कोयल कुकू (Cuckoo) कुल का सुप्रसिद्ध पक्षी---कोकिल; मीठी बोली बोलनेवाली भारतीय पक्षियों में इसका विशेष स्थान है। कोयल का नर कौए जैसा गहरा काला और मादा भूरी चितली होती है। कोयल सर्वथा भारतीय पक्षी है; यह इस देश के बाहर नहीं जाती, थोड़ा बहुत स्थानपरिवर्तन करके यहीं रहती है।

कोयल शाखाशायी पक्षी है, जो जमीन पर बहुत कम उतरती है। इसके जोड़े सुविधा के अनुसार अपनी सीमा बना लेते हैं और एक दूसरे के अधिकृत स्थान का अतिक्रमण नहीं करते। प्रति वर्ष वे अपने निश्चित स्थान पर ही आते हैं और कुछ समय बिताकर फिर अपने देश लौट जाते हैं।

कुकू कुल के सभी पक्षी दूसरी चिड़ियों के घोसलें में अपना अंडा देने की आदत के लिये प्रसिद्ध हैं। उनकी इस विचित्र आदत को लोग बहुत समय से जानते थे, किंतु इसका यथेष्ट रहस्योद्घाटन पिछले ५० वर्षों में ही हो सका है।

अन्य पक्षियों की भाँति अंडा देने का समय निकट आने पर कुकू वर्ग के पक्षी घोंसला बनाने की चिंता नहीं करते। वे कौए, पोदना और चरखी आदि के घोंसले में अपना एक अंडा देकर, उसका एक अंडा अपनी चोंच में भरकर लौट आते हैं और किसी पेड़ पर बैठकर उसे चट कर जाते हैं। इसी प्रकार वह दूसरे घोंसले में दूसरा अंडा देकर उसका एक अंडा खा लेते हैं। इस प्रकार अलग अलग घोंसलों में अपने अंडे देने के बाद उसे अपने अंडे बच्चों से छुट्टी मिल जाती है; आगे की चिंता बच्चे स्वयं कर लेते हैं।

अंडा फूटने पर जब कोयल का बच्चा बाहर निकलता है तब उसमें कुछ सप्ताह बाद एक ऐसी अनुभूति पैदा होती है कि वह अपने पंजों से घोंसले का किनारा दृढ़ता से पकड़कर घोंसलें के अन्य बच्चों को बारी बारी से अपनी पीठ पर चढ़ाकर ऐसा झटका देता है कि वे पेड़ से नीचे गिरकर मर जाते है। इस प्रकार घोंसले में एकछत्र राज्य स्थापित, अपने कृत्रिम माँ बाप द्वारा लाए गए भोजन से यह परोपजीवी शावक दिन दूना रात चौगुना बढ़ता है। कुछ दिनों बाद जब यह भेद खुलता है तब वह घोंसले से बाहर खदेड़ दिया जाता है और उसे स्वतंत्र जीवन बिताने के लिये मजबूर होना पड़ता है।

जिस प्रकार बुलबुल उर्दू और फारसी के साहित्योद्यान का प्रसिद्ध पक्षी है उसी प्रकार कोयल के बिना हमारा साहित्योपवन सूना ही रहता है। वसंत ऋ तु के आगमन के साथ ही नर पक्षी के कु ऊऊ ऊजैसे मधुर मादक स्वर से हमारी अमारइयाँ गूँज उठती हैं। (सुरेश सिंह कुँअर)