खानजहाँ बार: मुगल दरबार का एक प्रमुख व्यक्ति। इसका वास्तविक नाम अबुल मुजफ्फर था। जहाँगीर के राज्य के १४ वें वर्ष इसने दक्षिणियों से लड़ कर बड़ी वीरता का प्रदर्शन किया। उस समय युद्ध में इसके साथ शाहजादा खुर्रम भी था। यह कई विद्रोहों में शाहजादे के साथ रहा। इसकी स्वामिभक्ति से शाहजादा इतना प्रभावित हुआ कि जब शासनसत्ता उसके हाथ में आई, उसने खानजहाँ को ग्वालियर का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इसी समय इसने महावत खाँ और जुझारसिंह बुंदेला के विद्रोह का दमन करने में उत्साहपूर्वक भाग लिया।
इसके दूसरे वर्ष इसने अपने पौत्र शफी और कई सैयदों का बलिदान करके खानजहाँ लोदी के साथ धौलपुर के पास चंबल नदी के किनारे युद्ध किया। इसके पुरस्कारस्वरूप उसे खानजहाँ लोदी का दमन करने के लिए आजम खाँ के अधीन सेना का हरावल नियुक्त किया गया। खानजहाँ ने बडी वीरतापूर्वक युद्ध किया, किंतु अंततोगत्वा उसकी पराजय हुई। फिर भी बादशाह ने इसका सम्मान किया और उच्च मंसब प्रदान किया। इसी वर्ष यह अमीनुद्दौला के साथ आदिलशाह बीजापुरी को दंड देने के लिए भेजा गया। तदनंतर इसने पर्रिद: पर आक्रमण किया। इस बीच मालवा के बुंदेलों का दमन करने के लिए इसने यथेष्ट प्रबंध किया। आदिलशाह बीजापुरी के विरूद्ध युद्ध में इसने पराक्रम दिखाया। जब बादशाह आगरे गया तो शाहजादा औरंगजेब बहादुर के साथ इसे खानदेश, बरार, तेलंगाना और निजामुल्मुल्क के राज्य के कुछ अंश का शासक नियुक्त कर दिया।
कंधार पर दाराशिकोह के आक्रमण के समय यह उसके साथ था। तत्पश्चात् आगरे का प्रधान नियुक्त किया गया। सन् १५०५ हिजरी के लगभग यह बीमार रहने लगा और कुछ समय पश्चात् मर गया। बादशाह ने इसके पुत्रों का संमान करके उच्च पद प्रदान किए।