गर्दे, लक्ष्मण नारायण (१८८९-१९६०) प्रख्यात संपादक तथा साहित्यकार। उनका जन्म काशी में महाशिवरात्रि को हुआ था। १९०७ ई. में विज्ञान लेकर स्कूल फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण की। कुछ समय तक एफ़. ए. कक्षा में अध्ययन किया किंतु राष्ट्रीय भावनाओं के कारण पढ़ाई छोड़ दी तथा उन्हीं कार्यों में लग गए। ५० वर्षों तक आप भारतीय साहित्य और संस्कृति का पत्रकारिता के माध्यम से संवर्धन करते रहे। हिंदी पत्रकारिता के विकासकाल में आपने उसे ऐसे साँचे में ढ़ालने का सफल कार्य किया, जो राष्ट्रीयता से तो ओतप्रोत थी ही, आध्यात्मिकता, नैतिकता और सांस्कृतिक भावना से भी युक्त थी।
संपादक के रूप में आपका संबंध वेंकटेश्वर समचार हिंदी वंगवासी भारत मित्र तथा नवजीवन से रहा। काशी के दैनिक सन्मार्ग में आप चक्रपाणि के नाम से विशेष लेख लिखा करते थे। जुलाई,१९१९ में आम भारत मित्र के संपादक हुए और छह वर्षों तक भारत मित्र के माध्यम से गांधीवाद तथा साम्यवाद को प्रमुख रूप से प्रचार करते रहे। उस समय साम्यवाद का प्रचार अंग्रेजों से विरोध प्रकट करने के निमित्त किया जाता था। जब लोग महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन के समर्थन में हिचकते थे, आपने निर्भीकता से उसका समर्थन किया। इस संबंध में आपने महामना मालवीय जी और विश्वकवि रवींद्रनाथ से भी महत्वपूर्ण विचारविमर्श कर अपनी स्थापनाएँ उनके सम्मुख प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत की थी उक्त दैनिक पत्रों के अतिरिक्त आपने कलकत्ते से श्रीकृष्ण संदेश साप्ताहिक तथा काशी से मासिक नवनीत पत्रिका भी निकाली थी, जिनका हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। श्रीकृष्ण संदेश प्रथम सचित्र विचारशील आदर्श साप्ताहिक था।
आप बहुमुखी प्रतिभा के यशस्वी साहित्यकार भी थे। आपकी सरल गीता का देश में ही नहीं वृहत्तर भारत के प्रवासी भारतीयों में भी खूब प्रचार हुआ। श्रीकृष्ण चरित्र, एशिया का जागरण, जापान की राजनीतिक प्रगति, गांधी सिद्धांत, आरोग्य और उसके साधन आपकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। गांधी सिद्धांत, महात्मा गांधी की स्वराज्य पुस्तक का अनुवाद है, जिसकी भूमिका स्वयं बापू ने लिखी थी। आपके दो उपन्यास नकली प्रोफेसर तथा मियाँ की करतूत उस समय काफी लोकप्रिय हुए। गीता तथा अरविंद दर्शन के आप महान् व्याख्याता थे। अरविंद आश्रम से आपके योग प्रदीप तथा गीता प्रबंध के दो अनुवाद प्रकाशित हुए। आपने माननीय श्री श्रीप्रकाश के साथ मांटेगू-चेम्सफोर्ड-रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद किया था। कल्याण के योगाक, संतांक, वेदांतांक, साधनांक आदि अनेक विशेषांकों के संपादन में आपका महान योगदान रहा है। आपने महाराष्ट्र के संतों, ज्ञानेश्वर, एकनाथ, तुकाराम के चरित्र भी लिखे हैं गूढ़ से गूढ़ विषयों को सरलता से बोधगम्य कर देना आपकी शैली की प्रमुख विशेषता है।
१९२० ई. की विशेष कांग्रेस के बाद आम बड़ा बाजार (कल्कत्ता) जिला कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष चुने गए थे। राष्ट्रीय आंदोलन के प्रसंग में आप जेल भी गए। (ल. शं. व्या.)