गफ, लार्ड यह आयर्लैंड का फील्ड मार्शल था। इसका जन्म लाइमरिक में ३ नवंबर, सन् १७७९ को हुआ तथा २ मार्च, १८५९ को इसकी मृत्यु हो गई। लगभग १५ वर्ष की आयु में यह सेना में प्रविष्ट हुआ। इसने उत्तमाशा अंतरीप तथा वेस्ट इंडीज में कार्य किया, फिर सन् १८०९ में वेलिंग्टन के अधीन पुर्तगाली सेना में मेजर बन गया। फ्रांसीसियों से ओपार्तो लेने मे इसने बड़ा शौर्य दिखाया। तालवेरा में यह घायल हो गया और बाद मे लेफ्टिनेंट कर्नल बना दिया गया। बरोसा तथा निवेद के युद्धों में इसने बड़ा पराक्रम दिखाया, पर बाद में वह पुन: काफी घायल हो गया। इसपर स्पेन के राजा ने उसे नाइट की उपाधि दी।
कुछ वर्षों तक आराम करके वह भारत आया और सन् १८३७ मे मैसूर में सेनापति बना दिया गया। इसके बाद प्रथम चीनी युद्ध के संबंध में इसे चीन जाना पड़ा। सन् १८४२ में नानकिंग की संधि हो जाने पर सारी अंग्रेज सेनाएँ वापस बुला ली गई। गफ भी लौट आया ओर बैरोनेट बना दिया गया। अगले वर्ष (सन् १८४३) में वह भारतस्थित अंग्रेज सेनाओं का प्रधान सेनापति बना दिया गया। उसी वर्ष के अंत में उसने मराठों के विरुद्ध युद्ध करके उन्हें महाराजपुर में हरा दिया। दो वर्ष बाद अंग्रेजों की सिखों से भिडंत हो गई। मुदकी तथा फिरोजशाह के युद्धों के बाद गफ ने सोगराँव में सिखों पर पूर्ण विजय पा ली और उन्हें लाहौर की संधि करने के लिये बाध्य किया। पुरस्कारस्वरूप पार्लमेंट ने गफ को अर्ल बना दिया। सन् १८४८ में पुन: सिखों से युद्ध प्रारंभ हो गया और गफ रणक्षेत्र में जा डटा।। चिलियानवाला के युद्ध में अंग्रेजों की बड़ी क्षति हुई इसलिये गफ के स्थान पर सिंधविजयी सर चार्ल्स नेपियर को भेजा गया। नेपियर के पहुँचने के पूर्व ही, फरवरी १८४९ में, गुजरात के युद्ध में गफ ने सिखों को पीस डाला। इसके बाद वह इंग्लैंड वापस चला गया। उसे बाइकाउंट बना दिया गया। पार्लमेंट तथा कंपनी के उसे चार हजार पाउंड वार्षिक पेंशन देने के लिए आधा आधा भार ग्रहण किया। सन् १८६२ में उसे फील्ड मार्शल बना दिया गया। (मिथिलेश चंद्र पांडा)