क्रय तथा विक्रय कर (सेल ऐंड परचेज़ टैक्स) वस्तुओं के क्रय तथा विक्रय पर आरोपित एवं संगृहीत कर जो उत्पादन शुल्क (एकसाइज़ ड ्यूटीज़ ) से भिन्न है। इसके लिए क्रय तथा विक्रय वस्तु क्रय अधिनियम में दी हुई परिभाषा से विस्तृत सर्वसामान्य अर्थ में प्रयुक्त होता है। क्रयकर क्रयी से और विक्रयकर विक्रेता से संगृहीत किया जाता है। क्रयकर परोक्ष कर है और विशेषत: अपनाया जाता है। यह प्राय: दो प्रकार का होता है, बहुपदी एवं एकपदी। युग्मपदी कर कदाचित् ही अपनाया जाता है।
भारत में क्रयकर सर्वप्रथम सन् १९३८ ई. में मध्यप्रदेश और बरार प्रांत में पेट्रोल के क्रय पर आरोपित किया गया था। इस दिशा में ठोस कदम चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में १९३९ में मद्रास प्रांत में बहुपदी क्रयकर लगाकर उठाया था। तत्पश्चात भारत के अन्य प्रांतों में भी यह कर अपना लिया गया। आज भारतीय गणराज्य के सभी राज्यों में यह कर लागू है। ११ सितंबर, सन् १९५६ के पूर्व समाचारपत्रों के क्रय-विक्रय को छोड़ राज्यों को अन्य सभी वस्तुओं पर कर लगाने का अधिकार था; वह चाहे अंतरराज्यिक व्यापार से ही संबंधित क्यों न हो। अब राज्य अंतरराज्यिक क्रय-विक्रय पर कर नहीं लगाते। यह सुधार संविधान (षष्ठ संशोधन) अधिनियम, १९५६ के आधार पर हुआ है। राज्यों के अधिकार में यह सुधार संविधान के २८६वें अनुच्छेद का ठीक निर्वचन न होने के कारण किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक वाद (बंबई राज्य बनाम युनाइटेड (मोटर्स) इंडिया लि., आल इंडिया रिपोर्टर, १९५३, सर्वोच्च न्यायालय, पृष्ठ २५२) में जो निर्णय किया था उसमें वैधानिक स्थिति ठीक प्रकार समझी न जा सकी फलत: उक्त न्यायालय ने स्वयं ही अपने उक्त निर्णय को एक अन्य वाद में (बंगाल इम्यूनिटी कं. बनाम बिहार राज्य, ए. आई. आर., सं. न्यायालय, ६६१) में गलत बताया। ऐसी दशा में कर जाँच आयोग के मत के अनुसार संविधान में सुधार करना आवश्यक था। अब राज्य अंतरराज्यिक क्रय विक्रयों को छोड़ सभी सौदों पर कर लगा सकते हैं। वे २८६वें अनुच्छेद के प्रभाव से उन क्रय-विक्रयों पर कर नहीं लगा सकते जो उनकी सीमा के बाहर संपन्न हों और न के वस्तुओं के आयात निर्यात के दौरान में होनेवाले क्रयविक्रयों पर कर आरोपित कर सकते हैं। अंतरराज्यिक वाणिज्य तथा कारोबार की महत्व की वस्तुओं, जैसे कोयला, कपास, लोहा, फौलाद आदि के क्रय-विक्रय पर कर संसदीय विक्रयकर अधिनियम १९५६ में दी हुई प्रथा के अनुसार लगता है। क्रयकर संप्रति राज्यों के राजस्व का मुख्य साधन बन गया है।
विक्रयकर विक्रेता से वसूल किया जाता है। भारत में यह सामान्यत: लागू नहीं है; पर इंग्लैंड एवं संयुक्त राज्य अमरीका में प्रचलित है। विक्रयकर यदि अधिक मूल्यवाली वस्तुओं के विक्रय पर लगाया जाए तो करसंग्रहण आसानी से हो सकता है। संयुक्त राज्य अमरीका के राज्यों में यह कर प्राय: लगता है। करसंग्रहण और क्षेत्राधिकार के विचार से अमरीकी संयुक्त राज्य के राज्य विक्रयकर आरोपित करते हैं। विक्रय कर बहुधा बहुपदी ही होता है। यह परोध कर नहीं है।
(मं. चं. जै. का.)