गाजी मूलत: यह शब्द स्वेच्छया सैनिक (वालंटियर) अथवा अधिकारी का पर्याय है जो नबी के किसी गजवा या धर्मयुद्ध में विजयी हुआ हो। यदि ऐसे संग्राम में वह मृत्यु को प्राप्त होता तो वह ऐसा शहीद माना जाना था जिसे अल्लाह की अनंत कृपा उपलब्ध होती। कुरान घोषित करता है कि दीन के मामलों में कोई दबाव नहीं है और वह बलप्रयोग की अनुज्ञा धार्मिक मामलों में केवल निम्नोक्त कारणों के हेतु देता है: अल्लाह की अराधना करने के कारण यदि शत्रु तुम्हें अपने घर से निकाल बाहर करे तो किसी दूसरे स्थान पर बस जाने के बाद उसके विरुद्ध बलप्रयोग कर सकते हो। नबी के हदास (आदेश) यह स्पष्ट कहते हैं कि यदि किसी मुस्लिम सैनिक के विचार में कोई भौतिक उद्देश्य आ जाता है तो यह कदापि नहीं मानना चाहिए कि वह धर्म के हेतु लड़ रहा है। चूंकि कुरान का आदेश केवल नबी के धर्मयुद्धों के ही लिए है अत: मुस्लिम विद्धानों ने गजवा और गाजी शब्दी केवल नबी के युद्ध तक ही सीमित माना है। यह युद्ध स्वेच्छा सैनिकों द्वारा लड़े जाते थे। आवश्यक व्यय चंदे से आता था और जनहानि अकथनीय कम होती थी। नबी के उन सारे धर्मयुद्धों के परिणामस्वरूप जिनमें समस्त अरब का धर्मपरिवर्तन हो गया, दोनों पक्षों के हत लोगों की संख्या संभवत: एक सहस्र से भी अधिक न होगी। स्पष्टत: जिन अधिकारियों को लड़ने के लिए नियमित वेतन मिलता है, न तो वे गाजी समझे जा सकते हैं, न शहीद।

बाद में मुस्लिम बादशाहों और उनके अधीनस्थ विद्वानों ने धर्मयुद्धों के विचार का अपने साम्राज्यवादी तथा आक्रामक प्रयोजनों के हेतु गलत अर्थ लगाया। इस प्रकार के आक्रामक युद्धों को जिहाद (जिहद से) कहा गया। विशिष्ट मुस्लिम विद्वानों ने महान आदर्श की इस अप्रतिष्ठा का विरोध किया। किंतु बादशाहों और शासक वर्ग की भौतिक महत्वकांक्षा के आगे उनका विरोध प्रभावहीन सिद्ध हुआ। स्वयं बादशाह भी अपने को गाजी कहने लगे। (मोहम्मद हबीब)