गायकवाड़ बडौदा का मराठा राजवंश। इस वंश के संस्थापक दामाजी एक गायकवाड़ (गाय चरानेवाला) के पुत्र थे; इस कारण ही यह वंश गायकवाड़ कहलाया। मुगल सम्राट् मुहम्मदशाह और दक्षिण के निष्कासित सूबेदार निजाम-उल-मुल्क की सेनाओं के बीच १७२१ ई. में बरार स्थित बालापुर में जो युद्ध हुआ था उसमें जो मराठा सेना निजाम-उल-मुल्क की सहायता कर रही थी, उसमें दामाजी मात्र सैनिक थे। किंतु उसमें उन्होंने जिस साहस और रणकौशल का परिचय दिया, उससे प्रभावित होकर मराठा सेनापति ने उन्हें शमशेर बहादुर की उपाधि प्रदान की और अपना सहायक सेनापति नियुक्त कर दिया।

इस घटना के दो वर्ष बाद दामाजी की मृत्यु हो गई और उनके स्थान पर उनके भतीजे भीलाजी राव त््रयंबक राव सेनापति के सहायक बने। इन लोगों ने गुजरात और उसके आसपास के इलाकों में धावे मारना और मनमाने रूप में कर वसूलना आरंभ किया। बाजीराव पेशवा उनके इस कार्य से बहुत नाराज हुआ और उन्हें विद्रोही करार दिया। १७३१ ईट्ठ में पेशवा की सेना के साथ बड़ौदा के पास भिडंत हुई और त््रयंबके राव और उनके अनेक साथी मारे गए। निदान विद्रोहियों ने हथियार डाल दिए। तब त््रयंबक राव के शिशु पुत्र सेनापति घोषित किए गए। पीलाजी उनके अभिभावक बनाए गए और उन्हें सेना खास खेल की उपाधि दी गई। विजित क्षेत्र से कर वसूलने का उत्तरादायित्व उन्हें सौंपा गया।

इस प्रकार गुजरात का सारा प्रंबध पीलाजी के हाथ में आया। उन्होंने आय का आधा भाग पेशवा को देना स्वीकार किया। इस प्रकार गायकवाड़ राज्य की स्थापना हुई और १७३२ में बड़ौदा उसकी राजधानी बनी।

उसी वर्ष पीलाजी की हत्या हो गई और उनके पुत्र दामाजी राव गायकवाड़ (द्वितीय) अधिकारी बने। उन्हीं के वंशज बड़ौदा क्षेत्र में अंग्रेजों के संरक्षण में राज्य करते रहे। अंग्रेजों के हाथ से भारत के स्वतंत्र होने पर बड़ौदा राज्य भारतीय जनसंघ का अंग बन गया और इस वंश के लोग उसके सामान्य नागरिक। (परमेश्वरीलाल गुप्त)