खानकाह मुस्लिम रहस्यवादी (सूफी) संतों का निवासस्थान। इस्लाम के संस्थापक ने ईसाइयों की तरह के साधु-संत-जीवन के प्रत्येक रूप का निषेध किया था; किंतु जब मुसलमानों में रहस्यवाद अथवा तसव्वुफ का विकास हुआ तब रहस्यवादियों ने भौतिक जीवन के उत्पीड़न से अलग रहने की आवश्यकता का अनुभव किया। मौलाना जामी के कथनानुसार मुस्लिम रहस्यवादियों के लिए इस्लामी इतिहास में पहला खानकाह आठवीं सदी ईसवी में किसी ईसाई राजा ने ईराक में बनवाया था: ९वीं और १०वीं शताब्दियों में जनतांत्रिक ढंग पर संगठित खानकाह के उल्लेख मिलते हैं, जहाँ सदस्यगण उसके संगठन के नियम बनाते थे। बाद में इसका प्रयोग उस स्थान के अर्थ में होने लगा जिसमें कोई रहस्यवादी शेख, पीर या गुरू अपने चुने शिष्यों के साथ रहता हो। अविवाहित शिष्य प्राय: बड़े कमरे (हाल) में रहते थे। वहाँ प्रत्येक शिष्य को एक कोना मिला होता था। विवाहित शिष्य अपने घरों में रहते थे। खानकाह में रहनेवालों की आजीविका का मुख्य साधन फीतु: अथवा पड़ोसियों का अयाचित दान हुआ करता था। खानकाह शब्द का मूल अज्ञात है। (मोहम्मद हबीब)
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