गंगादेवी चौदहवीं शती ई. की एक प्रख्यात कवयित्री। विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक बुक्क की पुत्रवधू और कृष्ण की पट्टमहिषी। उन्होंने संस्कृत में मथुरा विजय (वीरकंपराय चरित्र) नामक एक काव्य की रचना की थी इसमें उन्होंने अपने पति के पराक्रम का वर्णन किया है। किंतु वह मात्र यशोगान नहीं है। काव्य की दृष्टि से भी उसका महत्व है। यह काव्य अपने पूर्ण रूप में उपलब्ध नहीं है। उसके केवल आठ सर्ग ही मिले हैं। (परमेश्वरीलाल गुप्त)