क्लब उस स्थान को जहाँ लोग बैठकर परस्पर आमोदप्रमोद, गपशप, खानपान करें, क्लब कहा गया है। यह संस्कृत के गोष्ठी शब्द की अभिव्यक्ति करता है। इस शब्द की मूल धातु संभवत: स्कैंडिनेवियाई भाषा की है; वहाँ से वह डेन आदि भाषाओं में क्लब के रूप में आई। क्लब की संस्था से प्राचीन रोमन ओर यूनानी दोनों ही परिचित थे। यूनानी इसे हितेयरिया और रोमन सोदालितस कहते थे। प्राचीन सभ्य संसार के प्राय: प्रत्येक देश में यह किसी न किसी रूप में पाया जाता था।

इन क्लबों के पूर्व रूप व्यावसायिक संगठन, सामूहिक पूजास्थल आदि थे। ई. पू. ७वीं शताब्दी के यूनानी राजनेता सोलोन के संविधान में इसका उल्लेख मिलता है। यूनानियों के प्राचीन उपासनागृह आधुनिक पाश्चात्य क्लबों के जनक माने जाते हैं। उन दिनों यूनान के विभिन्न राजनीतिक दलों के लोगों ने साथ मिल बैठकर वादविवाद, मंत्रणा, परामर्श इत्यादि करने के लिये जो गोष्ठियाँ स्थापित की थीं, वे भी इसी प्रकार की संस्थाएँ थीं। किंतु सहभोज के लिये एक ही मेज पर एकत्र होने की प्राचीन यूरोपीय परिपाटी आधुनिक क्लबों की निकटम पूर्वज प्रतीत होती हैं।

रोमन क्लब तो सर्वथा व्यापारियों के आर्थिक स्वार्थरत संगठन थे। सिसरो कालीन राजनीतिक गोष्ठियाँ हमारे आधुनिक क्लबों के समकक्ष मानी जा सकती हैं किंतु उनका कार्यकलाप इतना अधिक पेशेबर राजनीतिक था कि जूलियस सीज़र ने उन्हें राज्य के लिये खतरनाक घोषित करके उच्छेदित कर दिया था। प्राचीन रोमन स्नानस्थलों में धनी मानी व्यक्ति चैन से बैठकर आनंद करने आते थे; उनका कोई संगठन नहीं होता था। जस्तूस लिपसियस ने एक ऐसे प्राचीन रोमन क्लब का उल्लेख किया है जिसकी नियमावली प्राय: आधुनिक क्लबों की सी है। सिसरो ने अपनी पुस्तक दे सेनेक्तूते में एक ऐसी गोष्ठी (सिंपोज़िया) की चर्चा की है, जहाँ वह खानपान के लिये तो कम, किंतु संलाप के लिये अधिक जाता था।

क्लब शब्द ने अपना आधुनिक अर्थरूप कब पाया, यह निश्चित नहीं है। प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार तथा लेखक टामस कार्लाइल ने अपने इतिहासचरित फ्रेडरिख महान् में लिखा है कि क्लब शब्द जर्मन शब्द ग्वूइब के समकक्ष है। इसका प्रयोग तत्कालीन जर्मन समाज के वीरोचित शिष्टाचार में होता था। किंतु सच तो यह है कि जर्मन क्लुब्ब शब्द मूल स्कैडिनेवियाई धातु से ही लिया गया प्रतीत होता है। आधुनिक अर्थ में क्लब शब्द का प्रयोग कदाचित सर्वप्रथम १७ वीं शताब्दी में लेखक द्वय ऑब्रे और पेप्स ने किया। ऑब्रे ने लिखा है, अब हम क्लब शब्द का उपयोग सराय में भाईचारे के लिये एकत्र होने के अर्थ में करते हें, जबकि पेप्स ने लिखा है कि वह और उसके मित्र लंदन में पाल माल स्थित एक मदिरालय में क्लबिंग के लिये एकत्र होते हैं।

१७वीं शताब्दी के मध्य कहवाघरों की स्थापना और लोकप्रियता से क्लबों को जैसे स्थायी गृह मिल गए। १८वीं शताब्दी के आरंभ में क्लबों की उन्नति और विकास में उन काफ़ी हाउसों का वह प्रारंभिक योग बहुत उपादेय सिद्ध हुआ। सन् १६७४ ई. में रायल नेवी क्लब की स्थापना हुई। यह क्लब उन सैनिक क्लबों का आदि पूर्वज बना जो प्राय: डेढ़ सौ वर्ष बाद १९ वीं शताब्दी में जगह जगह खोले गए।

इंग्लैंड के परवर्ती ख्यात क्लबों का आरंभ हेनरी चतुर्थ के राज्यकाल में ले क ार्त दि बौं कांपेनी नामक क्लब से होता है, जिसका सदस्य कवि हारक्लीव भी था। उसने इसकी चर्चा अपने काव्य में की है। परवर्ती एलिजाबेथ युगीन सर वाल्टर रैले द्वारा संस्थापित फ्राइडे स्ट्रीट क्लब अथवा ब्रेड स्ट्रीट क्लब के समान एक प्रकार का सहभोज क्लब था। अब यह क्लब मरमेड टैवर्न के नाम से विख्यात है। दूसरा प्रसिद्ध समकालिक क्लब अपोलो था जिसकी नियमावली सुख्यात लेखक बेन जॉनसन ने बनाई थी। वह इस क्लब का प्रमुख एवं प्रभावशाली सदस्य था। एक शताब्दी वाद इसी प्रकार विल्स क्लब का नियामक और प्रख्यात सदस्य प्रसिद्ध कवि ड्राइडन हुआ।

सन् १६५९ ई. में जेम्स हैरिंग्टन द्वारा स्थापित द रोटा क्लब, जिसे पेप्स काफ़ी क्लब कहता था, स्टुअर्ट राज्यकाल के बाद भी देशविख्यात रहा। इसके नियम प्रजातंत्रीय थे जबकि इसका समकालीन द सील्ड नॉट क्लब (स्थापित सन १६८८ ई.) एकदम शाही था। सन् १६६९ ई. में स्थापित द सिकिल क्लब को हम सन् १८३२ ई. में प्रतिष्ठित सिटी ऑव लंदन क्लब का प्रारंभिक रूप कह सकते हैं। वेंस्डे क्लब भी फ्राइडे स्ट्रीट में जमता था। विलियम पेटर्सन उसका प्रमुख सदस्य था। उस क्लब में चलती रही मंत्रणा के फलस्वरूप बैंक ऑव इंग्लैंड की स्थापना हुई। वास्तविक बात यह थी कि अनेक संस्थाओं के पास अपने निजी कार्यालय तो क्या, मिलने बैठने को भी जगह नहीं थी। ऐसी संस्थाएँ कहवाघरों में कोई कमरा खास तौर से अपने लिये यदाकदा ले लिया करती थीं। इसके लिये कोई किराया नहीं देना पड़ता था। सदस्यगण के स्कॉच मदिरा पीने और वहीं भोजन करने से ही कहवाघर के मालिक को यथेष्ट आय हो जाती थी। यदि सदस्यगण महत्वपूर्ण व्यक्ति हुए, तो उसके कहवाघर में उनके बैठने से उसका विज्ञापन भी होता था और गौरव भी बढ़ता था।

१८वीं शताब्दी के आरंभ में लंदन में क्लबों की बाढ़ सी आ गई। तत्कालीन विख्यात पत्रों द टैटलर और द स्पेक्टेटर में इन क्लबों की चर्चा होती रहती थी। सन् १७११ ई. में बोलिंगब्रोक ने सैटर्डे क्लब की स्थापना की। शैफ्टसबरी के प्रयत्न से किंग्ज़ हेड अथवा ग्रीन रिबन क्लब संस्थापित हुआ। द सोसाइटी अथवा ब्रदर्स क्लब के साथ महान व्यंगकार लेखक जोनाथन स्विफ्ट का नाम जुड़ा था। यों वह स्क्रिबलर्स क्लब का संस्थापक था। ये सभी तथा अन्य प्रसिद्ध क्लब, जैसे जैकब टानसन का किट कैट क्लब साहित्यकारों के अड्डे थे। वहाँ राजनीतिज्ञों का स्थान गौण था। राजनीति के अखाड़ों में आक्टोबर क्लब और हैनोवर क्लब प्रसिद्ध थे। मार्च प्रिमिटिव आक्टोबर क्लब तो राजनीति का ऐसा अड्डा बन गया था कि ब्रिटिश शासन तक घबरा उठा था।

इनके अतिरिक्त मग हाउस क्लबों का भी लंदन में एक जाल बिछ गया था। इनमें खूब मादिरापान और हुड़दंग होता था। इनकी वासनात्मक रँगरेलियों ने तत्कालीन सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को भ्रष्ट करना शुरू किया। परिणामस्वरूप शासन ने इन पर कठोर प्रहार कर इन्हें समाप्त कर दिया। माहॉक्स, स्करर्स, निकर्स आदि ऐसे अन्य खतरनाक क्लब थे कि जिनकी आतंकवादी कारवाइयों से लंदन के शरीफ लोग संत्रस्त हो उठे थे। इस प्रकार १८वीं शताब्दी के लंदन में क्लबों के अनेक रूप बन और बिगड़ रहे थे। क्लब की सदस्यता से वहाँ आदमी के चरित्र की पहिचान होने लगी। अंग्रेजी के अमर शब्दकोशकार जॉनसन ने अपने जीवनचरित्र लेखक बॉसर्बल को बोर्स हेड टैवन क्लब का सदस्य बनने से इसलिये रोका था कि उसकी सदस्यता से बदनामी होने का डर था।

१८वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में क्लब इंग्लैंड के सभी वर्गों के जीवनयापन के अपरिहार्य अंग बन गए। सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये क्लब खुल गए। संस ऑव द टेम्स तैराकों और तैराकी सिखाने का पहला क्लब था। दिलेतॉत सोसायटी और द कैस्पियन (अभिनेताओं का क्लब) ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध क्लब थे, परंतु इस क्लब के प्रतिनिधि क्लब वे ही थे जो विशुद्ध सामाजिक अथवा साहित्यिक थे। डॉ. जॉनसन ही साहित्यिक क्लबों के प्रमुख प्रणेता माने जाते हैं। १७४९ ई. में उन्होंने द आइवी क्लब की स्थापना की और १४ वर्ष बाद लिटरैरी क्लब की। लिटरैरी क्लब, जिसे केवल द क्लब भी कहते थे, बहुत विख्यात हुआ। लंदन के बड़े से बड़े लेखक इसके सदस्य थे। अपनी मृत्यु से कुछ पहले, सन् १७८३ ई. में, उन्होंने द इसेक्स हेड क्लब की भी स्थापना की थी।

कुछ क्लब विशुद्ध रूप से सामाजिक थे, जैसे रायल सोसायटी क्लब (स्थापित सन् १७३१ ई.)। ब्लू स्टाकिंग्स क्लबों की एक शृंखला ही फैली हुई थी, जो लंदन की फ़ैशनेबिल सोसायटी और साहित्यिक समाज को मिलानेवाली कड़ी का काम करता था। अंग्रेजी के अमर कवि गोल्डस्मिथ का वेंस्डे क्लब भी ऐसा ही क्लब था। सामाजिक, राजनीतिक तथा साहित्यिक विषयों की चर्चा के लिये लंदन के पश्चिमी भाग में स्थित क्लिफ़ोर्ड स्ट्रीट क्लब तथा किंग ऑव क्लब्सऔर पूर्वी भाग में स्थित कॉज़र्स क्लब सुख्यात थे। इतिहासप्रसिद्ध वक्ता एडमंड वर्क राबिनहुड क्लब का सदस्य था।

१९ वीं शताब्दी से लंदन में आधुनिक क्लबों की परंपरा प्रारंभ हुई। इनके अपने भवन और कार्यालय थे। इनमें ह्वाइट्स क्लब और ब्रुक्स क्लब प्रसिद्ध हुए। ये तीनों राजनीतिज्ञों के क्लब थे।

नैपोलियन के युद्धों की समाप्ति से लंदन में भूतपूर्व सैनिकों और फौजी अफसरों के दल आ बसे। उनके परस्पर मिलन और मनोरंजन के लिये, जहाँ समुचित मूल्य पर खानपान की भी सुविधा थी, अनेक क्लब खुल गए। सन् १८१३ ई. में सबसे द गार्ड् स क्लब की स्थापना हुई, फिर सन् १८१५ ई. में द यूनाइटेड सर्विस क्लब खुला। तत्पश्चात् जूनियर यूनाइटेड सर्विस (सन् १८२७ ई.), द ओरिएंटल (सन् १८२४ ई.), आर्मी ऐंड नेवी (सन १८३७ ई.) और ईस्ट इंडिया यूनाइटेड कंपनी (सन् १८५० ई.) क्लब एक के बाद एक बनते गए। इन क्लबों में मनोरंजन के सभी साधन उपलब्ध थे। रीजेंसी शासनकाल में लंदन में वाटियर्स जैसे क्लब भी स्थापित हुए, जिनमें खूब जुआ खेला जाता था। विख्यात ब्रूमेल इसका प्रमुख सदस्य था। अमर कवि लार्ड बायरन द अलफ्रर्ड (सन् १८०८ ई.) का सदस्य था। यह छोटा किंतु फ़ैशनेबिल क्लब था।

लंदन में जनसंख्या और व्यवसाय की वृद्धि के कारण विविध व्यवसायों से संबद्ध क्लब भी स्थापित होने लगे। इनके सदस्य धनिक वर्ग के थे ही, इसलिये उनके सुंदर भवन भी पाल माल और सेंट जेम्स जैसे ऐश्वर्यवान् मार्गों पर खड़े होने लगे। लंदन के सर्वश्रेष्ठ स्थापत्य कलाकारों ने इनके भवनों का निर्माण किया। कार्लटन और रिफ़ार्म क्लब, जो राजनेताओं के हैं, अपनी सुंदर स्थापत्य कला के कारण दर्शनीय है। कांस्टिट्यूशनल, नेशनल, लिबरल, कंज़र्वेटिव आदि इंग्लैंड के विभिन्न राजनीतिक दलों के अपने अलग प्रसिद्ध क्लब हैं; वे १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में स्थापित्य हुए थे।

साहित्यकारों और कलाकारों के क्लबों में भी १९वीं शताब्दी में अपने अपने भव्य भवन बनने लगे। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध है द एंथेनियम जिसका भवन पाल माल में विख्यात स्थापत्यकलाकार डेसीमस बर्टन ने सन् १८३१ ई. में बनाया। ऐतिहासिक उपन्यासकार वाल्टर स्कॉट और लेखक मूर इसी क्लब के सदस्य थे। सैवील और सैवील अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक क्लब थे। सैवेज कुछ अपरंपरावादी किस्म का क्लब था, जिसकी स्थापना सन १८९० में एडेल्फी टेरेस के विशाल भवन में हुई थी। नाटककारों और नाट्य कलाकारों का गैरिक क्लब सन् १८३१ ई. में ही स्थापित हो चुका था। नाट्य जीवन से संबंधित अन्य विख्यात क्लब हैं ग्रीन रूम (१८७७ ई.), रिहर्सल (१८८२ ई.), ओ. पी. क्लब (१९०० ई.) और वॉडीविले (१९०१ ई.)। सन् १८९१ ई. में तथा सन १८९४ ई. में क्रमश: स्थापित आथर्स क्लब तथा द रायल सोसायटीज क्लब आधुनिक शैली के प्रसिद्ध क्लब हैं। कलाकारों और कलालोचकों का आर्ट्सन क्लब सन् १८६३ ई. में बना। सन् १९२१ ई. में लंदन में पी. ई. एन. क्लब की स्थापना हुई, जिसने साहित्य के निर्माण में सक्रिय योग देना अपना ध्येय बनाया। आज संसार के अनेक देशों में इस क्लब की शाखाएँ हैं। भारतवर्ष में इसकी मदाम सोफ़िया वाडिया के प्रयत्न से हुई। इसके आदि संस्थापकों में उनके अतिरिक्त सरोजिनी नायडू सर्वपल्ली राधाकृष्णन, इत्यादि हैं और इसका मुख्यालय बंबई के थियोसोफी भवन में है।

सन् १९२२ ई. में पहली बार लंदन के विश्वविद्यालयों ने अपने प्रथम क्लब यूनाइटेड यूनीवर्सिटी और न्यू यूनीवर्सिटी खोले। आठ वर्ष बाद आक्सफ़र्ड ऐंड केंब्रिज़ क्लब खुला और इसके भी ५३ साल बाद न्यू आक्सफ़र्ड ऐंड केंब्रिज़। अन्य विश्वविद्यालयों ने भी अपने अपने क्लब इसी दीर्घ अवधि में स्थापित किए, किंतु उन सबमें यही चार विशेष प्रसिद्ध हैं। इन क्लबों के सदस्य केवल यूनीवर्सिटी के लोग ही हो सकते हैं।

१९वीं शताब्दी के अंत में लंदन में खेलकूद के क्लबों की भी स्थापना तेजी से होने लगी, यद्यपि घुड़दौड़ का पहला क्लब द जॉकी सन् १७५० ई. में ही बन चुका था। विगत दो सौ वर्षों से यह क्लब संसार की समस्त घुडदौड़ों का विधायक और नियामक है। टर्फ़, सैनडाउन, हर्स्ट, पार्क, कैंपटन पार्क, कोचिंग और फ़ोर इन हैंड घुडदौड़ के अन्य विख्यात क्लब हैं। बाक्सिंग (घूँसेबाजी) का प्रसिद्ध क्लब नैशनल स्पोर्टिंग क्लब नौका दौड़ के सोलैंट और टेम्स क्लब, गोल्फ़ खेल का गोल्फ़र्स क्लब और विविध खेलकूदों का मिश्रत क्लब स्पोर्टंस् क्लब इसी दौर में स्थापित हुए। इनके अतिरिक्त प्राय: हर प्रकार के शौक को पूरा करने के लिये उसका अपना क्लब बनाया गया।

वीरपूजा और वस्तुपूजा तथा पालतू और जंगली पक्षियों से संबंधित भी अनेक क्लब लंदन में खुले। सन १७३४ ई. में स्थापित सोसायटी ऑव दिलेताँतक्लब ने अमर चित्रकार रेनाल्ड्स और नैपटन की सुख्यात कृतियों का संग्रह किया। विशिष्ट तथा दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह करने के लिये द रॉक्सबर्ग क्लब सन १८१२ ई. में खुला। जॉनसन् पेप्स, बटलर, उमर खय्याम, डिकेंस, राबेला, लेंब और थैकरे जेसे विख्यात लेखकों की पुण्य स्मृति में जो क्लब खोले गए, उनमें द एरीहोन, बॉज क्लब और टिटमार्श ऐसी संस्थाएँ बन गए, जिनका अंग्रेजी समाज और साहित्य पर व्यापक प्रभाव पड़ा। संगीतकारों और कानूनकारों ने भी अपने अपने क्लब खोले। कानूनियों का हार्डविक क्लब प्रसिद्ध है।

१८वीं शताब्दी में ही लंदन का प्रथम महिला क्लब लेडीज क्लब खुल चुका था। सन् १८८३ ई. में संस्थापित अलेग्ज़ैंड्रिया क्लब पूर्णत: महिला क्लब था, उसके पास किसी भी पुरु ष को फटकने की भी अनुमति न थी। एक बार वेल्स के युवराज (जो बाद में सम्राट् एडवर्ड हुए) अपनी युवराज्ञी (सम्राट् जार्ज पंचम की माता) को जो उसकी सदस्या थीं लेकर गए, किंतु उन्हें बाहर फाटक पर ही रोक दिया गया। इसी युग के पायनियर विक्टोरिया न्यू सेंचुरी हलसियन, लाइसियम, फ़ोरम आदि प्रख्यात महिला क्लब हैं।

क्लब केवल संभ्रात संस्था की आड़ में निपट जुआघर, शराबघर, और व्यभिचार के अड्डे न बन जायँ, इसलिये सन् १९०२ ई. में इंग्लैंड में लाइसेंसिग ऐक्ट बनाया गया। यह सभी प्रकार और आकार के क्लबों पर समान रूप से लागू किया गया। क्लब संबंधी ब्रिटिश कानूनों की विशद व्याख्या सन् १९०३ ई. में प्रकाशित जे. वर्टहाइमर की लॉ रिलेटिंग टु क्लब्स और सर ई. कार्सन की सन् १९०९ ई. में प्रकाशित द लॉज़ ऑव इंग्लैंड में उपलब्ध है। किंतु कानून के अंकुश के बावजूद सोवियत संघ को छोड़कर प्राय: यूरोप के सभी देशों में नाइट क्लब खुले जो नग्न नृत्य और सभी प्रकार के दुराचारों के अड्डे सरीखे हैं। अनेक रेस्त्राँ और होटलों ने भी क्लब नाम धारण कर लिया जो अच्छे और बुरे सभी तरह के हैं। इनकी सदस्यता प्रवेश टिकटों के मूल्य में खरीदी जाती है और क्षणिक होती है।

संभ्रांत एवं प्रतिष्ठित क्लबों की सदस्यता सदस्यों द्वारा मनोनीत अथवा निर्वाचित होती है। कहीं कहीं तो यह निर्वाचन गुप्त मतदान से होता है, जिसमें एक सदस्य का भी विरोधी मत (जिसे ब्लैकबाल अथवा काली गेंद कहते हैं) पड़ने पर प्रार्थी को सदस्य नहीं बनाया जा सकता।

यूरोप के क्लबों का ऐतिहासिक विकास तथा प्रगति प्राय: इंग्लैंड के क्लबों के समान ही हुई है। यूरोप में कदाचित् पेरिस के ही क्लब (जिनमें साहित्यकारों, विविध ललित कलाकारों, वैज्ञानिकों के क्लबों से लेकर नाइट क्लब तक शामिल हैं) सर्वाधिक प्रख्यात हैं। अमरीका में गृहयुद्ध से पहले इंग्लैंड के आधार पर ही क्लबों का निर्माण हुआ। सबसे पहले बोस्टन नगर ही अपने सैंस सूसी क्लब (सन १७८५ ई.), टर्टिल क्लब ऑव होब्रेकिन, ओल्ड कालोनी क्लब, प्यूरीटन क्लब, टेंपुल क्लब इत्यादि के लिये प्रसिद्ध हुआ। सन् १८३३ तथा १८८४ ई. में क्रमश: स्थापित न्यूयार्क के यूनियन क्लब और याट क्लब रूढ़िग्रस्त अमरीकी समाज की संस्थाएँ हैं। अमरीका के प्रजातंत्रीय दल ने संयुक्त राज्य संघ के आदर्श को प्रसारित करने के लिये अपने रिपब्लिकन क्लब की स्थापना सन् १८६३ ई. में की। प्रतिस्पर्धा में जनतंत्रीय दल ने सन् १८६५ ई. में मैनहैटन क्लब का डिमॉक्रेटिक क्लब के दल ने सन १८६५ ई. में मैनहैटन क्लब को डिमॉक्रेटिक क्लब के रूप में परिवर्तित कर दिया। सन् १९२८ ई. तक केवल न्यूयार्क में ही लगभग सौ महत्वपूर्ण क्लब हो गए, जो वाणिज्य, व्यवसाय, जल थल सैनिक विश्वविद्यालय, इंजीनियरी साहित्य, कला, खेल आदि से अलग अलग संबंध रखते थे। उधर वाशिंगटन १८वीं शताब्दी के बोस्टन की भाँति ही इस शताब्दी में अपने क्लबों के लिये विख्यात हो गया। आर्मी ऐंड नैवी, कॉसमॉस, सेंचुरी प्रेस, मेट्रोपॉलिटन, युनीवर्सिटी, कंट्री, राइडिंग और हंट वाशिंगटन के सुप्रसिद्ध क्लब हैं। सुप्रतिष्ठित अमरीकी क्लबों की शाखाएँ अनेक नगरों और ग्रामीण क्षेत्रों तक में खुल गई हैं और एक की सदस्यता से प्रत्येक शाखा की सदस्यता प्राप्त हो जाती है। ये क्लब अपने सदस्यों को खानपान और रहने की सुविधाएँ देकर धनी भी हो गए हैं।

सन् १८७४ ई. में न्यूयार्क में स्थापित लैंब्स क्लब उल्लेखनीय है। इसके हजारों सदस्य है। यह अपने शिष्ट हास-परिहास, विनोद और मनोरंजन के लिये सुख्यात है। बोहीमियन क्लब इसके विपरीत ऐसा क्लब है जिसके सदस्यों को तुन के झु रमुटों में जाकर सभी प्रकार का आनंद करने की पूर्ण स्वच्छंदता है।

मात्र वैचित््रय तथा असाधारणता की भावना को लेकर स्थापित अमरीका में अनेक क्लब हैं, यथा सुईसाइड (आत्महत्या) क्लब, बैचलर्स (चिरकुमार) क्लब अग्ली फ़ेसेज (कुरूप) क्लब। लालटैन क्लब की स्थापना सन १८८३ ई० में एडवर्ड मार्शल, स्टीफ़ेन क्रेन, डेविड ग्रैहम फ़िलिप्स, इरविंग बैचलर आदि तत्कालीन विख्यात अमरीकी लेखकों ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य लालटेनें एकत्र करना और विदेशों से आए प्रसिद्ध व्यक्तियों का स्वागत सत्कार करना था। सन १८६७ ई. में जब अमर अंग्रेज उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस का न्यूयार्क के प्रेस क्लब में स्वागत सत्कार हुआ, तब उसमें एक भी महिला को आमंत्रित नहीं किया गया था। संभ्रांत अमरीकी महिलाओं ने इसे अपना अपमान समझा और आगामी वर्ष उन्होंने सोरोसिस नामक क्लब की स्थापना की, जो कालांतर में जनरल फ़ेडरेशन ऑव वीमेंस क्लब (निखिल महिला क्लब संघ) के रूप में सुप्रतिष्ठित हुआ। इसकी सदस्यता सन् १९३९ ई. तक २० लख से ऊपर पहुँच गई थी।

अमरीका का प्रथम आधुनिक क्लब सन् १८६६ ई. में न्यूयार्क में स्थापित हुआ था। इसके संस्थापक जो व्यक्ति थे वे खाने पीने में मस्त रहने में आस्था रखते थे। जब मदिरापान पर अंकुश लगाने के लिये नया कानून बना, तो यह क्लब उसका विरोध करने के लिये खोला गया और इसका प्रतीक रखा गया बार्नुम के संग्रहालय में रखा एक मृत पशु का सिर। सन् १९३९ ई. तक इस क्लब की अमरीका में १३०० शाखाएँ फैल गई थीं जिनकी सदस्यता ४,९७,००० हो गई थी। यह क्लबसमूह प्रतिवर्ष लाखों डालर दान में देता है। विदेशों में प्रवासी अमरीकियों ने भी प्रवासी अंग्रेजों की भाँति जगह जगह अपने क्लब खोले हैं।

अमरीका के आधुनिकतम परंपराविरोधी क्लबों में बीटनिक हैं, जिनके अधिकांश सदस्य निपट स्वच्छंदतावादी लेखक, कलाकार, दार्शनिक आदि हैं।

भारत में क्लब-----अंग्रेजी शासन के साथ ही भारत में भी आधुनिक क्लब परंपरा स्थापित हुई। गोरे साहबों ने अपने अपने क्लब खोले, जिनमें भारतीयों का प्रवेश वर्जित था। अधगोरों ने भी ऐसे ही क्लब खोले। ऐंग्लो इंडियन लोग अधिकांशत: रेलवे में काम करते थे अत: उनके क्लब रेलवे क्लबों के आदिजनक बने। भारतीय उच्च अधिकारियों ने भी फिर अपने क्लब खोले। प्रत्येक जिले के सदर मुकाम में इस प्रकार क्लब स्थापित हुए। गोरे क्लबों में जीमखाना क्लब भारत के सभी बड़े बड़े नगरों में स्थापित हुआ। छावनियों में भी काले गोरे फौजियों के अलग अलग क्लब बने। इन सभी क्लबों में ताश के खेल रमी, ब्रिज और पोकर जुए की तरह खेले जाते हैं। भारतीय अफसर वर्ग में ब्रिज खेल की लत डालनेवाले ये ही क्लब हैं। इन सभी क्लबों में मदिरालय भी होता था जिसमें विविध प्रकार की विदेशी शराबें चलती थीं। प्रत्येक सरकारी अफसर क्लब का सदस्य होने के लिये अलिखित नियम द्वारा बाध्य था। बड़े औद्योगिक नगरों में अँग्रेज व्यापारियों और उद्योगपतियों ने अपने क्लब खोले। अंग्रेजों ने ही सबसे पहले आधुनिक खेलों के क्लब भारत में स्थापित किए। उन्हीं का अनुसरण कर भारतीयों ने भी इस पकार के क्लब छोटे छोटे शहरों में भी बनाए। राष्ट्रीय जागरण और तत्फलित स्वातंत्र्य आंदोलन के कारण गोरे और काले क्लब, विशेष रूप से जिला स्तर वाले क्लब एक होने लगे। गोरे क्लबों में इंग्लैंड रिटर्न्ड अथवा सर जैसी उपाधिप्राप्त अथवा इंडियन सिविल सर्विस अथवा ऐसी ही अन्य अखिल भारतीय सर्विसों के बड़े भारतीय अधिकारियों को सदस्य बनाया जाने लगा किंतु व्यवहार में परोक्ष रूप से भेदभाव बना रहा।

खेलों के अखिल भारतीय महत्ता के क्लब हैं, बंबई का क्रिकेट क्लब ऑव इंडिया, दिल्ली का नैशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑव इंडिया और कलकत्ते का मोहन बागान, जो फुटबाल के खिलाड़ियों का विशिष्ट क्लब है। उत्तर प्रदेश के क्लबों में लखनऊ का मोहम्मद बाग और रिफ़ाए आम क्लब प्रसिद्ध हैं। दिल्ली स्थित पत्रकारों ने आजादी मिलने के बाद प्रेस क्लब ऑव इंडिया स्थापित किया। लखनऊ के पत्रकारों ने नवंबर, १९५९ ई. में उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब स्थापित किया। देश के बड़े बड़े नगरों में प्रवासी प्रादेशिक भारतीयों ने भी अपने मिलने के लिये क्लब खोले, यथा लखनऊ का प्रसिद्ध बंगाली क्लब। साहित्यिक क्लबों की परंपरा भी देश में आरंभ हुई। अमरनाथ झा ने प्रयाग विश्वविद्यालय में फ्राइडे क्लब की स्थापना की थी। दिल्ली के चार हिंदी साहित्यकारों ने सन् १९४३ ई. में शनिवार समाज स्थापित किया था, जो प्राय: बारह वर्ष तक राजधानी की सक्रिय साहित्यिक गतिविधि का केंद्र रहा। इसकी बैठक शनिवार को ही होती थी। प्रयाग के हिंदी साहित्यकारों ने परिमल की स्थापना की।

रोटरी क्लब----२३ फरवरी, १९०५ ई. को संयुक्त राज्य अमरीका के इलिनाय प्रदेश की राजधानी शिकागो में पाल पी. हैरिस (वकील) ने रोटरी क्लब की संस्थापना की। इसका आदर्श परसेवा था। वाणिज्य व्यवसाय तथा विविध धंधों में लगे हुए लोग इसके सदस्य होते हैं। इस क्लब की बैठकें क्रम से इसके प्रत्येक सदस्य के कार्यालय अथवा घर पर होती, इसलिये इसका नाम रोटरी (चक्र की भाँति घूमनेवाला) पड़ा। फिर अमरीका के अन्य नगरों में भी इस प्रकार के क्लब खुले। १९१० ई. तक इसकी संख्या १६ हो गई। उसी वर्ष अगस्त में इन क्लबों ने मिलकर शिकागो में अपनी राष्ट्रीय संस्था---नैशनल एसोशियेशन ऑव रोटरी क्लब्स की स्थापना की। सन् १९१२ में विन्नीपेग (कनाडा), डबलिन (आयरलैंड) और लंदन (इंग्लैंड) में भी रोटरी क्लब स्थापित हुए। और तब इसका नाम बदलकर इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑव रोटरी क्लब्स (रोटरी क्लबों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था) कर दिया गया। सन् १९२२ ई. से इसको रोटरी इंटरनेशनल कहा जाने लगा।

आज रोटरी क्लब संसार के ५२ अन्य देशों में है जिनमें भारत भी है। समस्त संसार में आज लगभग ८,००० रोटरी क्लब हैं, जिनकी सदस्य संख्या लगभग चार लाख है। भारत में इसकी सदस्यता धनी, उच्चवर्गों तथा शक्तिसंपन्न एवं प्रभावशाली व्यक्तियों तक ही सीमित है। सदस्यता निर्वाचन पद्धति से प्राप्त होती है। आमंत्रित करके सम्मानित सदस्य भी बनाए जाते हैं। इन क्लबों का प्रबंध संचालकों की एक समिति करती है, जिसकी सहायता के निमित्त कई स्थायी समितियाँ होती हैं। समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री और कोषाध्यक्ष का वार्षिक चुनाव होता है। क्लब की बैठक दोपहर अथवा रात्रि के भोज के साथ सप्ताह में एक बार होती हैं। इनमें जो सदस्य निश्चित वार को क्लब की बैठकों में उपस्थित नहीं होते, उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जाती है।

कई क्लबों को मिलाकर एक रोटरी जिला बनाया जाता है, जिसका प्रधान गवर्नर कहलाता है। जिले के क्लबों का वार्षिक सम्मेलन होता है। फिर समस्त जिलों का विश्वसंमेलन होता है, जिसमें गवर्नर अपने जिले का प्रतिनिधित्व करता है। अंतर्राष्ट्रीय रोटरी संस्थान का एक अध्यक्ष और संचालक मंडल होता है, जिसके १४ सदस्यों में से कम से कम सात अनिवार्य रूप से अमरीका के बाहर अन्य देशों के होते हैं। इसका मुख्य कार्यालय शिकागों में है और शाखाएँ लंदन तथा ज्यूरिख में। इसके दो प्रमुख पत्र हैं : अंग्रेजी में द रोटेरियन और स्पैनिश में रिविस्ता रोते-रिया। ये दोनों शिकागो से प्रकाशित होते हैं। यों कुछ जिले अथवा कई जिलों के समूह भी अपने पत्र प्रकाशित करते हैं।

शोभनीय साहसिक कार्य को प्रोत्साहित और पोषित करना रोटरी क्लब का प्रमुख आदर्श है। इसके विशेष उद्देश्य हैं (१) परसेवा का अवसर प्राप्त करने के हेतु परिचय बढ़ाना: (२) व्यापार और व्यवसाय में नैतिकता का पालन करना तथा सभी उपादेय धंधों को गौरवपूर्ण मानना और उसे परसेवा का अवसर मानकर तदनुकूल आचरण करना जिससे उपार्जन गौरवान्वित हो; (३) परसेवा के आदर्श का पालन व्यक्तिगत सामाजिक तथा व्यावसायिक जीवन में करना; और (४) सेवा के आदर्श से प्रेरित व्यापारियों और व्यवसायियों को विश्वमैत्री के एक सूत्र में पिरोना, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सदभावना और शांति स्थापित हो।

रोटरी क्लब की ही तरह एक अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत लायंस क्लब है। इसके उद्देश्य और कार्य भी रोटरी क्लब के ढंग के हैं और उसकी व्यवस्था भी कुछ उसी ढंग से होती है। इसके सदस्य लायन (सिंह) और उनकी पत्नियाँ लायनेस (सिंहनी) तथा बच्चे लायनेट (सिंह शावक) कहे जाते हैं। सदस्यों की पत्नियाँ अपने पतियों से सर्वथा भिन्न स्वतंत्र रूप से इस क्लब में एकत्र होती हैं और अपने आयोजन करती हैं। लायनेट लोगों के मिलने जुलने के लिये भी उनके यहाँ व्यवस्था है। भारत के प्राय: सभी प्रमुख नगरों में यह क्लब स्थापित हो गया है। इनके अतिरिक्त अब कालेजों तथा विश्वविद्यालयों में रोटरेक्ट क्लब भी खुलने लगे हैं।

सं.ग्रं.-----एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका। (कांतिचंद्र सौनरेक्सा; परमेश्वरीलाल गुप्त)