गालव विश्वामित्र के शिष्य, एक प्रसिद्ध ऋषि। हरिवंश पुराण में इन्हें विश्वामित्र का पुत्र कहा गया है। गालव का हठ प्रसिद्ध है। विद्याध्ययन के बाद इन्होंने अपने गुरू विश्वामित्र से गुरुदक्षिणा माँगने का बहुत हठ किया। चिढ़कर विश्वामित्र ने ८०० श्यामकर्ण घोड़े माँगे। गालव ने बहुत प्रयत्न किया किंतु असफल रहे। अंत में इन्होंने विष्णु की आराधना की और उनकी कृपा से, ययाति ने अपनी पुत्री माधवी, को इन्हें इस कार्य में सहायता के लिए दिया। गालव माधवी को लेकर क्रमश: हरिश्व, दिवोदास और उशीनर के यहाँ गए, जिन्होंने बारी बारी से माधवी से विवाह करके एक एक पुत्र प्राप्त किया। इस प्रकार ६०० घोड़े तो मिल गए। शेष की प्राप्ति असंभव जान गालव ने उसके बदले माधवी को ही विश्वामित्र का समर्पित कर गुरुदक्षिणा पूरी की। विश्वामित्र को भी माधवी से एक पुत्र पैदा हुआ। उसके बाद उन्होंने माधवी को लौटा दिया, जिसे गालव ययाति को दे आए। माधवी को चिरकुमारी रहने का वरदान प्राप्त था। बाद में गालव जंगल में तपस्या करने चले गए।

(भोलानाथ तिवारी)