गीज़र तप्त जल का प्राकृतिक फौवारा जो वाष्पयुक्त मेघाच्छन्न जल स्तंभ सरीखा जान पड़ता है। इस प्रकार के जलस्रोत अमरीका में यलो स्टोन राष्ट्रीय उद्यान में हैं। वहां २०० सक्रिय गीज़र बताए जाते हैं। आइसलैंड में रेकजाविक से सत्तर मील दूर ज्वालामुखी की राखों के मैदान के बीच दूसरा गीज़र समूह है। वहाँ दस मील की परिधि में दर्जनों गीज़र हैं। तीसरा गीज़र समूह न्यूजीलैंड में है। अधिकांशगीज़रों से जल के फौवारे निकलने का कोई निश्चित क्रम अथवा समय नहीं है। यह कहना कठिन है कि गीज़र कब फूटेगा। अनेक घंटे भर के भीतर कई बार छूटते हैं। कुछ घंटों, दिनों, महीनों सुप्त रहते हैं। कुछ के जल का उछाल कुछ ही फुट ऊँचा होता और कुछ में जल सौ फुट से भी ऊँचे जाता है। यलो स्टोन उद्यान स्थित ओल्ड फेथफुल नामक गीज़र प्राय: ६५ मिनट में एक बार ६ सेकेंड के लिए फूटता है। और उसका जल १२० से १५० फुट ऊँचे तक जाता है।

गीज़र प्राय: नदी अथवा झीलों के तटवर्ती प्रदेशों में होता है जहां जल पृथ्वी में रिसकार धरातल तक एक नाली के रूप में पहँुचता है। ठंडा जल इस नाली के भाग से ऐसे चट्टानों तक पहँुच जाता है जो पृथ्वी के भीतर अत्यंत तप्त अवस्था में हैं। तल का पानी इन तप्त चट्टानों के संसर्ग से गर्म होता है किंतु ऊपर पानी का स्तंभ होने के कारण उबल नहीं पाता। धीरे धीरे जलस्तंभ के नीचे का भाग उबाल के ताप से ऊँचा उठता है और भाप बनना आरंभ होता है। उठते हुए बबूलों से पानी को ऊपर उठाता है और पानी को नाली के मुंह की ओर उछालता हैं। इससे पानी के स्तंभ में हलकापन आता हैं और अधिक पानी वाष्प का रूप धारण करने लगता है। तब अकस्मात् तल के निकट का पानी भाप के रूप में विस्तृत होता है और शेष भाप को बाहर की ओर विस्फोट करने को बाध्य करता है। घरों में भी पानी गर्म करने के लिए जो उपकरण आजकल प्रयोग में आते हैं उन्हें गीज़र कहते हैं। (परमश्वेरीलाल गुप्त)