गाय एक प्रख्यात पशु जो संसार में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है तथा दूध के निमित्त पाली जाती है। इसका भारत में वैदिक काल से महत्व माना जाता है। आरंभ में आदान प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में इसका उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। धार्मिक दृष्टि से भी वह पवित्र मानी जाती रही है। उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।

लोकोपयोगी दृष्टि में भारतीय गाय को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। पहले वर्ग में वे गाएँ आती हैं जो दूध तो खूब देती हैं, लेकिन उनकी पुंसंतान अकर्मण्य अत: कृषि में अनुपयोगी होती है। इस प्रकार की गाएँ दुग्धप्रधान एकांगी नस्ल की हैं। दूसरी गाएँ वे हैं जो दूध कम देती हैं किंतु उनके बछड़े कृषि और गाड़ी खींचने के काम आते हैं। इन्हें वत्सप्रधान एकांगी नस्ल कहते हैं। कुछ गाएँ दूध भी प्रचुर देती हैं और उनके बछड़े भी कर्मठ होते हैं। ऐसी गायों को सर्वांगी नस्ल की गाय कहते हैं। भारत की गोजातियाँ निम्नलिखित हैं:

सायवाल जाति-सायवाल गायों में अफगानिस्तानी तथा गीर जाति का रक्त पाया जाता है। इन गायों का सिर चौड़ा, सींग छोटी और मोटी, तथा माथा मझोला होता है। ये पंजाब में मांटगुमरी जिला और रावी नदी के आसपास लायलपुर, लोधरान, गंजीवार आदि स्थानों में पाई जाती है। ये भारत में कही भी रह सकती हैं। एक बार ब्याने पर ये १० महीने तक दूध देती रहती हैं। दूध का परिमाण प्रति दिन १०-१६ सेर होता है। इनके दूध में मक्खन का अंश पर्याप्त होता है।

सिंधी-इनका मुख्य स्थान सिंध का कोहिस्तान इलाका है। बिलोचिस्तान का केलसबेला इलाका भी इनके लिए प्रसिद्ध है। इन गायों का वर्ण बादामी या गेहुँआ, शरीर लंबा और चमड़ा मोटा होता है। ये दूसरी जलवायु में भी रह सकती हैं तथा इनमें रोगों से लड़ने की अद्भुत शक्ति होती है। संतानोत्पत्ति के बाद ये ३०० दिन के भीतर कम से कम ५० मन दूध देती हैं।

काँकरेज-कच्छ की छोटी खाड़ी से दक्षिण-पूर्व का भूभाग, अर्थात् सिंध के दक्षिण-पश्चिम से अहमदाबाद और रधनपुरा तक का प्रदेश, काँकरेज गायों का मूलस्थान है। वैसे ये काठियावाड़, बड़ोदा और सूरत में भी मिलती हैं। ये सर्वांगी जाति की गाए हैं और इनकी माँग विदेशों में भी है। इनका रंग रुपहला भूरा, लोहिया भूरा या काला होता है। टाँगों में काले चिह्न तथा खुरों के ऊपरी भाग काले होते हैं। ये सिर उठाकर लंबे और सम कदम रखती हैं। चलते समय टाँगों को छोड़कर शेष शरीर निष्क्रिय प्रतीत होता है जिससे इनकी चाल अटपटी मालूम पड़ती है।

मालवी-ये गाएँ दुधारू नहीं होतीं। इनका रंग खाकी होता है तथा गर्दन कुछ काली होती है। अवस्था बढ़ने पर रंग सफेद हो जाता है। ये ग्वालियर के आसपास पाई जाती हैं।

नागौरी-इनका प्राप्तिस्थान जोधपुर के आसपास का प्रदेश है। ये गाएँ भी विशेष दुधारू नहीं होतीं, किंतु ब्याने के बाद बहुत दिनों तक थोड़ा थोड़ा दूध देती रहती हैं।

थरपारकर-ये गाएँ दुधारू होती हैं। इनका रंग खाकी, भूरा, या सफेद होता है। कच्छ, जैसलमेर, जोधपुर और सिंध का दक्षिणपश्चिमी रेगिस्तान इनका प्राप्तिस्थान है। इनकी खुराक कम होती है।

बचौर-ये गाएँ प्रति दिन सेर दो सेर दूध देती हैं। इनका प्राप्तिस्थान बिहार में सीतामढ़ी जिले का बचौर और कोइलपुर परगना है।

पवाँर-पीलीभीत, पूरनपुर तहसील और खीरी इनका प्राप्तिस्थान है। इनका मुँह सँकरा और सींग सीधी तथा लंबी होती है। सींगों की लबाई १२-१८ इंच होती है। इनकी पूँछ लंबी होती है। ये स्वभाव से क्रोधी होती है और दूध कम देती हैं।

भगनाड़ी-नाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश इनका प्राप्तिस्थान है। ज्वार इनका प्रिय भोजन है। नाड़ी घास और उसकी रोटी बनाकर भी इन्हें खिलाई जाती है। ये गाएँ दूध खूब देती हैं।

दज्जल-पंजाब के डेरागाजीखाँ जिले में पाई जाती हैं। ये दूध कम देती हैं।

गावलाव-दूध साधारण मात्रा में देती है। प्राप्तिस्थान सतपुड़ा की तराई, वर्धा, छिंदवाड़ा, नागपुर, सिवनी तथा बहियर है। इनका रंग सफेद और कद मझोला होता है। ये कान उठाकर चलती हैं।

हरियाना-ये ८-१२ सेर दूध प्रतिदिन देती हैं। गायों का रंग सफेद, मोतिया या हल्का भूरा होता हैं। ये ऊँचे कद और गठीले बदन की होती हैं तथा सिर उठाकर चलती हैं। इनका प्राप्तिस्थान रोहतक, हिसार, सिरसा, करनाल, गुडगाँव और जिंद है।

अंगोल या नीलोर-ये गाएँ दुधारू, सुंदर और मंथरगामिनी होती हैं। प्राप्तिस्थान मद्रास, हैदराबाद, गुंटूर, नीलोर, बपटतला तथा सदनपल्ली है। ये चारा कम खाती हैं।

राठ-अलवर राज्य की गाएँ हैं। खाती कम और दूध खूब देती हैं।

गीर-ये प्रतिदिन ५-८ सेर दूध देती हैं। इनका मूलस्थान काठियावाड़ का गीर जंगल है।

देवनी-दक्षिण हैदराबाद और हिंसोेल में पाई जाती हैं। ये दूध खूब देती है।

नीमाड़ी-नर्मदा नदी की घाटी इनका प्राप्तिस्थान है। ये गाएँ दुधारू होती हैं।

अमृतमहल, हल्लीकर, बरगूर, बालमबादी नस्लें मैसूर की वत्सप्रधान, एकांगी गाएँ हैं। कंगायम और कृष्णवल्ली दूध देनेवाली हैं।

स. ग्रं.-चंद्रावती राधारमण : संतुलित गो-पालन।