कोर्ट मार्शल सैनिक न्यायालय जो स्थल, जल और वायुसेना के अनुशासन के विरूद्ध किए गए अपराधों की जाँच (ट्रायल) करती और अपराध सिद्ध होने पर यह अपराधी को दंड देती है। मार्शल लॉ की व्यवस्था भी कोर्ट मार्शल करती है। कोर्ट मार्शल करती है। कोर्ट मार्शल का मुख्य ध्येयसेना में अनुशासन कायम रखना है। कोर्ट मार्शल की एक विशेषता, जो सिविल कोर्ट में नहीं पाई जाती, यह है कि इसमें एक जज ऐडवोकेट होता है जिसका मुख्य कार्य प्रमाण को कोर्ट के समक्ष रखना और कोर्ट को कानूनी प्रश्नों से अवगत करना है। कोर्ट मार्शल के सदस्य प्राय: सेना के अधिकारी होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र अमरीका के कोर्ट मार्शल को वहाँ के विधान द्वारा असाधारण क्षेत्राधिकार प्राप्त है। युनिफार्म ऑव मिलिटरी जस्टिस, १९५० में कोर्ट मार्शल की स्थापना और उनकी श्रेणियों आदि का विवरण है। इंग्लैंड में आर्मी ऐक्ट, नेवल डिसिप्लिन ऐक्ट, १९२२ के द्वारा संशोधित नेवल डिसिप्लिन ऐक्ट १८६६ और मैनुएल ऑव एयर फ़ोर्स में कोर्ट मार्शल की स्थापना का विधान है। भारत में आर्मी ऐक्ट, १९५०, एयर फ़ोर्स ऐक्ट, १९५० और नेवी ऐक्ट, १९५७ में कोर्ट मार्शल की स्थापना का विधान है। आर्मी ऐक्ट, १९५० के अंतर्गत चार प्रकार की कोर्ट मार्शल है :
एयर फ़ोर्स ऐक्ट १९५० में केवल प्रथम तीन प्रकार के और नेवी ऐक्ट, १९५७ में केवल एक ही प्रकार के कोर्ट मार्शल का विधान है।
सभी अधिनियमों में कुछ उपबंधों को छोड़कर लगभग एक से ही उपबंध हैं। कोर्ट मार्शल के सदस्यों में से उच्चतर अधिकारी कोर्ट का प्रधान होता है। जज ऐडवोकेट से संबंधित उपबंध को छोड़कर अन्य अधिनियमों में कोर्ट मार्शल के संयोजन, रचना, अधिकार, स्थान आदि का विवरण है। इन अधिनियमों के उपबंधों को दृष्टिगत रखते हुए, कोर्ट मार्शल के समक्ष संपूर्ण कार्यवाही पर १८७२ का एविडेंस ऐक्ट लागू होता है और बहुमत से निर्णय किया जाता है। बराबर मतों पर अभियुक्त के पक्ष में निर्णय पर ही मृत्यु दंड दिया जा सकता है। यदि कोर्ट के पाँच सदस्य हो तो चार सदस्यों के निर्णय पर ही मृत्यु दंड दिया जा सकता है।
आर्मी ऐक्ट और एयरफ़ोर्स ऐक्ट में कोर्ट मार्शल के निर्णय को अन्य अधिकारी द्वारा स्वीकृति करने अथवा पुन: विचार करने अथवा संशोधन करने के भी नियम हैं। ऐसे अधिकारी के समक्ष कोर्ट मार्शल के निर्णय के विरूद्ध प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करने का अधिकार दंडित व्यक्ति को प्राप्त है। स्वीकृत निर्णय के विरूद्ध भी दंडित व्यक्ति भारतीय सरकार, सेनाध्यक्ष या अन्य मनोनीत अधिकारी को प्रार्थनापत्र दे सकता है। इन लोगों को कोर्ट मार्शल के समक्ष हुई संपूर्ण कार्यवाही को अवैधानिक और न्यायविरूद्ध घोषित करने का अधिकार है। नेवी ऐक्ट में जज ऐडवोकेट जनरल को न्यायिक समीक्षा (जुडिशल रिव्यू) का अधिकार दिया गया है। वह स्वयं अथवा प्रार्थनापत्र के आधार पर अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकता है। वह अपनी रिर्पोट जलसेनाध्यक्ष के पास भेजता है जो कुछ परिस्थितियों में सारी कार्यवाही को भारत सरकार के पास विचारार्थ भेज सकता है। इसके अतिरिक्त दंडित व्यक्ति को कोर्ट मार्शल के निर्णय के विरूद्ध जलसेनाध्यक्ष अथवा भारत सरकार के पास आवेदनपत्र देने का भी विधान है। सेनाध्यक्ष अथवा भारत सरकार आवेदन पर विचारकर समुचित आदेश दे सकती है।
( जितेन्द्र कुमार मित्तल )