गच्छ जैन आचार्य का परिवार अथवा एक आर्चा से दीक्षित साधु समुदाय। किंतु यह अब जैन धर्म के विभिन्न संप्रदायों और उप-संप्रदायों का बाधक माना जाता है। प्रत्येक गच्छ की गुरु परंपरा को गच्छावली अथवा पट्टावली कहते हैं। इन गच्छावलियों का आरंभ भगवान् महावीर से होकर अंतिम गुरु तक आता है और नए गुरूओं का नाम जुटता जाता है। इस समय जैन धर्म में चौरासी गच्छ कहे जाते हैं पर वस्तुत: उनकी संख्या इनसे कहीं अधिक है। एक उपलब्ध सूची में उनके
१७३ नाम गिनाए गए हैं। गच्छों के नाम या तो स्थानवाची या आचार्यवाची होते हैं। (परमेश्वरीलाल गुप्त)