गार्सा द तासी, जोसेफ़ हेलिओदोर (१७९४-१८७८) फ्रांसीसी प्राच्यविद्याविशारद। इनका जन्म २५ जनवरी, १७९४ ई. को हुआ था। उन्होंने बैरों सिल्वेतर दे सैली (Baron Silvestre de sacy) से पूर्वीय भाषाओं की शिक्षा प्राप्त की। १८२२ में स्थापित ‘सोसिएते एसियातीक’ के मंत्री के रूप में गार्सां द तासी ने उसी वर्ष पूर्वीय साहित्य पर एक रचना प्रकाशित की। १८२८ में वे पूर्वीय भाषाओं के अध्ययन के लिए स्थापित एक विशेष स्कूल में हिंदुस्तानी के सर्वप्रथम प्रोफेसर नियुक्त हुए। इसके अतिरिक्त वे पेरिस के फ्रांसीसी इंस्टीट्यूट, लंदन, कलकत्ता, मद्रास और बंबई की एशियाटिक सोसाइटियों, सेंट पीटसवर्ग की इंपीरियल एकेडेमी ऑव साइंसेज़, म्यूनिख, लिस्बन और ट्यूरिन, की रायल एकेडेमियों, नार्वे, उप्साला और कापेनहेगेन की रायल सोसाटियों, अमरीका के ओरिएंटल इंस्टिट्यूट, लाहौर के अंजुमन और अलीगढ़ इंस्टिट्यूट के सदस्य थे। उनकी सदस्यता का यह क्रम १८३८ में प्रारंभ हुआ। १८३७ में उन्होंने ‘नाइट ऑव द पोल’ आदि उपाधियाँ प्राप्त की थीं, और संभवत: युद्धक्षेत्र से भी अपरिचित न थे।
तासी की सर्वाधिक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण रचना ‘इस्त्वौर द ला लितूरेत्यूर ऐंदुई ऐ ऐंड ऐंदुस्तानी’ (हिंदी और हिंदुस्तानी साहित्य का इतिहास) (प्रथम संस्करण, दो जिल्दों में, १८३९ और १९४७-द्वितीय परिवर्धित एवं संशोधित संस्करण, तीन जिल्दों में पहली दो जिल्दें १८७०, तीसरी १८७१)। ‘इत्स्वार’ के अतिरिक्त उनकी रचनाओं में ‘ले ओत्यूर ऐंदूस्तानी उल्यूर उवरज़’ (१८६८, पेरिस, द्वितीय संस्करण), ‘ल लांग ए ल लितरेत्यूर ऐंदूस्तानी द १८५० ओ १८६९, ‘दिस्कुर द उवरव्यूर दु कुरा द ऐंदूस्तानी’, ‘ल लांग ए ल लितरेत्यूर ऐंदूस्तानी-रेव्यू ऐन्यूऐल, १८७०-१८७६’, ‘रु दी मां द ल लांग ऐंदुई (ग्रैमैअर द ल लांग ऐंदुई’) ‘रु दी मां द ल लांग ऐंदूस्तानी’, ’मेम्वार सूर ल रेलीजिओ मुसलमान दां लिंद’, ‘ल पोएज़ी फ़िलोसोफ़ीक ऐ रेलीज्यूज़ शे लै पैर्सा’, ‘रेह्तोरीक दै नैसि ओं मुसलमान’, ‘इस्लाम द प्रैल कोरान’ (१८७४) आदि रचनाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सर विलियम जास कृत फारसी व्याकरण (अनुवाद, १८४५), अल अत्तर (El attar) कृत ‘लैंग्वेज ऑव बर्डस्’ वली की कविताओं और ‘दि ऐडवेंचर्स ऑव कामरूप’ (अनुवाद १८५४-५५) आदि के अनुवाद भी गार्सां द तासी ने किए। साथ ही उन्होंने फारसी, अरबी, हिंदुस्तानी और तुर्की भाषाओं की रूपक रचनाओं, कविताओं और लोकप्रिय गीतों का संग्रह किया। अनेक भाषण भी मिलते हैं। उनके इतिहास ग्र्थ्रां से ज्ञात होता है कि उन्होंने भारत के लोकप्रिय उत्सवों का विवरण भी प्रस्तुत किया था, और महाभारत का एक संस्करण भी प्रकाशित किया था। उनके कुछ भाषण तो ‘खुतबात तासी’ के नाम से उर्दू में अनुदित हो चुके हैं। उनके अनेक लेख ‘सोसिएते एसियातीक’ के जर्नल में मिलते हैं। गार्सां द तासी की मृत्यु ३ सितंबर, १८७८ को पेरिस में हुई। (लक्ष्मीसागर वाष्णीय)