हाफ़िज अली को सरोदवादन की शिक्षा विरासत में मिली-दादा और पिता, दोनों इस विद्या में निष्णात थे। उस्ताद वज़ीर ख़ाँ के सरोदवादन के जादू से-जो उस समय रामपुर के प्रसिद्ध वादक थे-वह प्रभावित हुए तथा उनसे वादन के शास्त्रीय और पारंपरिक रूपों की शिक्षा ली और सरोदवादन में वीणावादन की तकनीक का समन्वय किया।
उनके आदर्श थे महान् सरोदवादक फ़िदा हुसैन और वह उनकी पद्धति पर चलने की चेष्टाएँ करते रहे। उस्ताद अलाउद्दीन खाँ की भाँति हाफ़िज अली खाँ का भी निराला सरोदवादक व्यक्तित्व है। संगीत के जानकार सुनते ही पहचान लेंगे कि यह हाफ़िज अली का वादन है। अपने समय में वह महान सरोदवादक थे जिनके वादन से फ़िदा हुसैन की याद संगीतशास्त्रियों को आ जाया करती थी।
उनका व्यक्तित्व काबूली लोगों जैसा था, चेहरे पर सदैव मुसकान रहती थी। उनके शिष्य आज भी बहुत से हैं। अपनी प्रशंसा सुनने पर वह सदैव कहा करते थे-खुदा सबसे महान् है, मैं क्या हूँ ?
उस्ताद हाफ़िज़ अली ख़ाँ भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी के रत्नसदस्य (Fellow) भी रहे थे तथा सरोदवादन के लिये संगीत नाटक अकादमी का पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके थे। (सर्वदानंद)