क्रैशा, रिचर्ड (१६१२-१९४९ ई.)। अंग्रेज काल। इसका जन्म लंदन में एक पोप विरोधी पादरी के घर हुआ था। उसने चार्टर हाउस और कैंब्रिज में शिक्षा प्राप्त की और बी. ए. की डिगरी ली। १६३६ ई. में उसे पीटरहाउस (कैंब्रिज) कालेज की फेलोशिप प्राप्त हुई और उसने एम. ए. किया किंतु १६४४ ई. में उसके धार्मिक विचारों के कारण फेलोशिप छीन ली गई। जब गृहयुद्ध आरंभ हुआ तो वह फ्रांस चला गया और कैथोलिक मतावलंबी बन गया। फ्रांस में उसे आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ा किंतु रानी हेनरिट्टा मेरिया के परिचयपत्र के आधार पर कार्डिनल पैलोटा ने उसे अपना निजी सचिव नियुक्त कर लिया। उनके पास वह १६४९ तक रहा। बाद में कार्डिनल ने उसे लोरेट्टो के गिर्जाघर का गायक बनाकर भेज दिया जहाँ उसकी तीन सप्ताह बाद ही बुखार से मृत्यु हो गई। संदेह किया जाता है कि उसे जहर दिया गया था।

क्रैशा का आरंभ से ही धर्म की ओर झुकाव था, और १८३४ ई. में उसने लैटिन भाषा में अपनी पहली कविताओं की पुस्तक एप्रिग्रैमैरप सैक्रोरम लिबर प्रकाशित की। उसकी धार्मिक और लौकिक कविताओं का एक संग्रह उसके फ्रांस प्रवासकाल में किसी अनामा मित्र ने स्टेप्स टु द टेंपुल तथा द डिलाइट ऑव द म्यूजेस शीर्षक से प्रकाशित कराई। १६५२ ई. में उसकी धार्मिक रचनाओं का एक संग्रह पेरिस से प्रकाशित हुआ जिसमें क्रैशा के अपने बनाए हुए १३ चित्र हैं।

क्रैशा लैटिन और यूनानी भाषा के अतिरिक्त इतालवी और स्पेनी भाषा का भी जानकार था। वह कवि के साथ साथ संगीतज्ञ और चित्रकार भी था और इस क्षेत्र में भी उसकी प्रतिष्ठा थीं। कवि के रूप में उसने नाना प्रकार की रचनाएँ की हैं। आलोचकों ने उसे मधुर वक्ता, स्तुतिकार, अलौकिक गायक (डिवाइन सिंगर) के रूप में स्मरण किया है। उसकी कुछ रचनाएँ अध्यात्मवादी हैं; कुछ रचनाएँ धार्मिक होते हुए भी भौतिकवादी जान पड़ती हैं। उसकी कविताओं में जहाँ मौलिकता है वहीं पारंपरिकता भी है। अभिव्यक्ति की नूतनता के साथ साथ पुराने घिसेपिटे शब्दों का प्रयोग भी है। उसने अपनी रचनाओं में कहीं कहीं विचित्र उपमान प्रयुक्त किए हैं। यथा---आँखों को उसने वाकिंग बाथ्स (चलता फिरता स्नानागार) और पोर्टेबुल ओशंस (सहज उठाया जा सकनेवाला सागर) कहा है। (परमेश्वरीलाल गुप्त)