खिलजी (दिल्ली के सुल्तान) दिल्ली की तुर्क सल्तनत के दासवंशी सुल्तान बलबन की मृत्यु के पश्चात् कैकुबाद नामक एक १७ वर्षीय बालक को दिल्ली का सुल्तान घोषित किया गया किंतु विलासी होने के कारण शासन की देखरेख मलिक निजामुद्दीन नामक एक व्यक्ति करता रहा। इससे शासनतंत्र में जब अव्यवस्था फैली तब उसकी हत्या कर दी गई और आरिज-ए-ममालिक (सेना का निरीक्षक) जलालुद्दीन फिरोज ने, जो खिलजी वंश का था, सत्ता पर अधिकार कर लिया और १३ जून, १२९० ई. को यह कीलूगढ़ी नामक स्थान पर सिंहासन पर बैठा। उसका वंश भारतीय में खिलजी वंश के नाम से प्रख्यात हुआ। उसके पूर्वजों का हाल अविदित है। कदाचित् उसके पिता का नाम खाँ था और यगरीश खाँ उसका खिताब। जलालुद्दीन सुल्तान वयोवृद्ध, अनुभवी तथा युद्ध-कला-निपुण था परंतु बुढ़ापे के कारण उसका हृदय दयालु और मृदु हो गया था। उसके इस गुण का दुरूपयोग करके उसके भतीजे अलाउद्दीन मुहम्मद ने १२९६ में घोर नृशंसता से उसका वध करवा दिया और उसके बेटों को मारकर स्वयं सुलतान बन बैठा। अलाउद्दीन ने १३१६ ई. तक २० बरस राज किया। (द्र. खिलजी अलाद्दीन)।

अलाउद्दीन के बाद उसके परम प्रिय मलिक काफूर ने उसके बड़े बेटों का जेल में डाल सबसे छोटे सिहाबुद्दीन उमर की गद्दी पर बैठाया और स्वयं उसके प्रतिनिघि के रूप में शासन करने लगा। ३५ दिन तक इस प्रकार राज करने के बाद अलाउद्दीन के तीसरे बेटे मुबारक खाँ के अनुरोध पर सेना ने काफूर का वध कर डाला। फिर नि:सहाय बालक शिहाबुद्दीन को अंधा कर कुतुबुद्दीन मुबारक शाह सुलतान बन गया।

मुबारक शाह ने लगभग चार बरस राज किया। उसने शासन में बड़ी योग्यता तथा कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया और अलाउद्दीन के शासन से हारी प्रजा की दशा को सुधारने का यत्न किया। उसने विद्रोही सूबों को फिर से जीत भी लिया। पर वह जल्दी ही भोग विलास में इतना फँस गया कि उसके प्रेमपात्र खुसरों बखारी ने उसका वध कर सल्तनत पर अधिकार कर लिया और नासिरुद्दीन के नाम से गद्दी पर बैठा। किंतु उसके इस कार्य से अनेक सरदार असंतुष्ट हुए और दीपालपुर के सेनाध्यक्ष गाजी मलिक को उसके कुकृत्यों की सूचना भेजी। उसने सेना के साथ दिल्ली पर आक्रमण किया। खुसरो उसका सामना न कर सका। वह मारा गया और सब सरदारों ने मिलकर गाजी मलिक को सुलतान बनाया और वह गयासुद्दीन तुगलक के नाम से सुलतान बना। इस प्रकार १३२० ई. में खिलजी वंश का अंत हो गया। (परमात्माशरण.; परमेश्वरीलाल गुप्त)