गटापरचा (Sapotaceae) सैपोटेसिई कुल के तथा पालेंक्विअम् गट्टा (Palanquium gutta) और पालेंक्विअम औब्लौंगिफोलिया (P. oblongifolia) प्रजाति के कतिपय वृक्षों के आक्षीर (latex) को रबर की तरह ही सुखाने से जो पदार्थ प्राप्त होता है उसे गटापरचा कहते हैं। ये पेड़ प्रधानतया मलय द्वीपसमूह और ब्राजील में पाए जाते है। मलाया के पेड़ो का गटापरचा सर्वश्रेष्ठ होता है। इसी कुल के कुछ अन्य पेड़ों से भी अपेक्षाकृत निकृष्ट कोटि का गटापरचा होता है। गटापरचा के पेड़ ७० से १०० फुट तक ऊँचे और धड़ पर तीन फुट व्यास तक के होते हैं। ३० वर्ष में पेड़ तैयार होता है। पेड़ की उपज के लिये आर्द्र जलवायु और २० से ३२ सें. तक का ताप अच्छा होता है। बीज या धड़ की कलम से पेड़ उगाया जाता है। पेड़ की छाल को छेदने से आक्षीर निकलता है, पर मलाया में पेड़ों को काटकर धड़ में एक एक फुट की दूरी पर एक इंच चौड़ी नली बनाकर आक्षीर इकट्ठा कर लेते हैं और फिर वहाँ से निकालकर खुले पात्र में आग पर उबालकर गटापरचा प्राप्त करते हैं।
गटापरचा दो मणिभीय रूपों----ऐल्फा रूप, गलनांक ६५० सें. तथा बीटा रूप, गलनांक ५६० सें.-और अमणिभीय रूपों में पाया जाता है। यह ठोस, कड़ा और अप्रत्यास्थ होता है, किंतु गरम करने से कोमल हो जाता है। ऊँचे ताप से यह विघटित हो जाता है। क्षारों और तनु अम्लों का इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सांद्र अम्लों से यह आक्रांत होता है। क्लोरीन और गंधक की इसपर क्रिया होती है। यह जल में घुलता नहीं, पर कार्बनिक विलायकों में घुल जाता है। रसायनत: यह का५ हा८ (C5 H8) एककों से बना है। इसका अणुभार ३०,००० के लगभग पाया गया है।
कड़ा और अभंगुर होने के कारण गॉल्फ की गेंदों और केबल के आवरणों, विद्युत् पृथक्कारियों (electrical insulators), छड़ियों, छुरी की मूठों और चाबुकों, च्युइंग गम आदि इत्यादि के बनाने में प्रयुक्त होता है। इसके स्थान में अब सस्ते संश्लिष्ट प्लास्टिकों का व्यवहार बढ़ रहा है। गटापरचा से बहुत मिलता जुलता एक पदार्थ बलाटा (Balata) है, जिसे बलाटा गोंद या बलाटा गटा भी कहते हैं। यह अन्य पेड़ों से प्राप्त होता हैं। इसके भी उपयोग वे ही हैं जो गटापरचा के।
(फूलदेवसहाय वमा)