कोयला-----कोयला ओर कोयल दोनों संस्कृत के कोकिल शब्द से निकले हैं। साधारणतया लकड़ी के अंगारों को बुझाने से बच रहे जले हुए अंश को कोयला कहा जाता है। उस खनिज पदार्थ को भी कोयला कहते हैं जो संसार के अनेक स्थलों पर खानों से निकाला जाता है। पहले प्रकार के कोयले को लकड़ी का कोयला या काठ कोयला, और दूसरे प्रकार के कोयले को पत्थर का कोयला या केवल कोयला, कहते हैं। एक तीसरे प्रकार का भी कोयला होता है जो हड्डियों को जलाने से प्राप्त होता है। इसे हड्डी का कोयला या अस्थि कोयला कहते हैं।
तीनों प्रकार के कोयले महत्व के हैं और अनेक घरेलू कामों, रासायनिक क्रियाओं और उद्योगधंधों में प्रयुक्त होते हैं। कोयले का विशेष उपयोग ईधंन के रूप में होता है। कोयले के जलने से धुआँ कम या बिल्कुल नहीं होता। कोयले की आँच तेज और लौ साफ होती है तथा कालिख या कजली बहुत कम बनती है। कोयले में गंधक बहुत कम होता है और वह आग जल्दी पकड़ लेता है। कोयले में राख कम होती है और उसका परिवहन सरल होता है। ईधंन के अतिरिक्त कोयले का उपयोग रबर के सामानों, विशेषत: टायर, ट्यूब और जूते के निर्माण में तथा पेंट और एनैमल पालिश, ग्रामोफोन और फोनोग्राफ के रेकार्ड, कारबन, कागज, टाइपराइटर के रिबन, चमड़े, जिल्द बाँधने की दफ्ती, मुद्रण की स्याही और पेंसिल के निर्माण में होता है। कोयले से अनेक रसायनक भी प्राप्त या तैयार होते हैं। कोयले से कोयला गैस भी तैयार होती है, जो प्रकाश और उष्मा प्राप्त करने में आजकल व्यापक रूप से प्रयुक्त होती हैं।
कोयले की एक विशेषता रंगों और गैसों का अवशोषण है, जिससे इसका उपयोग अनेक पदार्थों, जैसे मदिरा, तेलों, रसायनकों, युद्ध और अश्रुगैसों आदि के परिष्कार के लिये तथा अवांछित गैसों के प्रभाव को कम या दूर करने के लिये मुखौटों (mask) में होता है। इस काम के लिये एक विशेष प्रकार का सक्रियकृत कोयला तैयार होता है जिसकी अवशोषण क्षमता बहुत अधिक होती है। कोयला बारूद का भी एक आवश्यक अवयव है। विशेष जानकारी के लिये देखे काठ कोयला, कोयला (पत्थर) और कोयला (हड्डी)।
कोयला पत्थर (Coal) और कोयला क्षेत्र (Coal-field)----आधुनिक युग में उद्योगों तथा यातायात के विकास के लिये पत्थर का कोयला परमावश्यक पदार्थ हैं। लोहे तथा इस्पात उद्योग में ऐसे उत्तम कोयले की आवश्यकता होती है जिससे कोक बनाया जा सके। भारत में साधारण कोयले के भंडार तो प्रचुर मात्रा में प्राप्त हैं, किंतु कोक उत्पादन के लिये उत्तम श्रेणी का कोयला अपेक्षाकृत सीमित है (देखें कोक)।
भारत में कोयला मुख्यत: दो विभिन्न युगों के स्तरसमूहों में मिलता है : पहला गोंडवाना युग (Gondwana Period) में तथा दूसरा तृतीय कल्प (Tertiary Age) में। इनमें गोंडवाना कोयला उच्च श्रेणी का होता है। इसमें राख की मात्रा अल्प तथा तापोत्पादक शक्ति अधिक होती है। तृतीय कल्प का कोयला घटिया श्रेणी का होता है। इसमें गंधक की प्रचुरता होने के कारण यह कतिपय उद्योगों में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता।
गोंडवाना युग के प्रमुख क्षेत्र झरिया (बिहार) तथा रानीगंज (बंगाल) में स्थित है। अन्य प्रमुख क्षेत्रों में बोकारो, गिरिडीह, करनपुरा, पेंचघाटी, उमरिया, सोहागपुर, सिगरेनी, कोठा गुदेम आदि उल्लेखनीय हैं। भारत में उत्पादित संपूर्णै कोयले का ७० प्रतिशत केवल झरिया और रानीगंज से प्राप्त होता है। तृतीय कल्प के कोयले, लिग्नाइट और ऐंथ्रासाइट आदि के निक्षेप असम, कशमीर, राजस्थान, मद्रास और कच्छ राज्यों में है।
प्रायद्वीपीय भारत के कोयला निक्षेप (Coal Deposits of Peninsular India)-----मुख्य गोंडवाना विरक्षा (Exposures) तथा अन्य संबंधित कोयला निक्षेप प्रायद्वीपीय भारत में दामोदर, सोन, महानदी, गोदावरी और उनकी सहायक नदियों की घाटियों के अनुप्रस्थ एक रेखाबद्ध क्रम (linear fashion) में वितरित हैं।
रानीगंज कोयला क्षेत्र----इस क्षेत्र का अधिकांश भाग बंगाल में स्थित है। इसका क्षेत्रफल लगभग ४२२ वर्ग मील है। पूर्वी तथा दक्षिण पूर्वी रेलवे यहाँ यातायात के मुख्य साधन हैं। अधर मेजर्स (Lower Measures) बराकर में सात कोयला संस्तर (horizons) हैं, जिनमें चंच (Chanch), लाइकडीह, रामनगर, दामगरिया तथा सालनपुर, जिनकी औसत मोटाई २० फुट है, अधिक महत्व के हैं, उच्चमेजर्स (Upper Measures)-----रानीगंज में नौ स्तर हैं, जिनमें दिशेरगढ़ (१८ फुट), संकटोरिया (Sanctoria) अथवा पोनियाती (१० से १५ फुट) तथा रानीगंज (१० से १२ फुट) आदि भी सम्मिलित हैं।
कोयले के अनुमानित भंडार १,००० फुट की गहराई तक इस प्रकार आँके गए हैं :
कोकवर्ती कोयला (Coking coal) २८.७७ करोड़ टन
उत्कृष्ट श्रेणी का कोयला (Superior coal) २७५.९२ करोड़ टन
निकृष्ट श्रेणी का कोयला (Inferior coal) ४९४.९४ करोड़ टन
योग ७९९.६३ करोड़ टन
अभी तक प्राप्तव्य कोयले की मात्रा ५४.०० करोड़ टन
यथास्थान उपलब्ध भंडार (Reserves available in situ) ७४५.६३ करोड़ टन
कम १० प्रतिशत ७४.५६ करोड़ टन
प्राप्तव्य कोयला (Recoverable coal) ६७१.०७ करोड़ टन
झरिया कोयला क्षेत्र----लगभग १७५ वर्ग मील के विस्तार में रानीगंज क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है। अधर मेजर्स (बराकर) मोटाई में २०० फुट हैं। इनमें अनेक महत्वपूर्ण स्तर हैं, जिनमें कुछ की चौड़ाई २०० फुट से भी अधिक है। उच्च मेजर्स (रानीगंज) में अल्प महत्व के स्तर हैं। घटिया कोकवर्ती कोयले (Inferior coking coal) के उपलब्ध भंडारों का अनुमान ९५८.२० करोड़ टन तथा बोकारो कोयला क्षेत्र के १०वें से १८ वें स्तर तक के कोकवर्ती कोयले का अनुमान २१४.५० करोड़ टन है। यह क्षेत्र झरिया क्षेत्र के पश्चिम में २ से ३ मील की दूरी पर स्थित है। बोकारो नदी के जलग्रह क्षेत्र (catchment area) सहित इसका क्षेत्र २०० वर्ग मील है। बराकर (Barakar) २,३७० फुट मोटा है। इसके पूर्वी भाग में चार तथा पश्चिमी में नौ मुख्य स्तर हैं। पश्चिमी भाग के स्तर राख में समृद्ध हैं।
१००० फुट की गहराई तक अनुमानित भंडार इस प्रकार हैं :
कारगाली स्तर (Kargali) १७.५० करोड़ टन
बर्मो (Bermo) १४.८० करोड़ टन
कारो (Karo) ११.०० करोड़ टन
पश्चिमी बोकारो ने नौ स्तर १०.१० करोड़ टन
योग ५३.४० करोड़ टन
रामगढ़ कोयला क्षेत्र-----बोकारो के दक्षिणपश्चिम में स्थित है तथा ३० वर्ग मील में फैला हुआ है। इसमें कम से कम २५ फुट मोटे चार स्तर पाए गए हैं। १,००० फुट की गहराई तक भंडारों का अनुमान १०० करोड़ टन तक किया गया है, किंतु स्तरों की मोटाई की तीन गुना गहराई तक अनुमान केवल ८.७० करोड़ टन का ही है।
करनपुरा कोयला क्षेत्र-----यह क्षेत्र दामोदर घाटी में बोकारो के पश्चिम में कुछ ही मील की दूरी पर स्थित है। दक्षिणी करनपुरा क्षेत्र में, जिसका क्षेत्रफल ७५ वर्ग मील है, १८ स्तर हैं, जिनकी कुल मिलाकर मोटाई २५२ फुट है। उत्तरी करनपुरा कोयला क्षेत्र ४७५ वर्ग मील के विस्तार में है। इसमें १२ फुट से ९० फुट तक की मोटाई के अनेक स्तर हैं।
दक्षिणी करनपुरा क्षेत्र में ११७.५० करोड़ टन तथा उत्तरी क्षेत्र में ४५०.८० करोड़ टन कोयला मिलने का अनुमान है।
तालचीर कोयला क्षेत्र----तालचीर नगर (उड़ीसा) के पश्चिम में तथा कटक से उत्तरपश्चिम में ६४ मील की दूरी पर स्थित है। इसका क्षेत्र ७०० वर्ग मील में है। बराकर की कुल मोटाई १,८०० फुट है, जिसमें केवल दो स्तर क्रमश: ९ तथा १२ फुट मोटाई के प्राप्त हुए हैं। इनमें कोयले का कुल अनुमान ७.४० करोड़ टन है।
इब नदी कोयला क्षेत्र----यह क्षेत्र संबलपुर जिले में स्थित है। कुल मिलाकर यहाँ पाँच स्तर हैं। लजकुरिया (Lajkuria) तथा रामपुर स्तरों में १,००० फुट की गहराई तक भंडारों का अनुमान ७४.०० करोड़ टन है।
हिंगिर कोयला क्षेत्र----- यह इब नदी कोयला क्षेत्र के उत्तरपश्चिम में स्थित है तथा इसमें पाँच स्तर हैं।
वर्धाघाटी कोयला क्षेत्र----यह १,६०० वर्ग मील के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है।
वरोरा कोयला क्षेत्र----बरोरा रेलवे स्टेशन के ठीक उत्तरपूर्व में स्थित है। इनमें चार स्तर हैं।
बाँदर कोयला क्षेत्र---यह बरोरा के उत्तरपूर्व में ३० मील की दूरी पर स्थित है। इसमें चार स्तर हैं, जिनमें कोयले का कुल अनुमान १०.८० करोड़ टन है।
राजुर कोयला क्षेत्र-----कोयले के भंडार ३४.५० करोड़ टन तक आँके गए हैं।
घुगुस तेलवासा कोयला क्षेत्र-----इस संपूर्ण क्षेत्र में १००.०० करोड़ टन तक कोयले का अनुमान है।
बल्लरपुर कोयला क्षेत्र----इस क्षेत्र के ५२ फुट के संस्तर (Horizon) में कोयले के चार स्तर है। चांदा (Chanda) से बल्लारशाह के बीच ८०० फुट की गहराई तक कोयले के भंडार दो अरब टन तक आँके गए हैं।
कांपटी कोयला क्षेत्र (Kamptee)----यह कान्हन (Kanhan) रेलवे स्टेशन के समीप स्थित है। इसमें १.८० करोड़ टन कोयले के अनुमानित भंडार हैं।
सास्ती (आंध्र) में कोयले के दो स्तरों पर खनन कार्य किया जा रहा है, जिनमें लगभग १००.०० करोड़ टन कोयला मिलने की संभावना है।
सिंगरेनी (Singareni) कोयला क्षेत्र------सारे क्षेत्र में लगभग १५.६० करोड़ टन कोयला मिलने का अनुमान है।
मध्य प्रदेश के क्षेत्र तीन भागों में विभाजित किए जा सकते हैं :
(ब) कोर्बा कोयला क्षेत्र (Korba C.F.)
(स) मंड नदी कोयला क्षेत्र----इस क्षेत्र में कोयले में राख का अनुपात अधिक है।
(द) रायगढ़ कोयला क्षेत्र----इसमें उत्तरी तथा दक्षिणी क्षेत्र सम्मिलित हैं, किंतु ये विशेष महत्व के नहीं हैं।
----सरगुजा क्षेत्र मउमरिया कोयला क्षेत्र----मध्य भारत का यह सबसे छोटा क्षेत्र है। साधारण अनुमान २.४० करोड़ टन कोयला मिलने का है।
जोहिल्ला नदी कोयला क्षेत्र----यह जोहिल्ला घाटी में उमरिया के दक्षिणपूर्व में १३ मील की दूरी पर स्थित है। कुल भंडार १३५ करोड़ टन है।
कोरार कोयला क्षेत्र---यह क्षेत्र १,२०० वर्ग मील के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है तथा मध्य भारत का विशालतम क्षेत्र है। बड़हरा क्षेत्र में अनुमानित भंडार १२.४० कर्रोड़ टन तथा संपूर्ण क्षेत्र में ४००.०० करोड़ टन है।
सिंगरौली कोयला क्षेत्र----लगभग ३० वर्ग मील के क्षेत्र में कोयला मिलने की संभावना है। क्षेत्र का पूर्वेक्षण किए बिना भंडारों का अनुमान लगाना कठिन है।
सरगुजा कोयला क्षेत्र---कुल ६.०० करोड़ टन कोयले का अनुमान है।
चिरीमिरी कुरासीन कोयला क्षेत्र----कुल ६.०० करोड़ टन कोयले का अनुमान है।
चिरीमिरी-कुरासीन कोयला क्षेत्र---यह .५० वर्ग मील के विस्तार में है। संपूर्ण क्षेत्र में अच्छी श्रेणी का ३८.८० करोड़ टन कोयला मिलने की संभावना है।
सनहट कोयला क्षेत्र----केवल ९.४० करोड़ टन कोयला प्राप्त होने का अनुमान है।
झिलीमिली कोयला क्षेत्र स्थित है। इसके विकसित होने की संभावना है।
विश्रामपुर कोयला क्षेत्र-----इसमें तृतीय वर्ग (third grade) का १०.०० टन कोयला प्राप्त होने का अनुमान है। (विद्यासागर दुबे)