गर्भपात, गर्भस्राव (Abortion, miscarriage) गर्भावस्था में प्रसव के निश्चित समय से पूर्व गर्भ या भ्रूण के गर्भाशय से बाहर आ जाने को गर्भपात या गर्भस्राव कहते है। आयुर्वेद के ग्रंथों में पाँचवें महीन तक गर्भस्राव और उसके पश्चात् गर्भपात कहा गया है, किंतु दोनों में कोई अंतर नहीं है। क्रिया की विधि समान है। यह घटना १०० में से ७५ स्त्रियों में अंतिम मासिक धर्म के प्रथम दिन से १६ वें सप्ताह के अंत के पूर्व होती है। पाश्चात्य देशों में अनुसंधान से पता लगा है कि लगभग एक चौथाई प्रतिशत स्राव गर्भावस्था के निश्चित लक्षण प्रकट होने के पूर्व होते है। स्रवित भागों की परीक्षा करने पर बहुतों में संकोचित डिंब या भ्रूण का पता भी नहीं लगता, केवल अपूर्ण गर्भनाल और कलाएँ मिलती है।

गर्भस्राव का कारण प्राय: गर्भोत्पत्ति में कोई विकार होता है। गर्भनाल का विकार, या विकास में त्रुटि, अनेक स्रावों का कारण होती है। ऐसे रोगियों में गर्भस्राव का कोई विशेष कारण नहीं निश्चित किया जा सकता। कुछ रोग, विशेषकर सिफिलिस, विषाक्तिक दशाएँ, अंतस्राव या हॉरमोनों की कमी, पोषण की अति न्यूनता, अथवा माता की रचनात्मक त्रुटियाँ समुचित गर्भवृद्धि के अवरोध का विशेष कारण होती है और उनसे गर्भस्राव हो सकता है।

गर्भस्राव के विशेष लक्षण उदर के निचले भाग में प्रसव के समान पीड़ाएँ और योनि से रक्त का निकलना है। शामक उपचार करने से तथा गर्भशय के संकोचों को रोकने से गर्भस्राव रोका जा सकता है। प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) अथवा ऐसी ही अन्य दवाओं का इंजेक्शन देने से गर्भाशय के संकोच रूक जाते हैं, किंतु यदि भ्रूण ही विकृत हो तो गर्भस्राव अवश्यंभावी है। लक्षण प्रकट होते ही रोगी को शैयासीन करके चिकित्सक का परामर्श लेना आवश्यक है।

गर्भपात करना अधिकांश देशों में अवैधानिक और विधान से दंडनीय माना जाता है। केवल ऐसी दशा में, जब माता के जीवन की रक्षा के लिये चिकित्सा की दृष्टि से अनिवार्य समझा जाए तभी गर्भस्राव कराना वैध होता है। इसको चिकित्सात्मक गर्भस्राव कहते हैं। अन्यथा गर्भस्राव करानेवाला और जो स्त्री गर्भस्राव कराए, दोनों दोषी और दंडनीय होते हैं।

अवैध गर्भमोचन से माता के जीवन के प्रति बहुत आशंक उपस्थित होती है। इस प्रकार के गर्भमोचन से अमरीका में तथा अन्य सभ्य देशों में पर्याप्त मृत्यु दर पाई गई है। जिन गर्भस्थ शिशुओं की मृत्यु का ठीक ठीक कारण नहीं मालूम होता उनकी संख्या कम नहीं है। शासन को इसी कारण कानून बनाना पड़ा है जिससे विशेष परिस्थितियों में चिकित्सकों को गर्भपात कराने का अधिकार है। (मुकुंदस्वरूप वर्मा)