क्रिप्स, सर रिचर्ड स्टफर्ड (१८८९-१९५२ ई.)।
अंग्रेज राजनीतिज्ञ और वकील । लंदन में २४ अप्रैल, १८८९ ई. को जन्म। विंचेस्टर तथा लंदन के यूनिवर्सिटी कालेज में शिक्षा। वहीं रसायन विषय में शोध कार्य किया। बाइस वर्ष की आयु में ही रायल सोसाइटी के सम्मुख रसायन विषयक एक निबंध का पाठ किया। विज्ञान के मेधावी विद्यार्थी होते हुए भी उन्होंने वकालत का पेशा चुना और १९१३ ई. में वकील बने। प्रथम महायुद्ध के समय १९१४ ई. में रेडक्रास के ट्रक ड्राइवर बनकर फ्रांस गए। १९१५ ई. में लौटकर एक कारखाने में सहायक निरीक्षक बने।
१९२७ ई. में उन्होंने पुन: वकालत आरंभ की । १९२९ में ही वे मजदूर दल में सम्मिलित हुए और १९३० ई. में वे सॉलीसीटर जनरल बने। उसी वर्ष उन्हें सर की उपाधि प्राप्त हुई। जब रामजे मेकडॉनेल्ड ने राष्ट्रीय सरकार बनाई तो उन्होंने उसमें सम्मिलित होने से इनकार किया और मजदूर दल के घोर वामपंथी पक्ष के समर्थक होने के नाते १९३२ ई. में समाजवादी संघ की स्थापना में योग दिया। १९३४ ई. में वे मजदूर दल की संचालक समिति के सदस्य चुने गए किंतु जब मजदूर दल ने राष्ट्रसंघ द्वारा इटली की निंदा का समर्थन किया तो वे उससे अलग हो गए और राष्ट्रीय सरकार को परास्त करने के लिये श्रमजीवी वर्ग का संयुक्त मोर्चा बनाने पर जोर देने लगे। मार्च, १९३७ ई. में मजदूर दल ने यह निर्णय किया कि समाजवादी संघ की सदस्यता का मजदूर दल की सदस्यता के साथ सामंजस्य नहीं है। १९३८ ई. में जब नाजी जर्मनी का खतरा सामने आया तब क्रिप्स की वैदेशिक नीति में कुछ परिवर्तन हुआ फिर भी वे लोकप्रिय मोर्चे का समर्थन करते रहे। फलत: वे मजदूर दल से निष्कासित कर दिए गए। २० मई, १९४० ई. के विंस्टन चचिंल ने उन्हें राजदूत बनाकर रूस भेजा और वहाँ वह आंगल-सोवियत संधि कराने में सफल हुए।
जब फरवरी, १९४२ ई. में वे लौटे तो लोकसभा के नेता और युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य बनाए गए। उसी वर्ष वे भारत की स्वतंत्रता की रूपरेखा निर्धारित करने के लिये भारत आए किंतु वे अपने मंतव्य में सफल न हो सके। फिर भी भारतीय नेताओं के दृष्टिकोण बदल पाने में समर्थ रहे ।
१९४२ ई. के नवंबर में वे वायुयाननिर्माण के मंत्री बनाए गए और १९४५ ई. तक उस पद पर रहे। जुलाई, १९४५ ई. में व्यापार संघटन (बोर्ड ऑव ट्रेड) के अध्यक्ष बने। १९४६ ई. में वे भारतीय समस्याओं को सुलझाने के लिये भारत आए। किंतु कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच गहरे मतभदे के कारण वे कुछ न कर पाए।
१९४७ ई. के आर्थिक संकट के समय उन्होंने जो स्पष्ट वक्तव्य दिए उससे जनता के बीच उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी और वे आर्थिक मामलों के मंत्री बनाए गए। किंतु कुछ ही सप्ताह बाद उन्हें अर्थमंत्री का पद सम्हालना पड़ा। शीघ्र ही उनका स्वास्थ्य गिरने लगा फलत: २० अक्तूबर, १९५० ई. को उन्होंने सार्वजनिक जीवन से संयास ले लिया। २१ अप्रैल, १९५२ ई. को ज्यूरिच (स्वीज़रलैंड) में उनकी मृत्यु हुई। (परमेश्वरीलाल गुप्त)