गिरि, दीनदयाल हिंदी कवि (१८०२-१८६५ ई.) । इनका जन्म १८०२ ई. में वाराण्सी के गायघाट मुहल्ले में हुआ था। वे दश्नामी संन्यासी और कृष्णभक्त थे तथा देहली विनायक पर रहते थे। इनके गुरू का नाम गुशगिर था। स्वयं वे संस्कृत और हिंदी के विद्वान थे। अनुरागबाग, दृष्टांततरंगिणी, अन्योक्तिमाला, वैराग्यदिनेश ओर अन्योक्तिकल्पद्रम इनके पाँच ज्ञात ग्रंथ हैं जिनमें तीन नीति विषयक हैं। इनकी मृत्यु १८६५ ई. में हुई। (परमेश्वरीलाल गुप्त)