क्विनोन
(Quinones)
सौरभिक यौगिकों
से प्राप्त कार्बनिक
यौगिकों का
एक समूह क्विनोन
के नाम से जाना
जाता है, जिसमें
बेंजीन नाभिक
के दोनों हाइड्रोजन
परमाणु दो
आक्सिजनों द्वारा
प्रतिस्थापित होते
हैं, अर्थात् दो
कीटोनीय मूलक
> C=O विद्यमान
होते हैं। इस वर्ग
के सभी यौगिक
रंगीन हैं, पर
अपचयन पर रंगहीन
हाइड्रोक्विनोन
देते हैं। आक्सीजन
अणुओं के स्थान
के अनुसार क्विनोनों
को पारा अथवा
आर्थेक्विनोन
संबोधित करते
हैं। अभी तक किसी
मेटाक्विनोन
का पता नहीं लगा
है।
इस वर्ग का सबसे सरल तथा सर्वप्रथम ज्ञात यौगिक बेंजोंक्विनोन C6 H4 O2 है। इसे केवल क्विनीन भी कहते हैं। इसकी अणु संरचना नीचे दिखाई गई हैं। सोडियम डाइक्रोमेट तथा सल्फ्यूरिक अम्ल के द्वारा आक्सीकरण होने पर ऐनिलीन से बेंजोक्विनोन प्राप्त होता है। यह ऊर्ध्वपातन पर लंबे लंबे सुनहले मणिभ (गलनांक ११५.७०) देता है। यह ईथर, ऐलकोहल तथा गरम जल में विलेय है। इसकी गंध बड़ी लाक्षणिक तथा तीव्र होती है। यह अपचयित होकर रंगहीन हाइड्रोक्विनोक [C6H4 (OH)2], में परिवर्तित हो जाता है। इस विलेय ठोस का अधिकतम उपयोग फोटाग्राफी में परिवर्धक (Developer) के रूप में किया जाता है। इसके एक संजात, अर्थात् टेट्राक्लोरो बेंजोक्विनोन, का, जिसे क्लोरैनिल भी कहते हैं, उपयोग आक्सीकारक और कवकनाशक (fungicide) के रूप में किया जाता है।
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इस वर्ग के यौगिक बहुत क्रियाशील होते हैं तथा इनके संजातों का विशेष आर्थिक महत्व है। कृत्रिम रंजकों के निर्माण में इनका उपयोग उल्लेखनीय है। ऐंथ्राक्विनोन (C6H4C2O2C6H4) का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है, जिससे ऐलिज़ारिन, फ्लैबन, इंडीथ्रैान, कैलेडान, ज़ेड-ग्रीन ऐसे अनेक मूल्यवान् रंजक प्राप्त होते हैं। (शवमोहन शर्मा)