह-प्रायद्वीपीय भारत के इस भाग की रचना गंगा सिंधु के मैदान से मिलती जुलती है। नदियाँ बहुधा धरातलीय संरचना की अनुगामिनी होती है। यहां की जलोढ़ मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है। पार, औरंगा, ताप्ती, नर्मदा, माही और साबरमती नदियाँ अपनी सहायक नदियों, शेधी, मोहर, वतक, माझम, मेहवा, खारी के साथ मिलकर विस्तृत मैदान की रचना करती हुई खंभात की खाड़ी में गिरती हैं। सौराष्ट्र प्रायद्वीप की मुख्य नदियाँ वामभान, देमी, रुं ड रंगमती, सानी, मच्छू, भादर, उवेन, राहजा, मेगाल, सरस्वती, शत्रुंजी, भोगवा और दमनगंग वृत्राकार जलप्रवाह बनाती हुई अरब सागर और कच्छ की खाड़ी में गिरती हैं।

जलवायु-इस प्रदेश की जलवायु मुख्य रूप से उष्णप्रदेशीय और मानसूनी है। उत्तरी भाग में रेगिस्तान का किनारा और दक्षिणी भाग में समुद्र तट होने के कारण उत्तर से दक्षिण के तापमान में पर्याप्त अंतर रहता है। ग्रीष्म ऋतु में अधिकतम तापमान ३६.७ सें. ग्रे. से ४३.३ सें. ग्रे. तथा नवंबर और फरवरी में न्यूनतम तापमान २ से १८.३ सें. ग्रे. के बीच रहता है। उत्तर पश्चिम की अपेक्षा दक्षिणी गुजरात में वर्षा अधिक होती है। उत्तरी भाग में वर्षा की मात्रा ५१-१०२ से. मी., मध्यवर्ती भाग में ४०-८० से. मी. और दक्षिणी भाग में ७३-१५२ है। जामनगर और जूनागढ़ के तटीय भागों में ६३ से. मी. तक वर्षा होती है। द्वारिका तथा कच्छ के अर्धशुष्क भागों में वर्षा की मात्रा बहुत कम है।

वनस्पति-इस राज्य की वन संपत्ति बहुत ही सीमित है। प्रदेश के वनों का अधिकांश भाग शुष्क कँ टीले वृक्षों से आवृत है। काठियावाड़ और कच्छ के उत्तरी तटीय भाग में केवल घासें और झाड़ियाँ हैं। संरक्षित वन अमरेली, जूनागढ़, अहमदाबाद, मेहसाना, सूरत और अन्य पूर्वी जिलों तक सीमित है। गिरनार की पहाड़ियों पर पतझड़ के वन पाए जाते हैं। गिर प्रदेश के सिंह, जो भारत के अन्य भागों से लुप्त हो गए हैं, यहाँ आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। कहीं कहीं समुद्र के किनारे तटीय वन भी हैं। टीक, बाँस, येलो वुड, रेड वुड (Red wood) ब्लैक वुड (Black wood) तथा चंदन आदि यहाँ के मुख्य वृक्ष हैं। डाँग प्रदेश टीक के सुंदर वनों से सुशोक्षित है जहाँ पूरे क्षेत्रफल के ३० % भाग पर वन हैं।

मिट्टी इस राज्य की मिट्टी को छह वर्गों में विभक्त किया जा सकता है: (१) गहरे काले रंग की मिट्टी प्रदेश के दक्षिणी भाग में ; (२) हल्के रंग की काली मिट्टी पूर्वी भाग एवं सौराष्ट्र में; (३) तटीय जलोढ़ मिट्टी सौराष्ट्र तट एवं खंभात की खाड़ी के पास ; (४) जलोढ़ बलुई दुमट मिट्टी अहमदाबाद के आसपास; (५) जलोढ़ बलुई मिट्टी उत्तरपूर्वी भाग में और (६) मरु स्थलीय बालू कच्छ के उत्तरी भाग में विस्तृत हैं। आर्थिक दृष्टिकोण से यहाँ की काली मिट्टी कपास के लिये और जलोढ़ मिट्टी उत्तम कृषि एवं बाग बगीचों के लिये प्रसिद्ध है। नर्मदा और ताप्ती से सिंचित भूमि अत्यधिक उपजाऊ है और फलस्वरूप इसे भारत का बगीचा कहा जाता है।

खनिज-खनिज संपत्ति में यह राज्य पर्याप्त समृद्ध है। नमक, चूने का पत्थर, मैंगनीज, जिप्सम, चीनी मिट्टी, कैल्साइट, बाक्साइट आदि पाए जाते हैं। खेड़ा में बाक्साइट और चूने का पत्थर तथा जामनगर में कैल्साइट और चूने का पत्थर निकाला जाता है। बड़ौदा और पंचमहल में चूने की खुदाई होती है और अग्नि मिट्टी (Fireclay) सुरेंद्रनगर से प्राप्त होती है। सौराष्ट्र के सभी जिलों से पर्याप्त मात्रा में जिप्सम निकाला जाता है। इनके अतिरिक्त कोयला और लिग्नाइट तथा फेल्सपार भी पाए जाते हैं।

खंभात में तेल के कुएँ मिले हैं। उन्होंने आर्थिक एवं औद्योगिक दृष्टि से गुजरात का महत्व काफी बढ़ा दिया है। १९५८ ई. में तेल का पहला कुआँ खंभात से १२ किलोमीटर पश्चिम लुनेज ग्राम में मिला था। १९६८-६९ तक यहाँ ६२ कुओं की खुदाई हो चुकी थी जिसमें १९ कुएँ गैस और ३ पेट्रोल का उत्पादन करते हैं। खभांत का तेल क्षेत्र प्रतिदिन ५ लाख टन मीटर गैस (७० % मीथेन) का उत्पादन करता है। कथाना तेल क्षेत्र से प्रतिदिन १५ टन तेल का उत्पादन होता है। बड़ौदा से ८५ किलोमीटर दक्षिण नर्मदा के किनारे अंकलेश्वर के ३० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर तेल के कुएँ पाए जाते हैं। यहाँ के २०० कुओं में १७० कुएँ तेल और १३ कुएँ गैस का उत्पादन करते हैं। यहाँ प्रतिदिन तेल का उत्पादन ८३०० टन और गैसा का उत्पादन ७.५ लाख घन मीटर है। इनके अतिरिक्त १९६६-६७ में वकरोल, अहमदाबाद, मेहसाना और कादी में भी तेल के कुओं की प्राप्ति हुई। अहमदाबाद क्षेत्र के १७७ कुओं में ४८ कुएँ तेल और गैस के उत्पादक हैं और शेष पर अनुसंधान कार्य चल रहा है। मेहसाना योजना के अंतर्गत भी १६ कुएँ खोदे जा चुके हैं जिनमें ६ से तेल उत्पन्न हो रहा है। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग ने नवगाँव, कालोल कोसाँवा, सनंद, कथाना, वेवेल, धोल्का में भी तेल कूपों का पता लगा है।

कृषि-गुजरात कृषिप्रधान राज्य है, लेकिन विषम भौगोलिक परिस्थिति, यथा कुछ क्षेत्रों में अनुपयुक्त जलवायु, ऊबड़ खाबड़ धरातल, पहाड़ियों के ऊपर मिट्टी का अभाव, खाड़ियों का स्थल भाग में प्रवेश आदि ऐसी प्राकृतिक बाधाएँ है जो कृषि के लिये हानिकारक है। यहाँ की मुख्य खाद्य फसलें बाजरा, ज्वार, चावल और गेहूं हैं। व्यापारिक फसलों में कपास, तंबाकू और मूँगफली का उत्पादन होता है। यहाँ १९७०-७१ में खाद्य पदार्थों का उत्पादन ४४.०६ लाख टन, गुड़ और तिलहन का उत्पादन क्रमश: १.९४ लाख टन और १९.४३ लाख टन था कपास का उत्पादन १५.७१ लाख गाँठ रहा।

प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का ५०% से अधिक भाग कृषि कार्य में प्रयुक्त है जिसमें स्थान स्थान पर पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। कच्छ में १५.५% मेहसाना में ७७% और अन्य जिलों में यह प्रतिशत ६० से ७५ के बीच है। यहाँ की कुल भूमि के १२% पर वन और चरागाह हैं जिसमें लगभग एक एक चौथाई कृषि कार्य के लिए पूर्णतया अनुपयुक्त है। लगभग ४% भूमि कृषि के लिये उपयुक्त होने के बावजूद परती पड़ी हुई है।

सिंचाई के साधन-प्रदेश की कुल कृषि में प्रयुक्त भूमि का १० % भाग सींचा जाता है और सभी साधनों का उपयोग करने पर भी जोती बोई हुई भूमि का तिहाई भाग ही सिंचित हो पाता है। प्रदेश की संपूर्ण सिंचित भूमि का ८३% भाग कुओं से और शेष १६% राजकीय नहरों एवं नलकूपों से सींचा जाता है। १९६९-७० में यहाँ १,२९,४७४ पंपिंग सेट लगाए गए और इनकी संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। राजकीय नलकूपों की संख्या १,२०० से ऊपर है जो प्रदेश की ३० लाख एकड़ भूमि की सिंचाई करते हैं। इनके अतिरिक्त नर्मदा, ताप्ती, माही, साबरमती नदियों से सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई हैं।

पशुपालन-प्रति पशु अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए यह प्रदेश प्रसिद्ध है। दूध देनेवाली भैंसे यहां अधिक संख्या में पाई जाती है। कंक्रेज और गिर जाति के पशु अपने दूध के लिए विख्यात है। यहाँ के विस्तृत स्थायी घास के मैदान और अच्छे चरागाह पशुसमृद्धि के द्योतक है।

उद्योग-औद्योगिक विकास के दृष्टिकोण से पश्चिमी बंगाल एवं महाराष्ट्र के बाद गुजरात का अपना महत्व है। इस प्रदेश में भारतवर्ष की पंजीकृत औद्योगिक संस्थानों का ८% संस्थान और ९% श्रमिक हैं। यहाँ के मुख्य उद्योग नमक, सूती कपड़ा, विद्युत के सामान, वनस्पति घी, भारी रासायनिक पदार्थ, ओषधि, सीमेंट एवं रसायन हैं। खनिज तेल के लिये असम के बाद यह भारत का पहला राज्य है जहाँ भावी संभावनाएँ अत्यधिक हैं। सूरत में जरी का काम अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शक्ति के साधनों की पूर्ति विभिन्न क्षेत्रों में बने हुए जलविद्युत केंद्रों से होती है जिससे कोयले की खानों से दूर होने के उपरांत भी शक्ति की कमी नहीं पड़ती। प्रदेश की कुल औद्योगिक इकाइयों का २५% अहमदाबाद में केंद्रित है जिसमें ५०% औद्योगिक श्रमिक लगे हुए हैं। इसके बाद सूरत, खेड़ा और बड़ौदा का स्थान है। यहाँ की सूती मिलों में देश के २२% तकुए और २७% करघे लगे हुए हैं जिसमें ७५% अकेले अहमदाबाद में स्थापित किए गए हैं। इस कारण अहमदाबाद एशिया का मैनचेस्टर कहा जाता है। यहाँ के यांत्रिक उद्योगों की संख्या ४०० हैं जिसमें १५,००० श्रमिक लगे हुए हैं। औद्योगिक विकास के दृष्टिकोण से राजकोट, भावनगर, गांधीधाम, मेहसाना, गोधरा, और अमरेली में औद्योगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना की भूमिका तैयार हो चुकी है और जूनागढ़, हिम्मत नगर, पालनपुर, राजपिप्ला, खंभालिया, लिंबडी और मोधापुर में स्थापना हेतु भूमि प्राप्त हो चुकी है।

शक्तिविकास-यद्यपि शक्ति और उद्योग के साधन अल्प हैं। फिर भी संपूर्ण भारत की औसत विद्युतशक्ति के उत्पादन में गुजरात आगे हैं। उकई परियोजना दक्षिणी गुजरात के औद्योगिक विकास में महान् चमत्कार उपस्थित करने जा रही है। २७ नवंबर, १९५९ ई. को इसका शिलान्यास हुआ। सूरत से ७० मील दूर ताप्ती नदी पर ३.२ किलोमीटर लंबा १३२ मीटर ऊँचा बाँध और ३०० मेगावाट क्षमता का विद्युद्गृहों में सबसे बड़ा होगा। इस प्रदेश के मुख्य ताप विद्युद्गृह धुवरान (२५४ मे. वा.), अहमदाबाद (२१७.५ मे. वा.), उतरान (६७.५ म. वा.), शहपुर (१६ मे. वा.) में स्थित हैं। इस प्रदेश में संपूर्ण शक्ति उत्पादन की निर्धारित क्षमता १९७०-७१ तक ८६२ मे. वा. थी और विभिन्न जलविद्युत् एवं तापविद्युत् केंद्रों से १,६०७ में. वा. उत्पादन की योजना बनाई गई है। गुजरात के ४,०८७ गाँवों को विद्युत दी गई है।

शिक्षा-राज्त्य की १५ प्रतिशत जनसंख्या छोटे बड़े विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करती है। गुजरात विश्वविद्यालय (अहमदाबाद), सयाजीराव विश्वविद्यालय (बड़ौदा), बल्लभभाई रूरल विश्वविद्यालय (आनंद) यहाँ के मुख्य विश्वविद्यालय हैं। साक्षरता के दृष्टि कोण से यह प्रदेश आगे है। इस राज्य की औसत साक्षरता ३६.२ प्रतिशत है जो पूरे राष्ट्र के औसत से कहीं अधिक है। १९५१ में यहां की साक्षरता २३ % रही। अहमदाबाद में उच्चतम साक्षरता ४९.४ %, सूरत ४०.६ % मेहसाना ४०.१ %, राजकोट ३८.१ % और सबसे कम डाँग में ११.५% है।

यातायात-राज्य में ५,००० कि. मी. रेलवे लाइन और २४,००० कि. मी. सड़कें हैं। पूरे प्रदेश में रेलों का जाल सा बिछा हुआ है। दिल्ली अहमदाबाद सड़क (५१२ कि. मी.), अहमदाबाद काँदला सड़क (३६६ कि. मी.) और वामनवोर-राजकोट पोरबंदर सड़क (२१८ कि. मी. ) यहां के मुख्य राजपथ हैं जिनसे यहां का संपूर्ण औद्योगिक ढाँचा संबंधित है। तटीय भागों में सड़कों का अभाव है लेकिन निर्माण कार्य प्रगति पर है।

बंदरगाह-गुजरात में ५८ बंदरगाह है जिनमें १ बड़ा ८ मध्यम कोटि के तथा ४९ छोटे हैं। कांडला अकेले २० लाख टन और अन्य सभी बंदरगाह मिलकर ३ करोड़ ५० लाख टन सामानों का आयत निर्यात करते हैं। कांडला के अतिरिक्त ओखा, वेदी, वेरावल, सिक्का, पोरबंदर यहां के मुख्य बंदरगाह हैं।

मुख्य नगर-प्रदेश की समस्त नगरसंख्या २४३ तथा गाँव संख्या १८,७२९ है। राज्य की ५० प्रतिशत नागरिक जनसंख्या यहां के १५ बड़े नगरों में निवास करती है। अहमदाबाद (जनसंख्या १५,९१,८३२-१९७१) गुजरात की प्राचीन राजधानी है जिसका भारत के बड़े नगरों में छठा स्थान है। पंद्रहवीं शताब्दी में हिंदू नगर अशवाल के स्थान पर अहमदशाह ने इस नगर को बसाया था। नगर का प्राचीन भाग साबरमती के बाएँ और नया बसा हुआ नगर दाएँ किनारे पर स्थित है। कपास क्षेत्र के मध्य में स्थित होने के कारण सूती वस्त्र व्यवसाय के लिये यह नगर अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

बड़ौदा-(जनसंख्या ४,६६,६९६-१९७१) माही और नर्मदा के दोआब तथा राज्य के मध्य भाग में होने के कारण यह गायकवाड़ मरहठों की राजधानी रहा है। यहाँ रेलवे जंक्शन, विश्वविद्यालय तथा कपड़ें की कई मिलें हैं।

सूरत-(जनसंख्या ४,७१,६५६---१९७१) नर्मदा नदी के निचले भाग में स्थित है। सूरत में पहली अंग्रेजी कंपनी १६०८ में स्थापित हुई और सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वाध तक यह एक प्रगतिशील बंदरगाह रहा।

गांधीनगर-गुजरात का सुनियोजित नगर और वर्तमान राजधानी है। यह अहमदाबाद से २४ कि. मी. उत्तर साबरमती के दाहिने तट पर बसा हुआ है। ५,५०० हैक्टेयर क्षेत्र में इस नव नगर का विस्तार है। इसके और अहमदाबाद नगर के बीच हवाई अड्डे का क्षेत्र है। बंबई दिल्ली राजमार्ग इस नगर से केवल ५ किलोमीटर हटकर है। जुलाई, १९६४ में इस क्षेत्र को तेल विहीन घोषित कर दिए जाने के बाद इस नगर की योजना बनाई गई। नगर की सभी सड़के आयताकार हैं और नदी की ओर अर्धचंद्राकार रूप में घूम जाती है। इस नगर में कुल १ लाख व्यक्तियों को बसाने की योजना है।

प्राकृतिक संपदा-कृषि योग्य उपजाऊ मिट्टी, जलाशय एवं समुद्रतट, खनिज एवं वन इस राज्य के आर्थिक विकास के लिये आधार स्वरूप हैं। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में इन संसाधनों के उपयोग एवं सरंक्षण पर पूर्ण रूप से बल दिया गया, फिर भी अभी सीमित ही है। यहाँ के वन बाँस, ईधंन, चरागाह, तिलहन, बीड़ी के पत्तों से भरे पड़े हैं। गाद और धूप भी यहाँ के वनों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। वनों में पाए जानेवाले विभिन्न प्रकार के वन्य जीव प्रदेश के आर्थिक स्रोत है। यहाँ के वनों में इस समय १७७ सिंह है जो देश के विभिन्न भागों से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

नर्मदा, ताप्ती, माही और साबरमती जैसी सततवाहिनी नदियाँ कृषि एवं उद्योगों के लिये जल के अक्षय स्रोत के रूप में हैं। समुद्रतट के सामीप्य से मत्स्योद्योग के विकास का भविष्य उज्वल है। प्रदेश की १,६०० किलोमीटर लंबी तटरेखा के सहारे १२,००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पफ्रोंट, भारतीय साल्मन, हिल्सा, जिव मछलियाँ पर्याप्त मात्रा में पाई जाती हैं। प्राकृतिक बनावट व स्थिति अतीतकाल से इस प्रदेश को आर्थिक विकास की ओर प्रेरित करती रही है।

(शि. प्र. सिं.)