गाजीउद्दीन हैदर (१७६६-१८२७ ई.) अवध का नवाब। नवाब वजीर सआदत अली खाँ का ज्येष्ठ पुत्र जो अपने प्रतिद्वंद्वी तथा अनुज शम्सउद्दौला के विरुद्ध, अंग्रेजों की सहायता से, १८१४ में, रिफतउद्दौला रफीउल्मुल्क की उपाधि धारण कर राज्यासीन हुआ। अँगरेजी सरकार के ही निर्देशन पर उसने १८१९ ई. में मुगल सम्राट से संबंध विच्छेद कर अबूजफ़र मुइजउद्दीन शाहेजमाँ की उपाधि ग्रहण कर अपने को अवध का स्वतंत्र शासक घोषित किया। उसकी यह स्वतंत्रता नाम मात्र की थी; वस्तुत: बाह्य नीति में तो वह पूर्णत: अँगरेजी प्रभुत्व के अधीन था; आंतरिक नीति भी परोक्ष अरोपक्ष रूप में ब्रिटिश रेजिडेंट द्वारा संचालित होती थी।

गाजीउद्दीन हैदर का बचपन सुखी न था। प्राय: बाईस वर्ष तक पिता से पृथक रहने के कारण उसे प्रशासकीय अनुभव प्राप्त न हो सका। शराब की लत ने उसे विलासप्रिय तथा पराधीन प्रकृति का बना दिया था। उसका दांपत्य जीवन भी कटु ही था। उसकी ज्येष्ठ पत्नी बादशाह बेगम विदुषी होते हुए भी कर्कशा और महत्वाकांक्षिणी थी। अपना एकाधिकार जमाए रखने के लिये उसने राजकीय षडयंत्रों में पर्याप्त भाग ले राजकीय विच्छृंखलता में योग दिया। अपने एकमात्र पुत्र तथा उत्तराधिकारी नसरीउद्दीन हैदर को महल की चहारदीवारी में सुरक्षित रख उसके व्यक्तित्व को कुंठित बना उसे विकृतप्रकृति तथा विलासी बना दिया।

चरित्र से गाजीउद्दीन जितना विलासी था उतना ही विद्याप्रेमी भी। वह फारसी, अरबी और उर्दू भाषाओं में पारंगत था। वह स्वयं लेखक और कवि था। ज्योतिष, रसायन तथा तंत्र मंत्र में उसकी रु चि थी। उर्दू काव्य को उसने विशेष प्रोत्साहन दिया। मीर तकी मुसहफी, नासिख, आतिश, नसीम, इंशा ऐसे गजल गो; तथा दबीर और अनीस जेसे मर्सिया गो उसके दरबार की शोभा थे। उसने चित्रकला तथा स्थापत्य कला को भी यथेष्ट प्रोत्साहन दिया। उसके माता पिता के मकबरे लखनऊ स्थापत्य शैली के सुंदर उदाहरण हैं। गाजीउद्दीन हैदर प्रकृति से उदार, शिष्ट और सहिष्णु था। हिंदुओं के प्रति उसका सद्व्यवहार था। राजा बख्तावरसिंह उसका दीवान था; तब राजा गुलजारीमल उसकी कोषाध्यक्ष। किंतु कुशाग्रबुद्धि होते हुए भी, पराधीनप्रकृति होने के कारण, न उसमें संकट से संघर्ष करने की क्षमता ही थी, और न स्वावलंबी प्रशासक बनने की दृढ़निश्चयता ही।

उसके राज्यकाल की तीन मुख्य समस्याएँ थीं। तीनों की में वह, अपनी चारित्रिक त्रुटियों तथा अँगरेजों के निरंतर हस्तक्षेप के कारण, नितांत असफल रहा। उसके जीवनकाल में राजकीय षड्यंत्रों का ताँता बना रहा। इन संघर्षों में, अपने प्रतिद्वंद्वियों बादशाह बेगम, हाजी मिर्जा तथा मेहदी अली खाँ के विरुद्ध विजय अंतत: आगामीर की हुई। बादशाह के प्रधान मंत्री के नाते राज्य में सबसे अधिक प्रभुत्व उसी का था, किंतु उसके निरकुंश स्वार्थपर व्यवहार ने वातावरण तथा व्यवस्था को विषाक्त बना दिया। शासन की दूसरी समस्या भूमि व्यवधान संबंधी था। सैन्य अधिकार से वंचित होने के कारण वह उद्दंड विद्रोही जमींदारों, को नियंत्रित करने में असमर्थ था। अँगरेजों ने उसे सैनिक सहायता देने से इनकार कर दिया था। शासक पर अव्यवस्था के आरोपों की आड़ में वे स्वनिर्देंशित सुधार तथा अँगरेज कर्मचारी स्थापित करवाना चाहते थे। इसी कशमकश में, राज्य में, अव्यवस्था तथा अराजकता, और उसी मात्रा में, अँगरेजों का आंतरिक हस्तक्षेप बढ़ता ही रहा। उसकी तीसरी बड़ी समस्या थी अँगरेजों के परोक्ष अपरोक्ष हस्तक्षेप से मुक्ति पाना, जिसका समाधान असंभव ही था, वास्तव में, अवध राज्य अँगरेजों का गुल्लख बन गया था। इस प्रकार, अपने ही आश्वासनों के विरु द्ध, नितांत अशोभनीय रूप से, गवर्नर जनरल ने शाहंशाहे अवध से, चार किस्तों में, कर्ज के रूप में, तीन करोड़ पचास लाख रुपए वसूल किए। वास्तव में गाजीउद्दीन हैदर की दशा पिंजडे के उस पक्षी की तरह थी जो पिंजड़े से बाहर उड़ने में तो घबड़ाता था और कुचोए जाने पर पिंजड़े के अंदर पंख फड़फड़ाकर रह जाता था।

सं. ग्रं.----मेजर आर. डब्ल्यू. बर्ड : डकोयटीज़ इन एक्सेलासिस ऑर द स्पोलिएशन ऑव अवध बाई दि ईस्ट इंडिया कंपनी; खान बहादुर मौलवी मोहम्मद मसीहउद्दीन : अवध, इटस प्रिंसेज़ ऐंड इट्स गवर्नमेंट; एच० सी० ईविन : द गार्डेन ऑव इंडिया: विलियम नाइटन: द प्राइवेट लाइफ़ ऑव ऐन ईस्टर्न किंग; अजमद अली; मुरक्क़-ए-खुसखी; कमालुद्दीन हैदर : सवाहिनहात ए सलातीन; मोहम्मद अहदअली : मुरक्क़-ए-अवध; नजमुल गनी खाँ : तारीख-ए-अवध। (राजेंद्र नागर)