खुसरू सुलतान मुगल शासन का एक प्रमुख अधिकारी। इसका पिता नजर मोहम्मद खाँ बलख बदख्शाँ का शासक था। १०५५ हिजरी में उसने अपने द्वितीय पुत्र खुसरू सुलतान को बदख्शाँ की राजधानी कंदोज का मुख्य शासक बना दिया। जब मोहम्मद खाँ के शासन में घोर अशांति मची तो उसे हटा कर खुसरू सुलतान को बदख्शाँ का शासक बनाया गया।
खुसरू सुलतान अलमानों और उजबकों के अत्याचार से तंग आ गया था। इस अवसर का लाभ उठाकर मुगल सम्राट् शाहजहाँ ने सोचा कि एक बड़ी सेना भेजकर बलख और बदख्शाँ के पैतृक प्रांत को जीत लिया जाय। फलत: उसने वहाँ अपनी सेना १०वें राजवर्ष में भेजी। जैसे ही शाही सेना बलख और बदख्शाँ की सीमाओं पर पहुँची, अलमान और उजबक भाग खड़े हुए। खुसरू सुलतान अपने पुत्र बदीअ सुलतान के साथ शाहजहाँ से मिलने आया। धूमधाम से उसका स्वागत किया गया। जब वह काबुल पहुँचा, तो शाहजहाँ उससे बड़े प्रेम से मिला। उसे ५०,००० रुपया तथा छह हजारी २,००० सवार का मनसब प्रदान किया। खानदौराँ बहादुर जहाँ रहता था, वहीं इसे सत्कारपूर्वक रहने को स्थान दिया गया। बदीअ सुलतान को भी १२,००० वार्षिक वृत्ति दी गई। यहाँ खुसरू सुलतान बड़ी शांति और बड़े सुख के साथ अपना जीवन व्यतीत करने लगा। इच्छानुसार यह कभी दिल्ली में रहता था, कभी लाहौर में। २६वें वर्ष इससे मनसब लेकर इसे एक लाख वार्षिक वृत्ति देना शाहजहाँ ने आरंभ किया। तत्पश्चात् उसके पुत्र को मनसब प्राप्त हुआ।