क्रेबिलाँ, प्रास्पर जोलियो द (१६७४-१७६२ ई.)। फ्रांस का करुण रस का कवि जो एक राजदरबारी का पुत्र था।
१७०३ ई. में उसने ‘इडोमेने’ की रचना की; १७०७ ई. उसका लिखा नाटक ‘अत्रे एत थीस्ते’ राजदरबार में कई बार अभिनीत हुआ। १७०८ ई. में एलेक्त्रे प्रकाशित हुआ। १७११ ई. में उसने अपना सर्वोतम नाटक ‘रादे मिस्ते एत ज़ेनोवी’ लिखा जो बहुत दिनों तक निरंतरखेला जाता रहा।
दो नन्हें बच्चों को छोड़कर पत्नी के मर जाने पर क्रेबिलाँ इतना दुखी हुआ कि छत के ऊपर एक छोटे से कमरे में उसने अपने को सीमित कर लिया और निहायत गंदगी से रहने लगा। उसने कुछ कुत्ते, बिल्लियाँ पाल रखी थीं, वही उसके मित्र थे। निरंतर तंबाकू पीकर वह अपना गम गलत करता रहा। इस प्रकार के एकांतिक जीवन व्यतीत करने के बावजूद १७३१ ई. में फ्रेंच अकादमी ने उसे अपना सदस्य चुना। १७३५ ई. में वह रायल सेंसर नियुक्त हुआ। १७४५ ई. में मदाम द पाँपदूर ने १००० फ्रैंक की पेंशन बाँध दी और राजकीय पुस्तकालय में उसे नियुक्त कर दिया। १७४६ ई. में वह पुन: ‘पाइरस’ नामक नाटक लेकर रंगमंच पर उतरा। १७४८ ई. में ‘कैटिलीना’ का सफल अभिनय राजदरबार में हुआ। ८० वर्ष की अवस्था में उसका अंतिम दु:खात नाटक ‘लेट्रेम्बिरेट’ प्रकाशित हुआ। कुछ लोग क्रेबिलाँ को करूण रस के कवि के रूप में बाल्तेयर से श्रेष्ठ मानते हैं। वाल्तेयर ने क्रेबिलाँ के पाँच दु:खांत नाटकों के विषय को अपने दु:खात नाटकों का विषय बनाया है। जिस वर्ष क्रेबिला की मृत्यु हुई, ‘यूलोजी द क्रेबिला’ नाम से एक निंदापरक काव्य निकला जिसके संबंध में वाल्तेयर के नकारने पर भी कहा जाता है कि उसी ने लिखा था। क्रेबिलाँ का एकमात्र पुत्र क्लाउ की ख्याति उपन्यासकर के रूप में हैं। (परमेश्वरीलाल गुप्त)