कोस्सुथ, लाओ लुई (१८०२-१८९४ ई.) हंगरी के एक राजनेता। हंगरी निवासी एक सामान्य स्लोवाक परिवार में मोनोक (ज़ेम्प्लिन) नामक स्थान में १९ सितंबर १८०३ ई. को जन्म। उनके पिता वकील थे और उन्हीं के साथ उन्होंने वकालत आरंभ की। बाद में उन्हें राष्ट्रीय संसद में राउंट हुन्यडी ने अपना सहायक बनाया और उन्होंने उनके साथ १८२५ से १८३२ ई. में कार्य किया। सहायक के रूप में संसद् में उन्हें किसी प्रकार का मत देने का अधिकार न था। अत: वे अपने विचार अपने स्वामी के सम्मुख पत्र रूप में प्रस्तुत करते रहे और हाथ से लिखकर वे पत्र उदार विचार वाले सदस्यों में वितरित किए जाने लगे उस पत्र ने शीघ्र ही एक व्यवस्थित संसदीय पत्रिका का रूप धारण कर लया और वे उसके संपादक हो गए। इस पत्र के वितरण पर प्रतिबंध लगाने के अनेक प्रयास हुए पर कोस्सुथ की ख्याति और प्रभाव बढ़ता ही गया। जब १८३६ ई० में संसद भंग कर दी गई तो काउंटी सभाओं में होनेवाले वादविवादों को पत्र रूप में प्रस्तुत कर उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा। मई १८३७ में वे राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार कर लिए गए। एक वर्ष तक वे ओफेन के कारागार में बंद रहे तदनंतर उन्हें ४ वर्ष की सजा हुई।

उनकी गिरफ्तारी के विरु द्ध जोरदार आंदोलन उभर उठा और १८३९ में जो संसद बनी उसने उन्हें तथा अन्य राजनीतिक कैदियों की रिहाई के आंदोलन का समर्थन किया और प्रत्येक सरकारी प्रस्तावों को पारित करने से इंकार कर दिया। पहले तो सरकार अपने निश्चय में दृढ़ रही पर जब १८४० में युद्ध का खतरा दिखाई पड़ा तो वह झुकी और कोस्सुथ रिहा कर दिए गए। इस प्रकार वे एक लोकप्रिय नेता के रूप में जनता के सामने आए।

जनवरी १८४१ में उन्होंने अपने दल के एक नए पत्र पेस्टी हिरलैप के संपादन का भार ग्रहण किया और इसमें उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली। अपने इस नवीन पत्र द्वारा वे हंगरी की स्वतंत्रता का प्रतिपादन करते रहे। उन्हें अन्य उदारवादी नेताओं की तरह कुछ सुधारमात्र से संतोष न था। अत: सरकार इस बात के लिये प्रयत्नशील हुई कि उक्त पत्र से उनका संबंध टूट जाए और वह १८४४ ई. में इस कार्य में सफल भी हो गई। तब उसने स्वयं अपना पत्र निकालने का प्रयास किया। सरकार ने उसे एक अच्छा पद प्रदान करने का लालच दिया पर उसने उसे ठुकरा दिया और तीन वर्ष तक वह निरवलंब बना रहा। वह इस बीच निरंतर हंगरी की राजनीतिक और व्यावसायिक स्वतंत्रता के लिये आंदोलन करता रहा।

१८४७ ई. में वह बुडापेस्ट से संसद् का सदस्य चुना गया और उसने उग्र उदारवादियों का नेतृत्व ग्रहण किया। उसकी प्रेरणा से ही सम्राट् से राष्ट्रीय सरकार की स्थापना तथा मंत्रियों को पार्लियामेंट के प्रति उत्तरदायी बनाने की माँगे प्रस्तुत की गईं। कोस्सुथ के अनुयायियों ने अल्प समय में ही हंगरी में सामाजिक और राजनीतिक जीवन में परिवर्तन कर दिए। किंतु पार्लियामेंट का शासन, प्रेस और धर्म के विषय में स्वतंत्रता आदि उदारवादी विचारों की प्राप्ति से ही कोस्सुथ संतुष्ट होनेवाला न था।

कोस्सुथ देश के मेग्यारीकरण का पक्षपाती था, वह स्लाव जाति से मेग्यार जाति को उच्च समझता था। इस प्रकार राष्ट्रप्रेम की ज्वाला हंगरी में प्रज्वलित हुई। और जब १८४८ ई. में पेरिस और विएना में राज्यक्रांति आरंभ हुई तो उससे प्रेरित होकर हंगरी में भी क्रांति की ज्वाला धधक उठी। किंतु देश के भीतर उभर रही जातीयता के कारण उसने गृहयुद्ध का रूप धारण कर लिया। मेग्यार लोगों की स्थिति खराब हो गई। एक ओर स्लावों और मेग्यारों में युद्ध आरंभ हुआ, दूसरी ओर आस्ट्रिया से।

आरंभ में कोस्सुथ की विजय हुई। उसने अप्रैल, १८४८ में हंगरी को स्वाधीन घोषित करते हुए हेप्सबर्ग राजवंश को सिंहासन से उतार दिया और हंगरी में जनतंत्र स्थापित किया तथा स्वयं गवर्नर बना। हकदार राजवंश ही राज कर सकता है, उसकी यह चुनौती थी। तभी दुखी निरकुंश शासकों को सहायता देना दैवी कर्तव्य समझनेवाला रूस का जार निकोलस (प्रथम), जो प्रगतिशील आंदोलन का कट्टर शत्रु था, कारपेथियन पर्वत लाँघता हुआ हंगरी में घुस पड़ा। हंगरी की सेना ने रूसियों के सामने आत्मसमर्पण किया और हंगरी की राज्यक्रांति समाप्त हो गई। फलत: ११ अगस्त को कोस्सुथ को त्यागपत्र देकर तुर्की की सीमा में शरण लेनी पड़ी। उसके बाद वह फ्रांस, इंग्लैंड और अमरीका में घूमता फिरा। सभी देशों ने इसका स्वागत किया। २० मार्च, १८९४ में उसकी मृत्यु टूरिन में हुई।

((कुमारी) शुभदा तेलंग; परमेश्वरीलाल गुप्त)