क्रैब, जार्ज (१७५४-१८३२ ई.) अँगरेज कवि और कहानीकार। अल्डेबरा (सफाँक) में एक जकात अधिकारी के घर जन्म। पिता की इच्छा उसे डाक्टर बनाने की थी अत: वह एक दवाफरोश के यहाँ सहायक के रूप में काम करने लगा। फिर वह एक डाक्टर का सहायक बना। कुछ दिनों वह मजदूरी भी करता रहा। फिर उसने स्वयं डाक्टरी करनी आरंभ की पर उसे सफलता न मिली और वह भूखों मरने लगा। तब १७८० में एक उदार दानी के दिए हुए पांँच पांउड लेकर वह अपना भाग्य आजमाने लंदन आया। इस समय तक उसकी पहली कविता इनेब्राइटी (उन्माद) छप चुकी थी। वह अपनी कई रचनाएँ लेकर लंदन आया था पर कैंडिडेट (प्रत्याशी) को छोड़कर कोई भी प्रकाशन के निमित्त स्वीकार न हो सकी। मार्च, १७८१ ई. में उसकी भेंट एडमंड बर्क से हुई। उन्होंने रचनाएं पढ़ीं, सुझाव दिए और द लाइब्रेरी (पुस्तकालय) शीर्षक रचना प्रकाशित कर उसकी सहायता की तथा अन्य लोगों से उसका संपर्क स्थापित कराया। फलत: वह अपने जन्मस्थान के गिर्जे का संरक्षक (क्यूरेट) नियुक्त किया गया। किंतु वहाँ के पादरी उसे मजदूर के रूप में देख चुके थे, वे उसे क्यूरेट के रूप में सम्मान न दे सके। तब बर्क के कहने से ड ्यूक ऑव रटलैंड ने उसे अपने बेलवायर कासल के गिर्जे में पुजारी नियुक्त कर दिया और डारसेटशायर में रहने के लिये मकान दे दिया।

उसी वर्ष उसकी विलेज (ग्राम) शीर्षक रचना प्रकाशित हुई जिसे उसने बर्क के सुझाव पर संशोधित कर पूरा किया था। इस रचना में क्रैव ने अपनी बात सत्यता के साथ मुक्त और निधड़क होकर कही है। इसमें उसने ग्राम जीवन के अंधकारमय पक्ष का ही विशेष चित्रण किया है। इसी का उसे अनुभव भी था। उसने प्रकृति के जो चित्रण किए हैं उनमें पशु-पक्षी, फूल, पत्ती के प्रति उसका सूक्ष्म निरीक्षण प्रतिबिंबित है। उसकी वीर रस की कविताएँ प्रभावकारी हैं। स्कॉट ने उन्हें इस मनोयोग से पढ़ा था कि दस वर्ष बाद भी उसे ज्यों की त्यों याद रही।

विलेज के प्रकाशन के बाद बीस वर्ष तक उसने कुछ भी प्रकाशित नहीं किया। इस काल में वह विभिन्न कार्य करता रहा और १८१४ ई. में वह विल्टशायर में बस गया और वहीं अपना अंतिम जीवन व्यतीत किया। उसके जीवन का यही काल सबसे सुखद था। इस काल में वह लंदन आता जाता और अपने समकालिक साहित्कारों से घुलता मिलता रहा। १८१७ ई. में उसने अपना टेल्स ऑव द हाल पूरी की।

आलोचकों ने क्रैब की कविताओं की भूरि भूरि सराहना की है। एडवर्ड फ्रटजर्ल्ड ने अपने लेटर्स में कार्डिनल न्यूमैन ने अपने अपालोजिया में और सर लिडले स्टिफेन ने अपने आवर्स इन द लाइब्रेरी में उसके संबंध में बहुत ही प्रशंसात्मक बातें कहीं है। चार्ल्स जेम्स फॉक्स और सर वाल्टर स्कॉट को अपने अंतिम क्षणों में उसकी रचनाएँ सांत्वनापूर्ण लगी थीं और टामस हार्डी ने अपने उपन्यासों पर उसके यथार्थवाद के प्रभाव को स्वीकारा है। आलोचकों और साहित्यकारों के बीच प्रिय होते हुए भी विचित्र बात यह है कि क्रैब की रचनाएँ जनता के बीच बहुत दिनों तक उपेक्षित ही रहीं। जहाँ उसके समसामयिक काउपर, स्कॉट, वायरन, शेली आदि की रचनाओं के अनेक पुनर्मुद्रण उनके जीवनकाल में ही हुए, क्रैब की रचनाएँ काफी दिनों तक उपेक्षित रहीं। मरणोपरांत ही १८४७ ई. के बाद उसकी रचनाओं के पुनर्मुद्रण होने प्रारंभ हुए। इसका कारण कदाचित् यह है कि वह शब्दों का शिल्पी न था। उसकी रचनाओं में तात्विकता है। उसने अपने लय प्रधान रचनाएँ अफीम की पिनक में लिखी हैं जिसका कि वह अंतिम दिनों में आदी हो गया था। उसकी कहानियों में कटुता भरी हुई है। उनके पढ़ने पर जान पड़ता है कि वह अँगरेजी साहित्यकारों के बीच यथार्थ का एक महान् चितेरा था। (परमेश्वरीलाल गुप्त)