गाजी खाँ बदख्शीं मुगल दरबारी। यह पहले मिर्जा सुल्तान का मुसाहिब था फिर मुगल सम्राट अकबर के यहाँ एकहजारी मंसबदार बना। राणा प्रताप के विरु द्ध युद्ध में यह मानसिंह की सेना के एक भाग का अध्यक्ष था। ७० वर्ष की आयु में (१५८४ ई.) अवध में ही मरा। लेखनी और तलवार दोनों के धनी गाजी खाँ ने ही अकबर के सामने सिज्द: करने की रीति का प्रचलन किया था। इसका वास्तविक नाम काजी निजाम था।