गिलक्राइस्ट, जॉन बौथविक (१७५९-१८४१) हिंदी के अँगरेज लेखक। इनका जन्म १७५९ में एडिनबारा में हुआ था। वहां से जार्ज हैरिएट्स अस्पताल में चिकित्सा संबंधी शिक्षा प्राप्त कर वे ३अप्रैल, १७८३ को ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी के रूप में सहायक सर्जन नियुक्त होकर कलकत्ते आए। १२ अक्टूबर, १७९४ को वे सर्जन नियुक्त हुए। १८०० में जब मार्क्विस वेलेज़ली ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना की तो वे हिंदुस्तानी विभाग के प्रोफेसर नियुक्त हुए। इस पद पर कार्य करते हुए उन्होंने हिंदी (हिंदुई) और प्रधानत: उर्दू (हिंदुस्तानी) में अनेक ग्रंथों का निर्माण कराया। भारतवर्ष में रहते हुए उन्होंने हिंदुस्तानी के अध्ययन और प्रचार के लिए विशेष प्रयत्न किया और निम्नलिखित प्रधान ग्रंथो की रचना की।
ए डिक्शनरी : इंग्लिश ऐंड हिंदुस्तानी, दो भाग (१७८७-१७९०)
ए ग्रैमर ऑव द हिंदुस्तानी लैंगवेज (१७९६)
द ओरिएंटल लिंग्विस्ट (१७९८, द्वितीय संस्करण, १८०२) में। फोर्ट विलियम कॉलेज (१८००) में हिंदुस्तानी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हो जाने पर उन्होंने अनेक पाठ्य पुस्तकों (भारतीय अध्यापकों द्वारारचित) का संपादन और निर्माण किया।
दि ऐंटी-जार्गोनिस्ट (दि ओरिएंटल लिंग्विस्ट का संक्षिप्त संस्करण, १८००)
द स्ट्रेंजर्स ईस्ट इंडियन गाइड टु द हिंदुस्तानी (१८०२ द्वितीय संस्करण लंदन से १८०८ में, वहीं से तृतीय संस्करण १८२० में)
द हिंदी स्टोरी टेलर (१८०२)
ए कलेक्शन ऑव डायलॉग्स, इंग्लिश ऐंड हिंदुस्तानी (१८०४, एडिनबरा से १८०९ में द्वितीय संस्करण, लंदन से १८२० में तृतीय संस्करण)
द हिंदी मॉरल प्रीसेप्टर (१८०३)
दि ओरिएंटल फैब्यूलिस्ट (१८०३)
स्वास्थ्य ठीक न रहने तथा अन्य कारणों से १८०४ में त्यागपत्र देकर इंग्लैंड वापस चले गए। भारत के गवर्नर जनरल ने उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी के लंदन स्थित कोर्ट से सिफारिश की और साथ ही एक व्यक्तिगत पत्र श्री एडिंगटन (बाद को लॉर्ड सिड्मथ) को भी लिखा। कुछ दिन तक गिलक्राइस्ट एडिनबरा में रहे जहां के विश्वविद्यालय ने ३० अक्टूबर, १८०४ को उन्हें एल-एल. डी. की उपाधि प्रदान की। फरवरी से मई, १८०६ तक उन्होंने हेलीबरी में पूर्वीय भाषाओं के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। १८०९ में कंपनी की नौकरी छोड़ देने के बाद उन्होंने एक बैंक भी खोला। किंतु इस कार्य में उन्हें सफलता नहीं मिली।
१८०६-८ में गिलक्राइस्ट ने एडिनबरा से ‘टी जार्गोनिस्ट’, ‘स्ट्रेंजर्स गाइड’, ‘ओरिएंटल लिंग्विस्ट’ तथा कई अन्य हिंदुस्तानी भाषा संबंधी रचनाएँ मिलाकर ‘द ब्रिटिश इंडियन मॉनीटर’ (दो भाग) नामक ग्रंथ प्रकाशित किया। १८१५ में उन्होंने ग्लास्गो से ‘पार्लियामेंट्री रिफॉर्म ऑन कॉनस्टीटयूशनल प्रिंसिपल्स और ब्रिटिश लॉयल्टी अगेंस्ट कॉनटीनेंटल रॉयलटी’ नामक एक सनसनीपूर्ण राजनीतिक रचना प्रकाशित की। १८१६ से वे लंदन में भारत में सरकारी नौकरी पाने के इच्छुक व्यक्तियों को निजी तौर से पूर्वी भाषाओं की शिक्षा देने लगे। दो वर्ष बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कर्मचारियों, विशेषत: चिकित्सक अफसरों को भारत भेजने से पूर्व हिंदुस्तानी के प्राथमिक सिद्धांतों की शिक्षा देने का निश्चय किया और इस कार्य के लिए गिलक्राइस्ट दो सौ पौंड वार्षिक पर लाइसेस्टर स्क्वायर में स्थापित ओरिएंटल इंस्टीटयूशन में प्रोफेसर नियुक्त किए गए। किंतु आर्थिक तथा अपनी पुस्तकों की बिक्री की दृष्टि से कंपनी के अधिकारियों से मतभेद हो जाने के कारण १८२५ में उन्हें दी जानेवाली सहायता बंद कर दी गई। इसी समय उन्होंने अपने समस्त ग्रंथों का संकलन ‘दि ओरिएंअल, ऑक्सीडेंटल ट्यूशनरी पायनियर’ के नाम से एक ही जिल्द में किया। १९२८ के प्रारंभ में उन्होंने ओरिएंटल इंस्टीटयूशन के पास ही हिंदुस्तानी कक्षा स्थापित करने की असफल चेष्टा की और इंस्टीट्यूशन के प्रथम वार्षिक विवरण (१अप्रैल, १९२८ को प्रकाशित) में उनकी कड़ी आलोचना की गई।
गिलक्राइस्ट ने अपने जीवन का शेष भाग अवकाश में व्यतीत किया। ९ जनवरी, १८४१ को पेरिस में उनका देहांत हो गया। उनके कोई संतान नहीं थी।
(लक्ष्मीसागर वाष्णेंय.)