गांधी-इरविन समझौता १९२९ ई. में कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में स्वतंत्रता संवंधी प्रस्ताव पास किया और २६ जनवरी, १९३० को स्वतंत्रता दिवस घोषित कर कांग्रेस के सदस्यों ने शपथ ली। तदनंतर उग्र रूप में सविनय अवाज्ञा आंदोलन आरंभ हो गया जो क्रमश: सारे देश में आँधी की तरह फैल गया। भारत की अंग्रेजी सरकार ने आँख मूँदकर अपना दमनचक्र चलाया, पर इससे आंदोलन फूँस की आग की तरह फैलता चला गया। इसी प्रसंग में ४ मार्च, १९३१ को वायसराय लार्ड इरविन और महात्मा गांधी के बीच एक समझौता हुआ जो गांधी-इरविन समझौता के नाम से ख्यात है। इस समझौते की मुख्य शर्तें निम्नांकित थीं :
१-- सविनय अवज्ञा आंदोलन को तत्काल स्थगित कर दिया जायगा। अर्थात् कानूनों की अवहेलना करना, भूमिकर तथा अन्य कर न देना, सविनय अवज्ञा के संबंध में समाचार पत्र छापना तथा सैनिक, साधारण एवं सरकारी कर्मचारियों को सरकार के विरूद्ध भड़काना अथवा उन्हें त्यागपत्र देने के लिए प्रोत्साहन देना आदि कार्यों को तत्काल बंद कर दिया जायगा। सरकार सविनय अवज्ञा आंदोलन के कानूनों को रद्द कर देगी।
२--सविनय अवज्ञा आंदोलन के संबंध में गिरफ्तार किए गए ऐसे सभी लोग रिहा कर दिए जायेंगे जिनके दंड का आधार हिंसा न हो।
३--सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय जिन लोगों ने अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया है उन्हें यदि इस प्रकार के पदों में स्थायी रूप से भर दिया गया हो तो सरकार पुन नियुक्त करने को बाध्य न होगी। किंतु ऐसे कर्मचारियों को पुन स्थान प्राप्त करने के लिए आवेदनपत्र देने पर सरकार उन्हें नियुक्त करने का भरसक प्रयत्न करेगी।
४--कानून उलंघन के मुकदमे उठा लिए जायेंगे। जुर्माने भी माफ कर दिए जायेंगे। जब्त की गई संपत्ति, यदि अभी तक बेची न गई होगी तो, वापस लौटा दी जायगी।
५--आंदोलन के संबंध में नियुक्त की गई अतिरिक्त पुलिस, जिसका खर्च स्थानीय निवासियों को उठाना पड़ता था, स्थानीय सरकार की इच्छा पर वापस बुला ली जाएगी।
६--महात्मा गांधी भारतीय पुलिस के अत्याचारों की सार्वजनिक छानबीन पर जोर देंगे।
७--विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार, यदि यह राजनीतिक आधार पर केवल अंग्रेजी वस्त्रों अथवा मद्यपान आदि के विरूद्ध हो तो उसे समाप्त कर दिया जायगा। भारतीय वस्तुओं के प्रयोग की माँग करने के संबंध में धरना देने का सहारा नहीं लिया जाएगा। यदि धरना दिया भी जायगा तो उसका रूप उग्र नहीं होगा। अनुचित दबाव डालना, धमकाना, विदेशी वस्तुओं के विरुद्ध प्रदर्शन, जनता के साधारण कार्यों में विघ्न नहीं होगा। और न कानून की अवहेलना नहीं की जाएगी।
८--नमक पर कर समाप्त नहीं होगा और न नमक कानून उठाया जायेगा।
९--देश के लिये नया शासनविधान बनाने के लिये कांग्रेस द्वितीय गोलमेज संमेलन में अपने प्रतिनिधि भेजेगी।
१०--यदि कांग्रेस ने इस समझौते की इन शर्तों का ठीक से पालन नहीं किया तो सरकार जो उचित समझेगी करेगी।
इस समझौते के फलस्वरूप सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त कर दिया गया। इस संबंध में बंदी बनाए गए लोग छोड़ दिए गए।
इस समझौते से देश के राष्ट्रीय आंदोलन को लाभ हुआ या क्षति, इस प्रश्न पर लोगों का मतभेद है। महात्मा गांधी का कहना था कि यह समझौता दोनों पक्षों की विजय है। इसका कारण यह है कि वे तथा लार्ड इरविन दोनों ही निष्कपट भाव से समझौता करने को उत्सुक थे। अनेक भारतीयों का कहना था कि यह समझौता कांग्रेस की विजय थी। उनके अनुसार महात्मा गांधी ने लोगों को सरकार के दमनचक्र से बचा लिया और भविष्य में सरकार ने अपनी माँगे पूरी करवाने के लिये कांग्रेस की स्थिति पहले से सुधार दी।
इस समझौते के आलोचकों की भी कमी न थी। उनका कहना था कि इस समझौते से भारत को क्या मिला। नमक कानून ज्यों का त्यों रहा। महात्मा गांधी भगत सिंह तथा उनके साथियों को फांसी से नहीं बचा पाए।
१९३१ के कांग्रेस के कराची अधिवेशन में इस समझौते का विरोध किया गया और बड़ी कठिनता से कांग्रेस इस समझौते को स्वीकार कर सकी।
(मिथिलेश चंद्र पांडा)