गार्गी उपनिषद् काल की एक ब्रह्मवादिनी विदुषी। बृहदारण्यक उपनिषद् में गार्गी वाचक्नवी के नाम से इनका उल्लेख आता है। शंकराचार्य के अनुसार गार्गी वचक्नु नामक किसी व्यक्ति की कन्या थी। कुछ अन्य आचार्य गर्ग ऋषि के गोत्र में उत्पन्न होने के कारण इनको गार्गी कहते हैं और वाचक्नवी इसका नाम मानते हैं। इनका याज्ञवल्कीय कांड में उल्लेख मिलता है। विदेह के राजा जनक ने एक समय यज्ञ किया जिसमें कुरु और पांचाल देशों के ब्राह्मण एकत्र थे। उनकी सभा में जनक ने यह जानने के लिए कि कौन सबसे बड़ा ब्रह्मज्ञानी है, घोषणा की कि जो अपने को सबसे महान् ज्ञानी सिद्ध कर देगा उसे एक सहस्र स्वर्णपत्रों से जड़ी सींगोवाली गाएँ पारितोषिक में दी जायेगी। किसी विद्वान् को साहस नहीं हुआ, परंतु याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्य से उन गायों को आश्रम की ओर हाँक ले जाने की आज्ञा दी, इसपर सभा के सभी विद्वान् याज्ञवल्क्य से शास्रार्थ करने लगे परंतु याज्ञवल्क्य ने सारे प्रश्नों का बड़ी विद्वता के साथ समाधान किया। जनक की इसी सभा में अन्य विद्वानों के साथ गार्गी का भी उल्लेख आता है। उसने भी याज्ञवल्क्य की परीक्षा के लिए प्रश्न पूछे थे।

इसकी विद्वता का पता उनके द्वारा याज्ञवल्क्य से पूछे गए प्रश्नों से चलता है। याज्ञवल्क्य ने कहा कि सारी सृष्टि जल में ओतप्रोत है, तो गार्गी ने पूछा कि जल किसमें ओतप्रोत है? आकाश में। आकाश किसमें ओतप्रोत है? इस प्रकार प्रश्नों की परंपरा में याज्ञवल्क्य ने कहा कि सब ब्रह्म में ओतप्रोत है तो गार्गी ने पूछा कि ब्रह्म किसमें ओतप्रोत है? याज्ञवल्क्य ने कहा कि गार्गी तू अब प्रश्न की सीमा का अतिक्रमण कर रही है। अब आगे मत पूछ, अन्यथा कहीं तेरा सिर कटकर न गिर पड़े। इसपर गार्गी के मन को संतोष नहीं हुआ। जब सभी सभासदों ने याज्ञवल्क्य की परीक्षा ले ली और निरुत्तर हो गए तो गार्गी ने सभासदों को आज्ञा देकर कहा कि यदि याज्ञवल्क्य मेरे दो प्रश्नों का उत्तर दे दें तो वास्तव में याज्ञवल्क्य सबसे बड़े ब्रह्मज्ञानी मान लिए जायँगें; फिर याज्ञवल्क्य से उसने कहा कि जैसे कोई काशी या विदेह का योद्धा अपने धनुष पर दो बाण चढ़ाकर किसी के सामने खड़ा हो जाय, उसी प्रकार मैं (गार्गी) तुम्हारे सामने दो प्रश्नों को लेकर खड़ी हूँ। इस प्रकार की उक्ति से यह स्पष्ट है कि उपनिषत्काल में गार्गी एक अत्यंत प्रतिभासंपन्न जानी मानी विदुषी थी।

गार्गी ने जो प्रश्न किए वे भी बड़े कठिन से थे। ब्रह्म अनिर्वचनीय और निर्गुण माना गया है। गार्गी ने याज्ञवल्क्य से पूछा कि वह अक्षर तत्व ब्रह्म क्या है जिसमें आकाश प्रभूति सारी सृष्टि समाविष्ट है? यदि याज्ञवल्क्य इस प्रश्न का उत्तर देते हुए अक्षर तत्व का वर्णन करें तो अवाच्य का वर्णन करने का दोष होता है और यदि वर्णन ही न करें तो गार्गी के प्रश्न का उत्तर न दे सकने के कारण उनकी हार होती है। इस घटना से ज्ञात होता है कि गार्गी तर्कनिष्णात् थी। उसी के प्रश्न के उत्तर में याज्ञवल्क्य ने अपने दर्शन का प्रतिपादन किया।

हरिवंश पुराण में दुर्गा को भी गार्गी कहा गया है। (रामचंद्र पांडेय.)