क्लीवलैंड, स्टीफ़ेन ग्रोवर (१८३७-१९०८) अमेरिका के राष्ट्रपति। नार्थ जर्सी के कोल्डवेल में १८ मार्च, १८३७ को जन्म। अपने पिता की नौ संतानों में पाँचवी संतान। पिता पादरी थे। उनके पूर्वज इंग्लैंड से मेसाचुसेट्स आए थे। जन्म के बाद इनका परिवार क्लीसलैंड से न्यूयार्क आ गया। पिता की मृत्यु पर वह क्लीवलैंड छोडकर बफैलो में अपने चाचा के यहां गया। १८५९ में वकालत आरंभ की और चार वर्ष पश्चात् जिके का उप-अटार्नी नियुक्त हुआ। जब गृहयुद्ध आरंभ हुआ तो तीन भाइयों ने लाअरी डालकर निश्चय किया कि एक भाई घर पर रह कर माँ की देखभाल करे। यह भार इनके सर आया। जब इनके युद्ध में जाने की बारी आई तो उन्होंने अपने एवज में दूसरे को भेज दिया। १८६९ में डिमाक्रेटिक पार्टी की ओर से शेरिफ चुना गया। कार्यकाल समाप्त होने पर पुन: वकालत शुरू की और प्रसिद्ध वकीलों में उनकी गणना होने लगी। १८८२ में डिमोक्रेटिक पार्टी ने उन्हें मेयर चुना ; १८८२ में ही वह गवर्नर चुना गया। उन्होंने सिविल सर्विस का कानून बनावाया। १८८४ में वे प्रथम बार राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने सिविल सर्विस को पार्टियोंके प्रभाव से स्वतंत्र किया जिसके फलस्वरूप राजसेवा के लिये प्रतियागिता परीक्षा द्वारा व्यक्तियों का चयन होने लगा।
१८९२ में डिमोक्रेटिक पार्टी की ओर से वे दुबारा राष्ट्रपति चुने गए। इस बार उन्होंने अनेक काम किए। कागजी मुद्रा के लिये सोना जमा किया। अप्रैल, १८९३ में जमा की हुई पूंजी में कमी हुई तो राज्यसभा बुलाई गई और रिपब्लिकन पार्टी द्वारा कानून भी पास हुआ, मगर आर्थिक कठिनायाँ बीच में आ गई। जमा किया हुआ सोना उस घाटे को भरने के काम में आया। फलस्वरूप व्यापार में लूट एक साधारण सी बात हो गई। तनख्वाह कम होने लगी, मजदूर आंदोलन आरंभ हुए। शिकागों में गड़बड़ी हो गई। राष्ट्रपति ने सेना द्वारा इस पर काबू पाया और हड़ताल एक हफ्ते में खत्म हो गई। दूसरी बात जो हुई वह इंग्लैंड और वीनीज्वीला का आपसी तनाव था। क्लीवलैंड ने कांग्रेस बुलाई और उसके सामने यह प्रस्ताव रखा कि मुनरो सिद्धांत के बचाव के लिये अमरीका को भी बीच में आना चाहिए। इस प्रकार एक कमेटी नियुक्त हुई मगर दोनों के बीच सुलह पहले ही हो गई और एक बहुत बड़ा झगड़ा सुलझ गया। व्यापार पर जो रोक लगाई गई उसपर क्लीवलैंड और सीनेट में अधिक समय तक संघर्ष चलता रहा। महसूल बिल बिना उसकी दस्तखत के पास हो गया मगर उसने उस कानून में कोई निजी बाधा नहीं डाली।
हवाई द्वीपसमूह के प्रश्न पर क्लीवलैंड ने बड़ा काम किया। उसको अमरीकी संयुक्त राष्ट्र में मिलाने का जो बिल पेश किया गया था उसने उसे वापस ले लिया और यही कोशिश की कि रानी लिलिओकालानी को फिर से वहां की गद्दी पर बैठाया जाय। मगर वहां के लोगों के कारण इसमें उसे सफलता प्राप्त न हो सकी। इस पद से अलग होने के पश्चात् क्लीवलैंड ने अपने जीवन के शेष दिन घर पर ही बिताए। उनकी मृत्यु १९०८ में हुई। (मोहम्मद अजहर असगर अंसारी)