खुराना, हरगोविंद भारतीय वैज्ञानिक। इनका जन्म १९२२ ई. में अविभाजित भारतवर्ष के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक कस्बे में हुआ। पटवारी पिता के चार पुत्रों में ये सबसे छोटे थे। प्रतिभावान विद्यार्थी होने के कारण स्कूल तथा कालेज में इन्हें छात्रवृत्तियाँ मिलीं। पंजाब विश्वविद्यालय से सन् १९४३ में बी. एस. सी (आनर्स) तथा १९४५ में एम. एस. सी. (आनर्स) परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए और भारत सरकार से छात्रवृत्ति पाकर इंग्लैंड गए। यहाँ लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन् के अधीन अनुसंधान कर इन्होंने डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इन्हें फिर भारत सरकार से दूसरी शोधवृत्ति मिली और ये जूरिख (स्विट्जरलैंड) के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑव टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ अन्वेषण में प्रवृत्त हुए।

भारत वापस आने पर जब डाक्टर खुराना को अपने योग्य कोई काम न मिला तो वे इंग्लैंड वापस चले गए, जहाँ कैंब्रिज विश्वविद्यालय में फेलोशिप तथा लार्ड टाड के साथ कार्य करने का अवसर मिला। सन् १९५२ में आप वैंकुवर (कैनाडा) की ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद् के जैबरसायन विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। १९५८ ई. में वे न्यूयार्क के राकफेलर इंस्टिट्यूट में वीक्षक (visiting) प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् १९५९ में ये कैनाडा के केमिकल इंस्टिट्यूट के सदस्य निर्वाचित हुए। सन् १९६० में उन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका के विस्कांसिन विश्वविद्यालस के इंस्टिट्यूट ऑव एंज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर का पद आया और अब इसी संस्था के निदेशक हैं। १९६७ ई. में जैवरसायन की अंतरराष्ट्रीय परिषद् का उद्घाटन भाषण उन्होंने किया। १९६८ में डा. निरेनवर्ग के साथ उनको पचीस हजार डालर का शूशिया गौटज हॉर्विट्ज पुरस्कार भी मिला है। उन्होंने अब अमरीकी नागरिकता प्राप्त कर ली है।

डाक्टर खुराना जीवकोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के अध्ययन में लगे रहे। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज दीर्घकाल से होती रही है, पर डाक्टर खुराना की विशेष पद्धतियों से उसे खोज पाना संभव हुआ। इनके अध्ययन का विषय न्यूक्लिऔटिड नामक उपसमुच्चयों की अत्यंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएँ हैं। वे इन समुच्चयों का योग कर महत्व के दो वर्गों के न्यूक्लिऔटिड इन्ज़ाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हो गए हैं।

नाभिकीय अम्ल सहत्रों एकल न्यूक्लिऔटिडों से बनते है। जैव कोशिकाओं के आनुवंशिकीय गुण जटिल बहु न्यूक्लिऔटिडों की संरचना पर निर्भर रहते हैं। डॉ. खुराना ग्यारह न्यूक्लिऔटिडों का योग करने में पहले सफल हुए थे; अब उन्होंने ज्ञात शृंखलाबद्ध न्यूक्लिऔटिडोंवाले न्यूक्लीक अम्ल का प्रयोगशाला में संश्लेषण करने में सफलता प्राप्त की है। इस सफलता से ऐमिनो अम्लों की संरचना तथा आनुवंशिकीय गुणों का संबंध समझना संभव हो गया है और वैज्ञानिक अब आनुवंशिकीय रोगों का कारण और उनको दूर करने का उपाय ढूँढ़ने में सफल हो सकेंगे। (विशेष विवरणर के लिये देखिए कृत्रिम जीन)

इस महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें अन्य दो अमरीकी वैज्ञानिकों के साथ सन् १९६८ का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसके पूर्व १९५९ ई. में कैनाडा के केमिकल इंस्टिट्यूट से एक पुरस्कार मिला था। (भगवानदास वर्मा)