खर्ग मिस्र का सबसे बड़ा नखलिस्तान जो लीबिया की मरु भूमि के बीच स्थित है: स्थिति ३४ और २६ उ. तथा ३० और ३१ पू. के बीच। यह नखलिस्तान उत्तरदक्षिण १०० मील लंबा और पूर्वपश्चिम १२ से ५० मील चौड़ा, १८,००० वर्गमील विस्तृत है। यहाँ वर्षा बिल्कुल नहीं होती और न कोई प्राकृतिक जल स्रोत ही है किंतु लीबिया के रेगिस्तान के नीचे दबे छिद्रयुक्त बलुए पत्थर से रिसते पानी के अनेक कुएँ हैं। इस नखलिस्तान में खजूर के विस्तृत बगीचे हैं। यहाँ सुपारी और झाऊ में भी कुछ वृक्ष हैं।

यहाँ के निवासी बर्बर कबीले के हैं, जो चावल, जौ और गेहूँ पैदा करते हैं। खेती के अतिरिक्त यहाँ खजूर के छिलके और रेशे से चटाई और टोकरी बनाने का भी उद्योग होता है। १९०६ में बोरिंग द्वारा जल प्राप्तकर भूमि को उपजाऊ बनाने का प्रयास जारी है।

पुरा प्रस्तर युग में यहाँ लोगों के रहने का प्रमाण मिलता है और वन प्रस्तर युग के अवशेष यहां मिले हैं। फिराऊ न के काल में समझा जाता था कि वहाँ भूत रहते थे। सत्ताइसवें ईरानी वंश के शासकों के समय इस भूभाग को आर्थिक दृष्टि से विकसित करने के प्रयास हुए। दारा (डेरियस) के समय के वन १४२ फुट लंबे और ६३ फुट चौड़े अमेन के मंदिर के अवशेष यहाँ मिले हैं। नखलिस्तान के पूर्वी निकास के पास गिर्गा के रास्ते में एक विशाल रोमन दुर्ग के अवशेष है। असियुत की सड़क पर एक भव्य रोमन स्तंभ मंडप है। खर्ग नगर से, जो इस नखलिस्तान का मुख्य नगर है, कुछ दूर पर इसाइयों का कब्रिस्तान है जिसमें लगभग २०० चौकोर समाधि भवन है। उनमें से अधिकांश में ममी (सुरक्षित शव) रखे पाए गए हैं। मिस्र के ईसाई इस प्राचीन प्रथा का बहुत दिनों तक पालन करते रहे।

खर्ग नगर खजूर के जंगलों के बीच बसा हुआ नगर है। वहाँ कच्चे ईटों के बने मकान हैं। गलियाँ टेढ़ी मेढ़ी और सँकरी है। कुछ सड़कें पत्थर काटकर बनाई गई हैं। समझा जाता है कि हिरादोतस ने नखलिस्तान के इसी नगर का उल्लेख किया है जो थेबीज से सात दिन की यात्रा के मार्ग पर स्थित था। उसे यूनानियों ने आर्शीवाद का द्वीप कहा है। रोमन काल में और उससे पूर्व फिराऊनों के समय यहाँ देश से निर्वासित लोग भेजे जाते थे। (परमेश्वरीलाल गुप्त)