क्लाइस्ट, बर्न हेनरिच विल्हेम वान (१७७७-१८११ ई.)। जर्मन कवि, नाटककार एवं उपन्यासलेखक । १८ अक्तूबर १७७७ को फ्रैंकफुर्ट-आन-ऑडर में जन्म। नाममात्र शिक्षा प्राप्त कर १७९२ में प्रशा की सेना में भर्ती हुआ। १७९६ में राइन के अभियान में भाग लिया और १७९९ में लेफ्टिनेंट पद से सेवानिवृत हुआ। तदनंतर उसने कानून और दर्शन का अध्ययन किया और १८०० में बर्लिन में अर्थमंत्रालय में नौकरी आरंभ की। अगले वर्ष वह पेरिस आदि नगरों में घूमता फिरा और स्वीजरलैंड में इस आशा से जा बसा कि वहां प्रकृति के शांत वातावरण में वह अपनी मेधा का विकास कर सकेगा। वहां उसकी हेनरिच जाक्के और अगस्त वीलैंड से भेंट हुई और उन्हें उसने अपने प्रथम नाटक ‘द फेमिली श्रोफेंस्टीन’ का प्रारूप सुनाया। उसमें उन्हें उसकी प्रतिभा परिलक्षित हुई और प्रोत्साहन मिला।
१८०२ ई. में क्लाइस्ट जर्मनी लौटा वेमर में गेटे, शिलर और वीलैंड से मिला। वहाँ रहते हुए उसने अपना नाटक ‘रॉबर्ट ग्विस्कार्ट’ लिखना आरंभ किया किंतु उसे लोगों ने इतना हतोत्साह किया कि उसे अपनी प्रतिभा पर संदेह होने लगा। वह लाइपज़िक, ड्रेस्डेन, पेरिस, घूमता फिरा। पेरिस में वह लगभग पागल सा हो गया और उसी पागलपन में उसने अपने नाटक की पांडुलिपि जला डाली। केवल प्रथम अंक बच पाया। १८०४ में जब वह बर्लिन लौटा तब उसकी बदली राजकीय भूमि के प्रशासन विभाग में कोनिंग्सबर्ग कर दी गई। यहाँ रहते उसने ‘दर जरब्रोशेन कुग’ नाटक लिखा जो जर्मन भाषा के सुखांत नाटकों में क्लासिक समझा जाता है। १८०७ में जब वह ड्रेसडेन जा रहा था तो फ्रांसीसियों ने उसे जासूस समझकर गिरफ्तार कर लिया और वह छह मास तक वहां बंदी रहा। जेल से मुक्त होने पर वह ड्रेसडेन आया और हेनरिच म्युलर के साथ मिलकर ‘फ्युबस’ नामक पत्रिका प्रकाशित की जिसमें उसकीकविताएँ तथा दुखांत नाटक ‘पेंथेसीलिया छपी’ हैं।
१८०९ में वह प्राहा (प्राग) गया और फिर बर्लिन आकर बस गया। वहां से ‘बर्लिनर अबेंडब्राल्टर’ नामक पत्र प्रकाशित किया जो हार्डेनबर्ग की नीति का कटु आलोचक था। इसी काल में १८०८ में उसने अपना रोमांटिक नाटक ‘दस काथचेन वान हाइल ब्रान’ और कतिप कहानियाँ लिखीं। इनमें ‘माइकल कलहास’ लूथर काल की कथा है और जर्मन कथासाहित्य की युगांतरकारी रचना मानी जानी है। उसकी बर्लिन निवास काल की महत्वपूर्ण रचनाएँ मृत्यु के पश्चात् प्रकाशित हुई। वे ‘दाइ हरमैन श्लाख्त’ (जिसमें नैपोलियन और फ्रांसीसियों को वारुस और रोमनों के छद्म में प्रस्तुत किया गया है) और प्रिंज़ हेनरिच वान हामवुर्ग है।
क्लाइस्ट का जर्मन साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान है। नाट्य साहित्य में चल रही क्लासिकी परंपरा का जिसके पोषक गेटे थे, उसने जमकर विरोध किया। उसका उद्देश्य गेटे को पछाड़कर अपने युग के सर्वोच्च नाटककार की ख्याति प्राप्त करना था। उसने अपने नाटकों ग्रीक नाट्य साहित्य तथा शेक्सपियर के दु:खांत नाटकों के मूल तत्वों सामंजस्यपूर्ण मिश्रण द्वारा एक नई नाट्य शैली को जन्म देने का प्रयास किया।
साहित्यिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति में विफल होने के कारण उसका जीवन दु:खी एवं संघर्षमय रहा। अत: उसके नाटकों में हमें वेदना एवं संघर्ष की झलक मिलती है। उसके नाटकों के पात्र अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उसी दृढ़ता और एकनिष्ठ भाव का परिचय देते हैं जिसका समावेश उसके अपने व्यक्तित्व में था। उनमें जो भी विशेषता देखने को मिलती है, वह अपने चरम रूप में। जहाँ एक ओर ‘पैंथेसीलिया’ की नायिका, अमेज्स़ां की रानी शासन की मनोवृति का अत्यधिक उग्र रूप प्रदर्शित करती है वहाँ ‘काशेन फ़ॅन हीलब्रॅान’ की नायिका में हम अत्य धिढंग की दासता पाते हैं। इन नाटकों में मानसिक भावनाओं की तीव्रअभिव्यक्ति है।
क्लाइस्ट का नाटक ‘द प्रिंस ऑव हांबुर्ग’ राष्ट्र के प्रति जर्मन जाति की कर्तव्यनिष्ठा एवं अनुशानप्रियता का उदाहरण प्रस्तुत करता है। हांबुर्ग का राजकुमार, जिसने अपने देश के लिये युद्ध में विजय प्राप्त की, इसलिये मृत्युदंड पाता है कि उसने अपने से ऊँचे सैनिक अफसरों की आज्ञा की अवहेलना की। पहले तो वह घबड़ाता है, लेकिन यह सोचकर कि राष्ट्र का अस्तित्व इसके नागरिकों की अनुशासन भावना पर निर्भर करता है, वह साहस के साथ मृत्युदंड स्वीकार करता है। अंत में अनुशासनप्रियता का परिचय देने पर उसे क्षमा मिल जाती है।
क्लाइस्ट के दु:खद अंत का पूर्ण वृतांत अज्ञात है। अपनी कतिपय रचनाओं की उपेक्षा से वह कुछ कटु हो गया था और पत्रिका के बंद हो जाने के कारण अर्थाभाव में था। उसने २१ नवंबर, १८११ को पाट्सडैम के निकट वांसी के समुद्र तट पर आत्महत्या कर ली। (परमेश्वरीलाल गुप्त; तुलसी नारायण सिंह)