गॉल्फ इतिहास : गॉल्फ बहुत पुराना खेल है। अत: निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि इसका आरंभ कब, कहाँ और कैसे हुआ। इतिहासकार गॉल्फ का संबंध स्कॉटलैंड से जोड़ते हैं, किंतु इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि गॉल्फ के मूलभूत नियम हालैंड से स्कॉटलैंड पहुँचे। हालैंड में डच लोग बर्फीले मैदानों में डंडे तथा गेंद से गॉल्फ खेलते थे। एक खूँटा गाड़ दिया जाता था और गेंद को उसी पर मारा जाता था।
स्कॉटलैंड के इतिहास में गॉल्फ का जिक्र वहाँ की संसद् की मार्च, १४५७ की आज्ञप्ति (decree) में है। उन दिनों स्कॉटलैंड की जनता गॉल्फ में मगन होकर धनुर्विद्या की उपेक्षा कर रही थी। संसद् ने देश की सुरक्षा की दृष्टि से जनता को गॉल्फ से विरत होने की सलाह दी थी। लेकिन इस आज्ञाप्ति का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। अंत में सन् १४९१ में स्कॉटलैंड शासन ने गॉल्फ को निषिद्ध घोषित कर दिया। एक शताब्दी तक गॉल्फ वहाँ लुप्त रहा, किंतु पुन: पनपा और पहले से भी अधिक जनप्रिय हुआ।
प्राचीन काल से ही गॉल्फ राजकीय खेल रहा है। इंग्लैंड का राजा चार्ल्स प्रथम इसका बहुत बड़ा भक्त था। वह जब गॉल्फ खेलने में तल्लीन था तभी उसे आयरलैंड की गदर सूचना मिली। बाद में जब यह स्कॉटलैंड में न्यूकैसल में बंदी हो गया था तब उसे खुले मैदान में गॉल्फ खेलने की छूट मिली थी। जेम्स द्वितीय भी गॉल्फ का उपासक था। सन् १६८१-८२ में एडिनबरा की संसद् में वह राजकीय प्रतिनिधि नियुक्त था। एडिबनरा में दो उच्चकुलीन व्यक्तियों ने उसे चाहे जिसे साथी रखकर गॉल्फ खेलने की चुनौती दी। जेम्स ने जॉन पैटरसन नामक मोची को अपना साथी रखकर खेल जीत लिया और जीती रकम का आधा मोची को दे दिया। मोची ने उक्त धन से गॉल्फर्स लैंड नामक भवन बनवाया।
गॉल्फ का खेल-यह खुले भूभाग में खेला जाता है। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि एक विशेष प्रकार के डंडे से गेंद को मारकर मैदान में बने विशेष छिद्र में ले जाने का नाम गॉल्फ है। डंडा इस प्रकार का बना होता है कि गेंद कैसी भी स्थिति में क्यों न हो, उसे सहज ही मारा जा सकता है। खेल के मैदान में १८ छिद्र होते हैं। ये छिद्र खेल के मैदान की एक सीमा से आरंभ होकर समस्त क्षेत्र (green) तक फैले रहते हैं। छिद्र का व्यास ४ ९/४ इंच होता है। खेल का मैदान शाद्वल होना चाहिए। छिद्रों का क्रम नियत होता है और उसी क्रम से प्रत्येक खिलाड़ी अपने दौर में सभी छिद्रों को खेल आता है।
खेल के आरंभ में लकड़ी की छोटी खूँटी, या मुट्ठी भर बालू, पर गेंद रखकर वार किया जा सकता है ताकि पहला वार ठीक हो। लेकिन खेल आरंभ हो जाने पर जब तक गेंद छिद्र में नहीं चला जाता उसे हाथ या शरीर के किसी भाग से छूना मना है। इस खेल में खिलाड़ी या प्रतिद्वंद्वी किसी प्रकार की रुकावट या अड़चन नहीं पैदा करता। गॉल्फ में विजयी वह होता है जो कम से कम प्रहार में गेंद को टी (Tee) से पीटकर गढ़े (Cup) में छोड़ दे। देखने में सीधा सादा होने पर भी इस खेल में अनेक जटिलताएँ हैं। ज्यों ज्यों गेंद आगे बढ़ती है वह खिलाड़ी को परेशानी में डालती है। कहीं बालू में घुस जाती है, कहीं घास में छिप जाती है, तो कहीं पेड़ के पीछे छिप जाती है। वह टीले, पहाड़ी या नाले में भी जा सकती है। गॉल्फ के प्राय: प्रत्येक मैदान में एक या अधिक ‘जल संकट’ (water hazard) की व्यवस्था की जाती है। खिलाड़ी शायद ही कभी एक ही प्रकार की मार (shot) दूसरी बार मार पाता है।
प्रतियोगिताओं में गॉल्फ दो प्रकार से खेला जाता है। एक का नाम है मैच (match) खेल तथा दूसरे का स्ट्रोक (Stroke) खेल। मैच खेल में हार जीत का निर्णय जीते हुए छिद्रों की संख्या पर निर्भर होता है। जो भी खिलाड़ी अपने विरोधी से अधिक छिद्र जीतता है, वही जीतता है। स्ट्रोक में पूरे दौर में खिलाड़ी ने गेंद पर कितने वार किए, इसी पर हार जीत का फैसला होता है। अनौपचारिक दौर में स्ट्रोक और मैच एक साथ खेले जाते हैं, जिसे बहुत से लोग पसंद नहीं करते।
शौकिया खिलाड़ी प्रतियोगिताओं में मैच खेलते हैं, यद्यपि प्रारंभ में एकाध दौर स्ट्रोक खेलकर खिलाड़ियों की संख्या कम कर ली जाती है। स्ट्रोक में जो हार जाते हैं उन्हें छाँट दिया जाता हैं और अंत में बचे हुए दो खिलाड़ियों में मैच होता है।
व्यावसायिक खिलाड़ियों की प्रतियोगिता स्ट्रोक में होती है। ७२ छिद्रों या खेल के चार दौरों में जय पराजय का निर्णय होता है।
गॉल्फ का डंडा-गॉल्फ के डंडे (Club) में भी समय के साथ बहुत परिवर्तन होता आया है। पहले गॉल्फ का डंडा लकड़ी का बनता था, जिसका शीर्ष पतला तथा सँकरा होता था। आधुनिक गॉल्फ डंडे में इस्पात का दंड होता है तथा उसका शीर्ष सघन और छोटा होता है, ताकि जिस बिंदु से गेंद पर वार किया जाता है वहीं सारा भार केंद्रित हो जाय। गॉल्फ के डंडे में लकड़ी के शीर्ष भी होते हैं। काष्ठशीर्ष के लिए तेंदु (Persimmon) उत्तम है और लौहशीर्ष के लिए क्रोमियम पट्टित कुट्टित इस्पात (chromium plated forged steel)। ऐल्यूमीनियम, पीतल, इस्पात, प्लास्टिक तथा काठ के छोटे डंडों (पटर्स, putters) के लिए संतोषजनक सिद्ध हुए हैं।
पहले गॉल्फ के डंडे हाथ के बने होते थे, किंतु जब गॉल्फ बहुत जनप्रिय हो गया तब यह संभव नहीं था कि गॉल्फ के इतने डंडे हाथ से बन पाते। गॉल्फ के डंडे बनाने के बड़े बड़े कारखाने स्थापित हुए। सन् १९२० के लगभग गॉल्फ के डंडों की समकक्ष श्रेणियाँ (matched sets) बनीं। एक श्रेणी के सभी डंडे लंबाई, भार तथा दंडदुर्नम्यता में वर्गीकृत होते हैं। फलत: उन्हें चलाने पर अनुभूति (feel) एक सी होती हैं। खिलाड़ी एक श्रेणी (सेट) के चाहे जिस डंडे से सुविधापूर्वक खेल सकता है।
प्रत्येक अच्छे खिलाड़ी के अपने सेट में ३-४ लकड़ी के डंडे तथा ९-१० लोहे के डंडे होते हैं। सभी डंडे लंबाई, लचीलेपन, भार, शीर्ष के आकार तथा उस कोण, जिस पर दंड (shaft) का अंत तथा शीर्ष (head) आरंभ होता है तथा ऊर्ध्वाधर के डंडे के फलक के कोण की दृष्टि से भिन्न होते हैं। खिलाड़ी को उसकी शक्ति तथा दोलवैशिष्ट्य (swing characteristics) के अनुरूप भार, लंबाई तथा अन्य गुणों से युक्त गॉल्फ डंडा मिले इसके लिए खिलाड़ी को मापित (measured) होना चाहिए। अत: गॉल्फ का डंडा खरीदते समय गॉल्फ के अनुभवी तथा व्यावसायिक खिलाड़ियों का परामर्श लेना आवश्यक है।
गेंद-सन् १८४८ के पूर्व चमड़े की गेंदों से, जिनमें चिड़ियों के पंख ठूँस ठूँसकर भरे होते थे, गॉल्फ खेला जाता था। ये चर्मकंदुक महँगे, पिटने पर विकृत और गीले हो जाने पर व्यर्थ हो जाते थे। सन् १८४८ में गट्टी (Guttie) बनी। गट्टी गटापार्चा की गेंद होती थी। इन गेंदों में खराबी यह थी कि नई गेंद मारने पर पचक जाती और बल खाने लगती थी तथा वार की दिशा में आगे नहीं जाती थी। किंतु शीघ्र ही देखा गया कि क्षतविक्षत पुरानी गट्टी पिटने पर वार की दिशा में सीधे जाती है। अत: खेलने के पूर्व नई गट्टी को पीट पीटकर उसमें खरोंच, गड्ढे आदि बनाए जाने लगे। इसके बाद ऐसे साँचे बने जिसकी सहायता से गेंद पर खरोंचें बना ली जाती थीं। गट्टी गेंद सस्ती, पिटने पर विकृत न होनेवाली तथा पानी से अप्रभावित थी। इसका एकमात्र दोष यह था कि इसके चूर चूर हो जाने का भय रहता था। किंतु इन चूरों को एकत्रित कर, पिघलाकर एक गट्टी बनाई जा सकती थी। अत: यह दोष विशेष महत्वपूर्ण नहीं समझा गया।
सन् १८९८ में रबर के आंतरकवाली (rubber cored) गेंद का आविष्कार हुआ। इसने शीघ्र ही गट्टी को प्रतिस्थापित कर दिया।
पकड़ (Grip)-गॉल्फ खेलते समय डंडों को पकड़ने के कई ढंग हैं। उन सभी ढंगों से खेल ठीक से खेला जा सकता है, किंतु गॉल्फ खिलाड़ी ‘आतिछादी पकड़’ (Overlapping Grip) सबसे अधिक पसंद करते हैं। इस पकड़ में दोनों हाथ एक दूसरे से सटे होते हैं जिसमें उनकी शक्ति तथा नियंत्रण समरस हो। प्रारंभ में यह पकड़ अटपटी लगती है। किंतु अभ्यास हो जाने पर स्वाभाविक लगने लगती है। इसी प्रकार अंतर्ग्रथित पकड़ भी गॉल्फ खिलाड़ियों में प्रिय है। अतिछादी पकड़ से यह थोड़ी भिन्न है। इसमें दाएँ हाथ की कनिष्ठिका बाएँ हाथ की तर्जनी पर चढ़ती नहीं, वरन् बाएँ हाथ की तर्जनी तथा मध्यमा के बीच बैठ जाती है।
गॉल्फ के नियम-गॉल्फ की सरलता देखकर यह अनुमान लगाना स्वाभाविक है कि चूँकि गेंद को पीटकर टी से कप में ले जाने में गॉल्फ की सार्थकता है, अत: इसमें नियम के बंधन कम होंगे। किंतु तथ्य यह है कि खेल के बीच गेंद इतनी उलझनों में पड़ सकती है कि टी और कप के बीच एक हजार एक परिस्थितयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। परिस्थितियों में मार्ग ढूँढने के लिए बहुत से नियमों की आवश्यकता है। किंतु गॉल्फ के प्रारंभिक खिलाड़ी को सभी नियमों की जानकारी आवश्यक नहीं। केवल मोटे नियम जान लेने चाहिए।
गॉल्फ प्रतियोगिता के दो प्रकार हैं, मैच तथा स्ट्रोक। स्ट्रोक प्रतियोगिता का दूसरा नाम मेडल (Medal) खेल है। मैच तथा स्ट्रोक खेलों के नियमों में अंतर हैं।
गॉल्फ का आधारभूत पहला नियम यह है कि गेंद को टी पर रखकर मारो, फिर उसे तब तक हाथ से या शरीर के किसी अन्य अंग से मत छुओ जब तक वह छेद में न चला जाय। कुछ परिस्थितियों में खिलाड़ी बिना दंड (penalty) के गेंद उठा सकता है और कभी कभी दंडित होकर उठा सकता है, किंतु साधारणतया वह गेंद डंडे से ही छू सकता है।
गॉल्फ का दूसरा आधारभूत नियम यह है कि जोे खिलाड़ी छेद से सबसे दूर हो वही खेल प्रारंभ करे। इसे ‘संमान’ कहते हैं। ‘टीइंग’ भूमि (Teeing Ground) पर ‘संमान’ उसे मिलता है जो उसके पहलेवाले छेद को जीत लेता है। पहली ‘टीइंग’ भूमि पर टॉस द्वारा संमान का निर्णय होता है।
हर टीइंग भूमि पर दो टी-चिह्नक (Tee markers) एक दूसरे से कुछ गज के अंतर पर खड़े रहते हैं। इनके बीच में या इनके पीछे दो डंडे से कम दूरी पर गेंद को टी किया जाता है।
इच्छापूर्वक किया गया प्रत्येक वार गिना जाता है, भले ही वह गेंद के ऊपर से निकल जाए और गेंद टस से मस न हो। प्रारंभ में यदि टी पर से गेंद हवा लगकर गिर जाए तो उसे हाथ से उठाकर टी पर रखकर फिर मारा जा सकता है।
खिलाड़ी को यह अधिकार नहीं है कि वह मैदान की किसी चीज को दबाए या हटाए, या उबड़ खाबड़ स्थान को पीटकर ठीक करे, भले ही वह खिलाड़ी के मार्ग में बाधक हो। मैदान के किसी भी झाड़ आदि को झुकाने, हिलाने या तोड़ने का भी अधिकार उसे नहीं है। हाँ, वार करते समय या पैंतरा बदलते समय स्वत: कोई हेर फेर हो जाए तो वह क्षम्य है। खिलाड़ी को पेड़, झाड़ी तथा अन्य अचल प्राकृतिक बाधाओं के बीच खेलना पड़ता है। खिलाड़ी को अधिकार है कि वह मैदान में पड़े कंकड़, कागज, सूखे पत्ते, टहनी तथा अन्य मनुष्यकृत बाधाओं को दूर करे। उसके मार्ग में जलनिकास नाली पड़ जाए तो वह गेंद को उड़ाकर नाली के दूसरी तरफ तथा छिद्र के दूसरी तरफ फेंक सकता है। लेकिन जब गेंद ‘आपद्ग्रस्त’ हो (in hazard), जैसे खाड़ी के किनारे या बालुकाजाल में हो, तब गेंद का स्पर्श वर्जित है। आपद्ग्रस्त गेंद को मारने के कुछ नियम हैं। अधोमुखी दोलन (downward swing) के पूर्व खिलाड़ी वनस्पति के अतिरिक्त किसी चीज को छू नहीं सकता। किसी स्थान को पीट पाटकर समतल नहीं कर सकता। आपद्ग्रस्त गेंद जिस स्थिति में हो उसी में उसे मारने का नियम है। गेंद यदि चल रही है और वह जलमग्न नहीं है तो उसे मारना वर्जित है।
खिलाड़ी की गेंद का विरोधी की गेंद से लड़ जाना दंडनीय नहीं है। मैच खेल में यदि गेंद खिलाड़ी, उसके नौकर या डंडे को लग जाती है तो वह छिद्र खो बैठता है।
मैच खेल में गेंद यदि विरोधी को या उसके नौकर को या विरोधी के गॉल्फ के डंडे को छू ले तो विरोधी छिद्र खो बैठता है। गेंद का किसी गति शील पिंड में घुस जाना दंडनीय नहीं है। पड़ी हुई गेंद को यदि खेल में गैरशामिल व्यक्ति ठोकर मार दे तो खिलाड़ी दंडित नहीं होते।
विरोधी की गेंद भूल से मार देने पर खिलाड़ी छिद्र खो बैठता है, बशर्ते विरोधी भी भ्रम से उसकी गेंद को मारने न लग जाए। यदि खिलाड़ी खेल में गैरशामिल व्यक्ति की गेंद को भ्रम से मारने लग जाए और तुरंत अपना भ्रम समझकर विरोधी को बता न दे तो वह छिद्र हार जाता है।
यदि गेंद मैदान के बाहर जाकर गायब हो जाती है, या पिटकर खेलने लायक नहीं रह जाती, तो नई गेंद ली जाती है और खिलाड़ी के नाम एक वार (stroke) दंड के रूप में जोड़ा जाता है। गेंद खेलने लायक है या नहीं इसका निर्णय खिलाड़ी स्वयं करता है।
ग्रीन्स के नियम-यदि सूखे पत्ते वगैरह हटाते समय गेंद छ: इंच से अधिक सरक जाए तो खिलाड़ी के नाम एक वार दंड के रूप में जोड़ा जाता है।
पट्टरेखा (Line of putt) का स्पर्श वर्जित है। केवल मारने के पहले गेंद के ठीक सामनेवाला स्थान स्पर्श किया जा सकता है। नौकर या सहयोगी पट्ट की दिशा निर्देशित कर सकते हैं, किंतु जमीन छूकर या जमीन पर कोई चिह्न बनाकर नहीं।
मैच खेल में जब पट्टरेखा विरोधी की गेंद से अड़ी हुई हो तब खिलाड़ी को चाहिए कि वह विरोधी की गेंद को बचाता हुआ खेले। यदि विरोधी की गेंद छह इंच या इससे कम दूरी पर है तभी वह उसे हटा सकता है। स्ट्रोक मैच में पास की गेंद उठाकर अलग रखी जा सकती है, भले ही वह पट्टरेखा पर न हो।
जिस गेंद को खेलने का क्रम नहीं आया है, उसे भूल से मारने पर उसे तुरंत यथास्थान रख देना चाहिए। यह दंडनीय नहीं है।
मैच खेल में विरोधी द्वारा खिलाड़ी की गेंद का मारा जाना दंडनीय नहीं है, परंतु स्ट्रोक में यह दंडनीय है।
मैच में यदि गेंद छिद्र में पड़े हुए ध्वजदंड के सहारे रुक जाए तो खिलाड़ी ध्वजदंड हटाकर गेंद को छिद्र में डाल सकता है। स्ट्रोक में भी यही नियम है, यदि वार २० गज से अधिक दूरी से हुआ हो। कम होने पर दंड होता है।