गवर्नर जनरल अंग्रेजी भाषा में गवर्नर शब्द का अर्थ शासक है। ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत विभिन्न स्तर की इकाइयाँ थी। कुछ उपनिवेश थे, कुछ संरक्षित राज्य थे और कुछ शासनादेश भी थे। अत: ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत होने के नाते ब्रिटिश राजमुकुट के प्रतिनिधि जो अपने पदों, शक्तियों और स्तरों के अनुसार गवर्नर जनरल, गवर्नर या लेफ्टिनेंट गवर्नर कहलाते थे। इन इकाइयों पर शासन करते थे।
१७७३ के रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के पूर्व बंगाल, मद्रास तथा बंबई में संचालकों द्वारा नियुक्त कंपनी का एक एक गवर्नर रहता था। इन गवर्नरों के अधिकार समान थे। अत: भारतीय राज्यक्षेत्र के अंदर कोई ऐसा अधिकारी नहीं था जिसकी आज्ञाएँ सर्वमान्य हों। रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के द्वारा भारतीय प्रदेशों का राजनीतिक एकीकरण हुआ, बंगाल का गवर्नर जनरल बनाया गया और बंबई और मद्रास के गवर्नर इसके अधीन कर दिए गए। गवर्नर जनरल की सहायता के लिये चार सदस्यों की एक कौंसिल नियुक्त कर दी गई। १७७३ में भारत का पहला गवर्नर जररल वारेन हेस्टिंग्ज़ नियुक्त हुआ। हेस्टिंग्ज़ को विकट समस्याओं का सामना करना पड़ता था क्योंकि उसके सहायतार्थ जो समिति संगठित हुई थी, वह उसका विरोध करती थी। अत: केंद्रीय शासन को सुधारने के लिये पार्लमेंट को नए ऐक्ट बनाने पड़े जिनमें १७८१,१७८६ तथा १८५८ के ऐक्ट विशेष उल्लेखनीय हैं। सन् १८५८ में महारानी विक्टोरिया ने अपनी घोषणा द्वारा लार्ड केनिंग को अपना प्रथम वाइसराय तथा गवर्नर जनरल बनाया। फलस्वरूप गवर्नर जनरल को वाइसराय की उपाधि प्राप्त हुई। अत: अब ईस्ट इंडिया कंपनी से शासनसत्ता छीन कर उसे ब्रिटिश पार्लमेंट के अधीन करने का निश्चय हुआ। अब से भारनीय शासन महारानी विक्टोरिया के नाम से होगा, ऐसी घोषणा १८५१ में की गई। अस्तु, भारत के शासन का सत्ताधिकार ब्रिटिश क्राउन के अधीन हो गया अत: १८५९ से गवर्नर जनरल तथा वाइसराय इन दो शब्दों के दो अर्थ हो गए। गवर्नर जनरल का पद भारत के शासक के रूप में था। उसके पद एवं अधिकार कानून के द्वारा निश्चित किए गए थे और भारत में वह ब्रिटिश राजशक्ति (राजा) का प्रतिनिधि था। वाइसराय की उपाधि के पीछे कोई कानूनी उपाधि के पीछे कोई कानूनी उद्घोषणा नहीं थी। पार्लमेंट के द्वारा भारत के शासन के लिये जो अधिनियम बनाए गए हैं उनमें गवर्नर जनरल शब्द का प्रयोग है, वाइसराय शब्द का प्रयोग नहीं है। परंतु लार्ड केनिंग के बाद जितने गवर्नर जनरल हुए वे वाइसराय की उपाधि से विभूषित थे। वस्तुत: वाइसराय भारत में इंग्लैंड के राजा का प्रतिनिधि होने से वह ब्रिटिश राजा का प्रतीक था और गवर्नर जनरल ब्रिटिश राजमुकुट का प्रतिनिधि था। भारतीय संविधान में गवर्नर जनरल का स्थान अद्वितीय रहा है। उसकी संवैधानिक शक्तियाँ अत्यधिक थीं। रैमजे मेक्डोनल्ड के अनुसार वाइसराय प्रभुशक्ति का आदरसूचक चिह्न तथा भारत में आधुनिक संसार में दो ही अनियंत्रित सत्ताधारी शासक हैं-----एक रूस का ज़ार तथा दूसरा भारत का वाइसराय और गवर्नर जनरल। १८५७ के विद्रोह के बाद भारतीय शासन पर ब्रिटिश राजतंत्र का पूर्ण अधिकार स्थापित हो गया। भारत में इस शासनतंत्र का प्रतिनिधि गवर्नर जनरल था। भारतीय लोकमत को संतुष्ट करने के लिये ब्रिटिश पार्लमेंट द्वारा अधिनियम निर्मित हुए जिनमें १९०९, १९१९ तथा १९३५ के भारतीय ऐक्ट विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन सुधारों के द्वारा संपूर्ण अधिकार गवर्नर जनरल के हाथों में सुरक्षित रखे गए थे। १९३५ के ऐक्ट में पहले के विधानों की अपेक्षा उत्तरदायी शासन स्थापित करने की ओर एक लंबा कदम उठाया गया था। परंतु इससे भारतीय लोकमत संतुष्ट नहीं था। प्रथम तो गवर्नर जनरल तथा गवर्नर के विशेषाधिकार काफी विस्तृत थे। १९३५ के संविधान के अनुसार गवर्नर जनरल संघराज्य के सर्वोच्च शासकीय अधिकारी थे। वाइसराय का पद इस पद से सर्वथा अलग था पर प्रचलित प्रथा के अनुसार दोनों ही पदों के लिये एक ही व्यक्ति नियुक्त किए जाने की व्यवस्था थी। संविधान द्वारा द्वैध प्रणाली के आधार पर केंद्र में आंशिक उत्तरदायी सरकार की व्यवस्था की गई थी। देशरक्षा, ईसाई धर्म, परराष्ट्र संबंध, कबायली प्रदेशों की देखभाल आदि संरक्षित विषय निश्चित हुए थे। इनका शासन गवर्नर जनरल अपने विवेक के अनुसार भारत मंत्री के निरीक्षण में, उनके आदेशानुसार करने को थे। अन्य कर्तव्यों का पालन मंत्रीमंडल की सहायता एवं मंत्रण से होता था। इनकी नियुक्ति गवर्नरजनरल द्वारा होती थी। अत: १९३५ के शासन संबंधी ऐक्ट द्वारा गवर्नर जनरल के कुछ अधिकार साधारण तथा कुछ असाधारण श्रेणी के थे। साधारण अधिकारों का प्रयोग उन्हें मंत्रियों के परामर्श से और विशेषाधिकारों का प्रयोग अपने विवेक तथा व्यक्तिगत निर्णय के अनुसार करना था। उक्त दोनों प्रकार के कामों को गवर्नर जनरल मंत्री के निरीक्षण में उनके आदेशानुसार करता था। अत: गवर्नर जनरल को जो अनेक अधिकार किए गए थे उनका वर्गीकरण इस प्रकार से किया जा सकता है: शासनसंबंधी अधिकार, विधानमंडल संबंधी अधिकार, तथा विशेष उत्तरदायित्व के अधिकार। गवर्नर गनरल सम्राट का प्रतिनिधि अर्थात वाइसराय होने के नाते भारतीय रियासतों से संबंधित विषयों तथा सम्राट के अधिकारों की रक्षा और उनके कर्तव्यों के पालन के लिए भी उत्तरदायी थे। अत: गवर्नर जनरल निरंकुश शासक थे। मार्च, १९४७ में गवर्नर जनरलों की इस महान् परंपरा के अंतिम गवर्नर जनरल लार्ड लुई माउंटबैटन हुए। उन्होंने जून में भारतविभाजन की योजना प्रस्तुत की और १८ जुलाई, १९४७ को भारत-स्वतंत्रता-अधिनियम पारित किया गया तथा चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के अंतिम गवर्नरजनरल हुए।((कुमारी) ाुभदा तेलंग)