गंगोत्री टेहरी गढ़वाल (उत्तर प्रदेश) स्थित एक तीर्थ (स्थिति : ३१ उ. अ.; ७८ ५७ पू. दे.)। यह स्थान कैलास से १४२ मील पर स्थित है। यहाँ पर शंकराचार्य ने गंगादेवी की एक मूर्ति स्थापित की थी। जहां इस मूर्ति की स्थापना हुई थी वहां १८वीं शती ई. में एक गुरखा अधिकारी ने मंदिर का निर्माण करा दिया है। इसके निकट भैरवनाथ का एक मंदिर है। इसे भगीरथ का तपस्थल भी कहते हैं। जिस शिला पर बैठकर उन्होंने तपस्या की थी वह भगीरथशिला कहलाती है। उस शिला पर लोग पिंडदान करते हैं। गंगोत्री में सूर्य, विष्णु, ब्रह्मा आदि देवताओं के नाम पर अनेक कुंड हैं।

भगीरथशिला से कुछ दूर पर रुद्रशिला है जहां कहा जाता है कि शिव ने गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था। इसके निकट ही केदारगंगा, गंगा में मिलती है। इससे आधी मील दूर पर वह पाषाण के बीच से होती हुई ३०-३५ फुट नीचे प्रपात के रूप में गिरती है। यह प्रताप नाला गौरीकुंड कहलाता है। इसके बीच में एक शिवलिंग है जिसके ऊपर प्रपात के बीच का जल गिरता रहता है।

यद्यपि जनसाधारण के बीच यही माना जाता है कि गंगा यहीं से निकली हैं किंतु वस्तुत: उनका उद्गम १८ मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत में है। वहाँ गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है। (परमेश्वरीलाल गुप्त)