गरीबदास (१७१७-१७७८ ई.)। प्रख्यात संत जिनसे गरीब पंथ विकसित हुआ। इनका जन्म हरियाणा प्रदेश के रोहतक जिले के छुड़ानी ग्राम में एक जाट जमींदार के घर हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि बारह वर्ष की अवस्था में कबीरदास से इनकी भेंट हुई; कुछ लोगों का कहना है कि भेंट नहीं हुई थी वरन् उन्होंने स्वप्न में देखा और अपना गुरु मान लिया। कबीर अथवा किसी अन्य को उन्होंने अपना गुरु माना यह निश्चित नहीं हैं; उनके सिद्धांत कबीरपंथ के निकट भी नहीं हैं। लगता है कि उनका किसी संप्रदाय से संबंध न था। वे आजीवन अपने ग्राम छुड़ानी में रहे और गृहस्थ बने रहे। गृहस्थ रहते हुए वे सत्संग करते रहे। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके शिष्य सलोत गद्दीदार बने। अपने जीवनकाल में गरीबदास ने अपने गाँव में एक मेले का आयेजन किया। था। वह मेला आज तक होता है।

गरीब पंथ का प्रचार मुख्य रूप से पूर्व पंजाब और हरियाणा में ही है और दिल्ली, अलबर, नारनौल, बिजेसर उसके केंद्र हैं और उसके अनुयायी सभी वर्ग के लोग हैं। उनमें हिंदू-मुसलमान जैसा कोई भेद नहीं है। गरीबदास शब्दातीत, निर्गुण परब्रह्म के उपासक थे। उनकी दृष्टि में भुलोक और स्वर्गलोक में कोई भेद नहीं था। माया के कारण ही वह लोगों को भिन्न जान पड़ता है। वे भावनाशील पंडित और अच्छे गायक थे। उन्होंने २४ हजार पदों का हिंखर बोध नाम से संग्रह किया था जिसमें १७ हजार पद तो स्वयं उनके हैं। शेष कबीर अथवा अन्य लोगों के कहे जाते हैं। इनके अतिरिक्त उनमें प्रबोध और अध्यात्म बोध उनकी अन्य रचना है।

स्वामी दयालुदास नाम के उनके एक शिष्य हुए। उन्होंने अपने पंथ के मठों की स्थापना की। आज उनके उत्तर प्रदेश और पंजाब में १२५ मठ बताए जाते हैं। उन्हें वे लोग गरुद्वार कहते हैं। वहां वे गरीबदास के ग्रंथों की पूजा अर्चना करते हैं। (परमेश्वरीलाल गुप्त)