गर्ग नाम के अनेक आचार्य हो गए हैं। आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र आदि विभिन्न विद्याओं के आचार्य गर्ग एक ही व्यक्ति हैं, ऐसे नहीं कहा जा सकता। इनके काल भी भिन्न भिन्न हैं। आयुर्वेदशास्त्रज्ञ गर्ग के विषय में आयुर्वेद का इतिहास द्रष्टव्य है।

वास्तुशास्त्रविद् गर्ग भी प्रसिद्ध हैं। इनका काल ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी से ईसा की प्रथम शताब्दी के बीच है (देखिए स्टडी ऑन वास्तुविद्या, पृ. १०२)।

ज्योतिर्विद्याविद् गर्ग पुराणों में समृत हैं। मत्स्यपुराण २२९-२३८; महाभारत, गदापर्व ९।१४; भगवत, १०।८ अ. में ज्योतिषी गर्ग का निर्देश हैं। निबंध ग्रंथों में ज्योतिगर्ग का बहुधा उल्लेख है। एक गार्गी संहिता का नाम भी मिलता है (काणे कृत हिस्ट्री ऑव द धर्मशास्त्र भाग १, पृ. ११९)। कर्न कृत बृहतसंहिता की भूमिका में इस गर्ग के काल आदि के विषय में विचार किया गया है।

एक गर्ग कृषिशास्त्रविद् भी थे। कृषिपुराण ग्रंथ में इनका नाम मिलता है। गर्ग के वचन और मन बृहत्संहिता (सटीक) में वेदांग ज्योतिष के सोभाकार भाष्य में, अद्भुतसागर में तथा निबंध ग्रंथ और ज्योतिष विद्या के ग्रंथों में बहुलतया मिलते हैं। शंकर बालकृष्ण दीक्षित कृत भारतीय ज्योतिष ग्रंथ में भी ज्योतिषी गर्ग संबंधी विशद विवेचन है।

स्मृति शास्त्र में भी गर्ग संबंधी विशद विवेचन है।

स्मृति शास्त्र में भी गर्ग का उल्लेख है (देखिए हिस्ट्री ऑव द धर्मशास्त्र, भाग १ पृष्ठ ११९)। (रामशंकर भट्टाचार्य)