खंभावती च विज्ञेया मूर्च्छना पौरवीमता ।
अर्थात् यह रागिनी धैवत, स्वर, अंश, यह एवं न्यास युक्त है। यह पंचम स्वर रहित और षाडव है। इसकी मूर्छना पौरवी मानी गयी है। इसके दो रूप प्रचलित हैं। एक में मांड और झिंझोटी का मिश्रण है और दूसरे में रागश्री का। दूसरे प्रकार में पंचम स्वर सर्वथा वर्जित है और ऋषभ भी अत्यल्प है। इसे कौशिक राग की रागिनी कहा गया है। यह रागिनी शृंगार और करूणारस प्रधान है और रात्रि के दूसरे पहर में गाई जाती है। (परमेश्वरीलाल गुप्त)