गंजीफा ताश के ढंग का एक प्राचीन भारतीय खेल। इसका वर्णन बाबरनामा, काबू-ने-इस्लाम, आइने-अकबरी, गिरधर कृत गंजीफा खेलन, श्रीतत्वनिधि आदि ग्रंथों में मिलता है। इसमें ९६ पत्ते होते हैं जो चंग, बरात, किमाश, शमशेर, आदि आठ वर्गो में बँटे होते हैं। श्रीतत्वनिधि में गंजीफा के १३ रूपों का वर्णन है। गंजीफा एक रूप में वर्ग विभाजन राशि अथवा दशावतार के रूप में विभाजित पाया जाता है। इसमें १२० पत्ते होते हैं जो १२ पत्तों के दस वर्ग में विभाजित होते हैं। ये पत्ते मत्स्य, कच्छ, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध (अथवा कलंकी), राजा, वजीर और इक्का कहे जाते हैं। तीन खिलाड़ियों के बीच पत्ते बाँटे जाते हैं। जिसके हाथ में राम राजा के रूप में आते हैं वह खेल आरंभ करता है और राम वर्ग का एक हलका पत्ता फेंकता है। शेष दो खिलाड़ी भी हलके पत्ते फेंकते हैं। इस प्रकार तीनों पत्तों को मिलाकर गणना की जाती है। इसी तरह विविध प्रकार से पत्ते मिलाने का प्रयास होता है। जिसके पास पत्ते अधिक हो जाते हैं वह विजयी समझा जाता है।
यह खेल संप्रति इस देश में मृतप्राय है। इस कारण पुस्तकों में वर्णित इस खेल की प्रणाली बोधगमय नहीं रही। उसके समझने का अन्य कोई साधन नहीं हैं।
(परमेश्वरीलाल गुप्त)