कोहेनूर भारत का सुविख्यात हीरा। १४वीं शताब्दी से पूर्व इस हीरे का इतिहास ठीक ज्ञात नहीं है। बाबर ने अपने संस्मरण में आगरे की विजय में एक बृहत् उत्तम हीरा प्राप्त करने का उल्लेख किया है। संभवत: वह कोहेनूर ही था, क्योंकि उस हीरे का भार आठ मिस्कल (३२० रत्ती) बताया है। तराशे जाने के पूर्व कोहेनूर का भार इतना ही था, निश्चित रूप से ज्ञात है कि कोहेनूर औरंगजेब के पास था और वह उसे बड़े यत्न से रखता था। १७३९ ई. में जब नादिरशाह ने दिल्ली लूटी तब मुगल बादशाहों की बहुमूल्य वस्तुओं के साथ वह इसे भी ईरान ले गया। नादिरशाह की मृत्यु के पश्चात वह काबुल के अमीरों के पास रहा। कालवशात जब काबुल के तत्कालीन अमीर को पंजाब के महाराज रणजीत सिंह की शरण लेनी पड़ी तब १८१३ ई. में वह हीरा उनके हाथ लगा। महाराज रणजीतसिंह के मरने पर १८४९ ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब पर अधिकार किया और इस बहुमूल्य रत्न को महारानी विक्टोरिया को भेंट में दिया। विक्टोयाि ने इनकी सुंदरता बढ़ाने के लिये इसकी काटछाँट कराई, जिससे इसका भार केवल १०६ कैरेट रह गया। यह अनुपम रत्न साम्राज्ञी के मुकुट में लगाया गया। आजकल यह ऐतिहासिक रत्न ब्रिटिश राज्य के अन्यान्य रत्नों के साथ लंदन के टावर नामक किले में सुरक्षित है। किंवदंती है कि कोहेनूर अशुभ रत्न है और अपने स्वामी पर इसका प्रभाव अनिष्टकारी होता है। (भगवानदास वर्मा.)